टपकती उसके न लब से शबनमी है
टपकती उसके न लब से शबनमी है

टपकती उसके न लब से शबनमी है

( Tapakti uske na lab se shabanami hai ) 

 

 

टपकती उसके न लब से शबनमी है
प्यार की उसमें नहीं वो ताज़गी है

दोस्ती थी जिससे ही गहरी ये मेरी
अब उसी से ही हुई ये दुश्मनी है

 

कुछ कहा भी तो नहीं उससे ग़लत
ये कैसी उसको भला नाराज़गी है

क्या हंसी होगी लबों पे देख मेरे
रोज़ आंखों में ग़मों की ही नमी है

पास में वरना सभी मेरे यहाँ तो
जिंदगी में बस उसी की इक कमी है

कर दिया इंकार करके प्यार जख्मी
इस क़दर जिससे हुई ये आशिक़ी है

हम सफ़र अपना नहीं आज़म बना वो
आरजू जिसकी मुहब्बत की रही है

शायर: आज़म नैय्यर

(सहारनपुर )

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