डा. तरूण राय कागा जीवनी | Dr. Tarun Rai Kaga Biography in Hindi
कागा जीवनी
दिनांक एक जनवरी 1946 को प्रभाणी परिवार में श्री रामचंद्र कागा के घर श्रीमती सांझी देवी की कोख से बालक का जन्म हुआ जिसका नाम तुला राशि में तगो तोतो तिलोक तिलक तोकल नाम में चयन करना था।
परिजन किसी एक नाम को निश्चित नहीं कर पाये गांव भाडासिंधा तालुका छाछरो ज़िला थरपारकर सिंध बरस़ग़ीर हिंदुस्तान बरोज़ 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान मुल्क का नाम से घोषित हुआ!
बालक शक्ल सू़रत मूर्त में सुंदर लाडला था परिजन में नन्हें बच्चे को सब नामों से पुकारा करते थे ननिहाल में तगो तोतो नाम गांव में तगो तोल आम था कुछ लोग (तोकल बेड़ा पार)पसंद करते थे सबकी राय भिन्न थी!
सन् 1954 में पहली बार सरकरी स्कूल खुला चाचा श्री भलूमल ने उंगली पकड़ दाखीला कराई मास्टर श्री सोनजीमल राठोड़ गांव चेलहार तैनात थे सब शागर्दों में क़द काठी में दुबला पतला कमज़ोर था अंतर्मन में डर होता था ।
उस समय घर वाले मस्ती करने पर मास्टर का ख़ोफ़ बताते थे मास्टर बहुत बड़ा महान विचार धारा का व्यक्ति था स्कूल मिडिल तक सिंधी थी जहां कक्षा सातवीं के बाद एक साल फ़ाइनल स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट प्राप्त होता था जो मास्टरी ट्रेंनिंग दो साल के लिये योग्यता रखता था !
मेरा गांव भाडासिंधा अकेला मेघवाल जाति का था जो चारों ओर पूर्व गांव विचलो पार (राजपूत) भारमल जो गोठ (मेघवाल) छछी (मुस्लिम) पनपालिया (मुस्लिम) दक्षिण दिशा गांव लपलो(मुस्लिम) पश्चिम मिल काम ( मुस्लिम राजपूत) कलूंझरी (बजीर-पीर सोढ़ा) उत्तर त़रफ़ गांव मालहे जो पार (भोजराज सोढ़ा +भील) एंव ताल खड़ी+मुस्लिम) आदि से घिरा था।
लेकिन भाई-चारा अनुकरणिय था समस्त गांव दो से पांच किलो मीटर की परिधि में दूर थे मेघवाल समाज की ज़मीन जायदाद अपनी थी पेयजल का स्रोत कूंआ (तला) था जो लगभग 150 फ़ुट गेहरा था जिससे पानी ऊंटों गधों बेलों से खींच बाहर निकाला जाता था ।
पानी पीने में कसेला था महिलाऐं सिर पर मटका भर घर लाती थी कुछ लोग ऊंटों पर पख़ाल गधों पर जांतरा जो लकड़ी का बना होता था जिस पर दो घड़ा भर कर ढोते थे मीठे पाने के पार होते थे जहां पानी की क़िलत होती थी वहां छोटी चालीस फ़ुट गेहरी होती थी लाया करते थे कूंओं से पानी निकालने के साधन को कोस चड़स कहते थे जब कि बेरियों से पानी चड़सी होती थी जो चमड़े से बनती थी!
सन् 1961 में मेरे हम किलासी श्री ताजनदास श्री पालहोमल श्री फतूमल ने मिठ्ठी सींटर में इम्तह़ान दिया जिसमें हम चारों पास हुए चारों का चयन ट्रेनिंग के लिये हुआ मगर परिजनों ने मना कर दिया जो बाद में 1963 में बंद कर दिया 1966 में पुलिस की भर्ती हुई जिसमें मेरा ओर श्री पालहो मल का चयन हुआ पालहो मल ने ज्वाईन किया मैंने मना कर दिया!
मेरे पिता से तीन बड़े भाई श्री सोनो मल मूलोमल सुरजन मल एंव दो छोटे भाई श्री भलूमल हरजी मल थे तीन बहिनें क्रमश: केसू राजी ओर रामी थी !
हमारा संयुक्त परिवार था दो खेत थे एक उमरकोट में धर्मसियो ओर एक रोहिड़ालो छाछरो जो गांव के निक्ट थे चूंकि गांव भाडासिंधा छाछरो उमरकोट सीमा के पास बसा था परिवार साधन सम्पन्न था ऊंट गायें बकरियां ख़ूब थे।
मेरे दादजी ने दो शादियां की थी प्रथम गांव स्वरूप का तला गंढेरों में तह़स़ील चौहटन उनके स्वर्वास के बाद गांव बहड़ाई तालुका उमरकोट बोचियों में!
