दो जून की रोटी | Do joon ki roti | Kavita
दो जून की रोटी
( Do joon ki roti )
रोटियाँ…रोटियाँ…
रोटियाँ… रोटियाँ….
आगे पीछे उसके दुनिया है घूमती
वास्ते उसी के, चरणों को चूमती
बेमोल बेंच देता है, ईमान आदमी
सामने नजर के,जब वो है घूमती।।
उपदेश सारे बंद किताबों में कीजिए
भूख में नजर बस, आती है रोटियां।।
रोटियों के वास्ते, सुबह और शाम है
रोटियों के वास्ते तो, सारे काम है
मिलती जिन्हें हैं रोटियाँ वो खुश नसीब है
रोटी की चाहतों में, सब गरीब हैं
ताउम्र दौड़ते रहे, “चंचल” यहाँ वहाँ
अपनों के साथ खाने, दो जून रोटियाँ।।
रोटियाँ रोटियाँ….