लगे | Dr. Kaushal Kishore Srivastava Poetry
लगे
( Lage )
जड़ जगाने में जिनको जमाना लगा ।
उन दरख्तों को पल में गिराने लगे ।।
उनकी इतनी हवस कि खुदा क्या करे ?
सारे दुनिया के भी कम खजाने लगे ।।
दफन खुद में ही अब शख्श होने लगे ।
ताले खुद ही जुवा पे लगाने लगे ।।
गीत हमने चखे है शहद से भरे ।
शोर हमको तो अब के तराने लगे ।।
डांटते हैं हमें खुद के लख्ते जिगर ।
जब से पैसे क्या थोड़े कमाने लगे ।।
शख्श ईमान की बात करता है वह ।
देखने सब उसे जेल जाने लगे ।।
जिनको खुद के मकां है किलो पर बने ।
नीचे की झुग्गियों को जलाने लगे ।।
लेखक : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव
171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)