पहली क्लास से फ़ाइनल तक क्रमानुसार अध्यापक
1, श्री सोनजीमल राठोड़( मेघवाल) चेलहार 2, श्री तुलजाराम भ्रमण(रोहड़ केल्हण) 3, श्री प्रभूलाल राठोड़(मेघवाल) चाड़िहार 4, श्री हीरालाल पड़ियार (मेघवाल) भोरीलो 5, श्री अब्दुल करीम नोहड़ी भोरीलो 6, श्री सतीदान सिंह सोढ़ा मके जो पार रहे समस्त गुरूजन तमाम मेह़नती ओर पढ़ाई के प्रति लग्नशील ईमानदार संवेदनशील थे!
सन् 1961 को हम चार साथी परीक्षा देने मुठ्ठी गये तब ऊंटों पर सवार होकर गये एक ऊंट हमारा जिस पर मेरे पिताजी मैं ओर ताजनदास थे तथा दूसरे पर पाल्होमल उनके पिता श्री नाथोमल एंव फतूमल थे हमारा पहला पड़ाव गांव भोरीलो में श्री खेताराम पुत्र खंगारमल संजो मेघवाल के घर बत़ौर महमान रहे श्री खेताराम संजो एक जाने माने मशहूर मारूफ़ उस्ताद थे।
हमारा टेस्ट लिया ओर घोषणा की आप उत्तीर्ण हो जाओगे हम चारों पास हुए रात्रि विश्राम के बाद दूसरे दिन मिठ्ठी तह़स़ील जहां क़ेंद्र था हमारे एक रिश्तेदार श्री राधोमल खोखर के वहां ठहरे जहां हमारे खाने पीने का बहुत सुंदर प्रबंध किया गया जो आज तक स्मर्ण है दूध घी दही छाछ मक्खन साग सब्ज़ी लज़ीज़ भोजन भूल नहीं पाये है !
मेरा गांव एक टीले पर बसा हुआ है जहां आने जाने का कोई साधन नहीं था ऊंटों घोड़ों पर आमोदर्फ़त होती थी लारी का आवाज़ यदा कदा छाछरो शहर जाते थे तब सुनते थे लोग आम तौ़र पैदल जाया करते थे मेरे बड़े ताऊ श्री मूलोमल के पास दस बारह सांडें (ऊंटनी) हुआ करती थी जिसका दूध हमें कटोरा भर कर लाते थे ओर पिलाया करते थे वेसे शेष पांचों भाईयों के पास सुंदर ऊंट होते थे जिस पर सवारी करते थे!
खेत अपने होने से ऊंटों से खेती होती थी कुछ लोग गधों बैलों से भी काश्त किया करते थे ज़मीन बारानी होती थी जब बारिश होती थी तब अनाज ख़ूब होता था मुख्य फ़स़ल बाजरा मूंग मोठ ग्वार तिल होता था!
अकाल का प्रकोप गाहे बगाहे हमेशा रहता था तब लोग अपने बुढ़े बुज़र्गों को घर रखवाली के लिये छोड़ जवान पुरूष महिला मज़दूरी के लिये हरे भरे क्षेत्र सिंध पलायन कर चले जाते थे वहां मज़दूरी कर निश्चित समय लोट आते थे!
खेतों का काम परिवार के सदस्य मिल जुल करते थे खेतों से खलियान तक दिन रात परिश्रम करते थे एक दूसरे की मदद करने का रस्मो रिवाज था जिसको लास कहते थे! सगाई शादी सामान्य परम्परागत होती थी।
फ़ुज़ूल ख़र्च नहीं होता था एक पोशोक से गांव की अनेक शादियां हो जाती थी गहना कापर गिल्ट पीतल चांदी सोना के गूंजाइश के अनुसार होते थे महिलाऐं हाथों में चूड़ा हाथी का दांत(आज) के ओर रबड़ का तथा गहना कड़ोला गजरा डुड़ी कतरिया बाजू बंद मुठिया पहनती थी नाक में नथ बींटो बूली कानों में झू़बर (झुमका)डुरगला पनड़ी सिर पर अली गले में तोक बाड़लो कंठी सा़ंकल कंठलो पांवों में पाज़ेब कड़ा साटें नेवर बड़े शैक़ से श्रृंगार करती थी ।
ओढने के लिये चुनड़ी ओढ़ण वायला होता था घाघरा(साठ कली) गुलबदन मीनाकारी घंडभात लहंगा कुड़ती झब्बा कंचली कंचला कांच कशीदाकारी युक्त होता था बारात का ठहराव दो दिनों का था दुल्हन को दहेज देने की कुप्रथा नहीं थी।
पडला का रिवाज था सगाई निक्ट दूर के र रिश्तेदार बिचोलिया बन त़य्य करते थे आम कहावत होती थी घर कण (वर वधु)में फ़र्क नहीं हो गिनायत करना जाने पहचाने पानी पीना छाने पर पूरा भरोसा होता था!
