दोस्त मेरे क्या  ये तेरा हौसला है
दोस्त मेरे क्या  ये तेरा हौसला है

दोस्त मेरे क्या ये तेरा हौसला है

( Dost mere kya ye tera hosla hai ) 

 

 

दोस्त मेरे क्या  ये तेरा हौसला है

दुश्मनों से देखा मैंने क्या लड़ा है

 

खो गया हूँ शहर की गलियों में ऐसा

रास्ता कोई न मंजिल का मिला है

 

हाथ उससे अब नहीं यारों मिलेगा

हो गया अब उससे इतना फ़ासिला है

 

अब मिलेगे हम नहीं दोनों कभी भी

हो गया मुझसे सनम ऐसा जुदा है

 

दिल मेरा घेरा गमों ने आकर ऐसा

दिल ख़ुशी के लिए ही जल रहा है

 

बात दिल की वो नहीं कहता मगर कुछ

आंख भरके रोज आज़म देखता है

 

 

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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