दोस्त बनकर के रहो मत

दोस्त बनकर के रहो मत | Ghazal dost banker

दोस्त बनकर के रहो मत

( Dost banker ke raho mat ) 

 

दोस्त बनकर के रहो मत
दुश्मनी मुझसे करो मत

 

प्यार की आंखें मिलाओ
मुंह चढ़ाकर के चलो मत

 

दिल से ही अपनें भुला दो
हिज्र में उसके जलो मत

 

पढ़ ली है आंखें तुम्हारी
और कुछ भी यूं कहो मत

 

हो गया वो ग़ैर तुझसे
अब उसी से ही मिलो मत

 

हाँ भुला उस बेवफ़ा को
आज़म यूं आहें भरो मत

 

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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