घनिष्ट मित्र श्री ताजन दास के साथ
एक मर्तबा मेरे घनिष्ट मित्र श्री ताजन दास के साथ मेरे पिता जी की अनुमति से ह़ाजी शाह मोहम्मद शर जैमसाबाद गये वहां उनके मनीम का कार्य नोकरी करने लगे वो एक बड़ा ज़मीनदार सरमायदार थी उनकी जान पहचान सियास्त में ख़ास़ थी ।
एक दिन हमें अपनी जीप से मीरपुरख़ास ले गये जहां हम दोनों ने पहली बार अपने फ़ोटो स्टूडघयो से बनवाये यह घटना सन् 1962 की है दोनों ने ह़ाजी स़ाहब के ज़रिये किसी सरकारी मुलाज़मत की कोशिश की लेकिन दाख के तीन पात स़ाबित हुए हुए इस दरमीयान मैं बुख़ार में मुब्तला हो गया मेरे पिता जी का पैग़ाम आ गया हम दोनों गांव लोट आये मेरी दादी जी का भी देहांत हो गया !
मेरी दादी दमकशी की बीमारी से पीड़ित थी तथा सांसें बड़ी तेज़ी से फूल जाया करती थी इस वजह से वो धतूरा का स़ुलफ़ा पीती थी दवाई अथवा किसी चिकित्सक का उपचार नहीं चलता था एक रात्रि उनका स्वर्गवास हो गया उस रात मेरे पिताजी मेरे ताऊ श्री मूलोमल चाचा श्री भलूमल ह़ाज़िर थे!
मेरे गांव में गत पच्चास हाथों से ओसर मोसर नहीं हुआ था लेकिन सयोग वश पिछले दो माह पूर्व एक मृत्यूभोज हुआ था! मेरी दादी की निशान देही पर उनके चौंरे में चूल्हे की आगोल में गाड़ रखा एक मगिया मिट्टी का बर्तन खोद निकाला जिसका मैं प्रति तक गवाह हूं निकाला गया जिसमें अधिकतर पावली (कोरी) कुछ अधेली रुपये चांदी के निकले गिनती करने पर लगभग 450 रूपये बने।
तीनों भाईयों ने आपस में फ़ेस़ला किया कि गांव वाले रिश्तेदार गिनायत सगे समधी ओसर का दबाव डालेंगे इससे बहत्तर है अपने ओसर मृत्यूभोज का एलान करते है ।
ताऊ श्री सोनोमल चले गये थे तीन लड़के अपने ननिहाल में नाबालिग़ थे ओर ताऊ श्री सुरजन मल भी संसार में नहीं थे जिसकी एक छोटी बच्ची थी ओर छोटे चाचा श्री हरजीमल कंवारा गुज़र गया था ।
तीनों भाईयों ने संयुक्त बीड़ा उठ आया ओर ओसर किया! उस समय पच्चीस कोस चारों ओर आने वाले गांवों वाले समाज के लोगों को बुलाने का प्रावधान था !
भोजन तीन दिन चलता था एक दिन मेहमानों के आगमन के दिन चावल भात घी मन मांगा कटोरियां भर कर देसी चीनी रात्रि को लप्सी घी देशी का प्रचलन था दूसरे दिन शहर(ह़ल्वा) उसी मेहमानों की मांग फर इच्छित भोजन ओर तीसरे दिन गेहूं की रोटी देसी घी में चूर्ण कर खांड से लबालब होती थी तथा बारहवें तक घी की रोटी साग सब़्ज़ी लगा चार चलती रहता जिसको सतराड़ो कहते!
आगंतुकों के ठहरने रहने की माकूल कोई इंतज़ाम जेसे शामियाना तम्बू पख्खा खीमा नहीं था गर्मी सर्दी बारिश में खुले में गुज़ारना होता था किसी पेड़ों की छिया या ओट का सहारा लेते थे ।
जाड़ों मे रात्रि को लकड़ियों का अलाव जलाकर रात गुज़रती थी विभिन्न गांवों से आने वाले अपने साथ भजन कीर्तन करने वाले तंदूरे खड़तगल मजीरे झालर आदि साथ लाते थे जो अपने समूह का मनोरंजन करते थे उनको पीनी का पानी तम्बाकू प्रचूर मित्रा में आपूर्ति होती थी यह सारी परम्परा हमने भी निभाई!
