मुहब्बत की बस ये कमाई रही
मुहब्बत की बस ये कमाई रही
मुकद्दर में अपने जुदाई रही
बुरे लोगों से दूर हम तो रहे
शरीफों से बस आशनाई रही
बहन की ये राखी का देखो कमाल
सदा मुस्कुराती कलाई रही
ग़लत काम उससे हुए ही नहीं
मुकद्दर में जिसके भलाई रही
बहुत प्यार इससे किया उम्रभर
मगर ज़ीस्त फिर भी पराई रही
कई सर्द मौसम गुजरते रहे
फटी मुफ़लिसों की रजाई रही
भले सामने बावफ़ा तुम रहे
मगर दिल में तो बेवफ़ाई रही
ज़मीं पर भी रहकर हमेशा ‘अहद’
ख़ुदा तक हमारी रसाई रही !
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लेखक :– अमित ‘अहद’
गाँव+पोस्ट-मुजफ़्फ़राबाद
जिला-सहारनपुर ( उत्तर प्रदेश )
पिन कोड़-247129