मां
मां

मां

 

मां एक अनबूझ पहेली है,
मां सबकी सच्ची सहेली है,
परिवार में रहती अकेली है,
गृहस्थी का गुरुतर भार ले ली है।
ऐ मां पहले बेटी,फिर धर्मपत्नी,
बाद में मां कहलाती हो।
पहली पाठशाला,पहली सेविका तूं
घर की मालकिन कहलाती हो।।
बुआ,बहन,मामी,मौसी कहलाये,
माता,दादी,नानी नाम बुलवाये,
परिवार की जन्म दात्री नाम सुहाये,
अबला,सबला, दुर्गा रूप धराये।।
दो परिवारों के बीच की कड़ी हो,
न्याय के लिए खूब लड़ी हो,
जग में उच्च है जनक,जननी तूं उनसे भी बड़ी हो,
हर मौके पर सदा,तूं ही मिली खड़ी हो।।
लोरी में हाथ का साथ,धूल कुलीन है,
हरपल हरक्षण रहती तूं नवीन है,
अस्थिरता को स्थिर करने में प्रवीन है।
खुशी में खुश इतनी,हारी सारी हसीन हैं।।
आंचल में दूध नैनों में नीर है,
सुखी समृद्धि की प्रणेता,दृढ़ प्राचीर है,
तेरे रूप अनेक तूं एक कर्मवीर हैं,
मां जीवन का स्रोत,जग तेरा तश्वीर है।।
मां एक सहारा है,भव का किनारा है,
मां देती एक जिंदगी,मां-मां एक नारा है,
मां की छटा अनुपम,मातृ धन न्यारा है,
कहें आर०बी०,बिन मां पिता कुंवारा है।।

 

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लेखक: राम बरन सिंह ‘रवि’ (प्रधानाचार्य)

राजकीय इंटर कालेज सुरवां माण्डा

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश )

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