मेरा ननिहाल
मेरे पिताजी की शादी गांव रड़ियाला तालुका छाछरो मेरे गांव भाडासिंधा से लगभग 30 किलो मीटर दूर श्री बीरमचंद आलहाणी पातालिया के घर हुई मेरी नानी श्रीमति नामी बाणिया गांव दूंबाला की थी ।
मेरे तीन मामाजी क्रमश: श्री हंसोमल बलजीमल श्रवण लाल एंव दो मौसी नांजी ओर पदमां थी मेरी माताजु सांझी सबसे बड़ी संतान थी श्री हंसोमल की शादी गांव नोहरालिया पन्नू जाति में हुई उनके देहांत के बाद धूड़ गडरा खूहला जाति में हुई श्रवण लाल की शादी गांव तुगूसर में ओर मौसी पदमां भी वहां ब्याही गई ।
नांजू कि शादी गांव अलू कोटडियो में हुई मेरा मामा बलजी मल जो अध्यापक थे की शादी गांव भोरीलो श्री खंगारमल संजो के घर हुई उस ज़माने में एक शिक्षित त़ालीम याफ़्ता फेमिली थी!
मेरे ननिहाल में उस समय श्री बलजीमल ओर भारूमल दो मास्टर थे मेरा मामाजी अकस़र मेरी शिक्षा के बार में पूछ ताछ करते रहते थे मेरे नानाजी एक भजन गायक संत प्रवृति के व्यक्ति थे मैं हमेशा छुट्टियां बिताने ननिहाल जाया करता था जहां अटूट प्यार मिल तक था!
मैं पढने लिखने में बेहद होशियार था सदेव प्रथम श्रेणी में पास हुआ करता था उस समय मेरे गांव पड़ोसी श्री हठेसिंह श्री भीमसिंह पुत्र महेशसिंह ह़ाल देवीकोट जैसलमेर मेरी ह़ोस़ला अफ़ज़ाई करते थे! हमारा स्कूल श्री तेजूराम स्वतंत्रता सेनानी की कुढ़(गुडाल)में संचालित हुआ करती थी चूंकी श्री तेजूमल 1947 में बंटवारे के समय गांव छोड़ भारत आ गये थे ओर गडरा रोड में बस गये!
1956 में एक प्राईवेट मकान खमरा में शिफ़्ट हो गया जिसका किराया शिक्षा विभाग द्वारा रुपये सात अदा होते थे जो हर माह एक पटेवाला कार्यरत अध्यापक के पगार के साथ भुगतान होता था !
श्री शक्तीराम राठोड़ पूर्व मुख्य अभियंता रेल्वे पाकिस्तान मेरे साथ पढ़ते थे वह क्लास चतुर्थ ओर मैं तीसरी में पढ़ता था चूंकि उनके पिता श्री प्रभूलाल हमारे अध्यापक थे जो डाक्टर राना सी राठोड़ के सगे बड़े भाई थे! मेघवाल समाज के प्रथम डाक्टर श्री रचना बने थे!
सिंध में ढाट के मेघवाल समाज के उस वक़्त मास्टर पुलिस कान्स्टेबल कलर्क सूबेदार जमादार आदि बहुत थे श्री भमरलाल चौहान (‘कागा)पहला एक मात्र वकील था ओर शिक्षा के साथ राजनीति में भी अग्रणी ओर सक्रीय थे ।
मेघवाल समाज के अधिकांश खातेदार होने से समस्त को मताधिकर था वहां आरक्षण शिक्षा राजनीति में प्रतिनिधित्व नहीं था! जब भारत में डा, भीमराव अम्बेडकर ने भारत के संविधान में अनुसूचित जाति अनुसूचित जन जाति का आरक्षण दिया तब शिक्षित वर्ग का एक प्रतिनिधि मंडल पाकिस्तान के प्रथम क़ानून मंत्री श्री जोगेंद्रसि़ह मंडल के पास जाकर मांग की कि पाक के आईन में प्रावधान किया जाये ।
लेकिन उसने यह कह कर मना कर दिया कि यह मुल्क झमूरी इस्लामिक है इसलिये असम्भव है अपने वोट अपनों को दो का फ़ार्मूला सिखाया परिणाम स्वरूप श्री गुलजीमल मेघवाल को खड़ा किया ओर प्रथम मेघवाल एम एल ए बनाया जो एक मिस़ाल क़ायम किया ।
तत्पश्चात पंचायती चुनावों में छाछरो कागिया से श्री घमूमल कागिया रायधन कागिया पंजूमल गंढेर दू़ंंबाला सुखोमल गंढेर सोखरू वस्तीराम जोगू भाडासिंधा आदि भी डी मेम्बर निर्वाचित हुए ओर आज तक सिलसिला जारी है!
मेरा गांव
मेरा गांव भाडासिंधा अकेला एक एसी बस्ती है जहां पर कोई अन्य जाति मेघवाल समाज के अलावा नहीं रहता है कागियों के दस घर रहते है शेष एक दादा श्री लाखोमल जोगू की संतानें है एक बड़े विशाल धोरे पर स्थित है जहां बड़े नीम के विशाल दरख़्त है जो दूर से गांव का आभास कराते है कागा ओर जोगू रहते है ।
अन्य कोई मेघवाल गौत्र भी नहीं है आज कल आबादी बढ़ जाने के कारण पलायन कर अन्य गांवों में लोग चले गये है विकास के नाम पर आज तक बिजली तक मैयसर नहीं है एक पक्की सड़क छाछरो से अवश्य आती है।
मूलभूत सुविधाऐं नहीं है आज से पच्चास साल पहले गांव मेंं सारे परिवार बुनाई का काम करते थे इसलिये कम्बल बरड़ी का एक मशहूर क़ेंद्र था महिलाऐं कपड़े पर हस्तकला कांच कशीदाकारी का नफ़ीस काम करती है ।
गांव में चमड़े की रंगाई स़फ़ाई के दो तीन परिवार काम करते थे आज कल दुकानदारी बाहर हैंडीक्राफ्ट नोकरी पैशा का काम करते है गांव के नोजवान अध्यापक डाक्टर पुलिस कांस्टेबल लेक्चरर वकील आदि पदों पर अपनी सेवायें दे रहे है ।
गांव का युवा श्री जीवन लाल राठोड़ कस्टम कमिश्नर एक इंजीनियर अपनी धर्मपत्नी डाक्टर सहित आस्ट्रेलिया में तैनात है ओर उनका भाई वकील मेह़ताब राठोड़ छाछरो ग्रामीण पंचायत समिति का प्रधान है!
गांव धार्मिक प्रवृति का है बाबा भोलानाथ की मढ़ी है जो श्री श्री 1008 प्रागनाथ के शिष्य था गांव में श्री चतराराम ज्योतिष विधा में एक महान संत था श्री पूंजाराम भी संत थे! चारों ओर अन्य जातियों समाजों से घिरे होने के बावजूद अपना दबदबा बुलंद था अपना सीमाड़ा खेत ज़मीन होने से आज़ाद किसी के पराधीन नहीं है!
मेरे प्रभाणी परिवार के दस घर अभी भी वहां मौजूद हैं जिनका रोज़गार खेती बाड़ी पशुपालन पर निर्भर है शिक्षा के प्रति शून्य है मेरे पड़दादा श्री टोहो मल के ननिहाल होने की वजह से एक जना आकर बसा था शेष परिवार अस़ल गांव कागिया छाछरो में रहते है कुछ हम लोग भारत में गडरा रोड़ ओर चौहटन में रहते है!
हमारी आराध्य कुल देवी देवल मां है जिसकी जन्मस्थली माड़वा पोखरण के पास है ओर ससुराल खारोड़ा जागीर उमरकोट है!
एकल मेघवाल गांव होने पर भी होली दीवाली अन्य धार्मिक त्यौहार हिंदू धर्म की भावना के अनुसार बड़े धूमधाम से मनाये जाते है! हमारे पड़ोसी गांव हिंदू राजपूत बस्तियों वाले गांव विचलो पार माल्हे जो पार जसार कालूंझरी मिलकाम के लोग सिंहार देवीकोट पांचला कीता मूलाना बालोतरा आदि।
विभिन्न गांवों में छितराये बिखरे पड़े हैं यदा क़दा गाहे ब्गाहे मिलन होता है तो बड़े प्रेम आत्मिय भाव से होता है पुरानी पीढ़ी के लोग श्री हठेसिंह सोढा देवीकोट श्री उगमसिंह सोढ़ा सिंहार श्री स्वाईसिंह खावड़िया पांचला गुनगान करते नहीं थकते है!
गांव भाडासिंधा में एक मात्र पेयजल स्रोत कूंआ खारा था आम त़ौर माल मवेशी के उपयोग में आता था कभी कभी ह़ल्क़ भी तर करते थे मीठा पानी के लिये माल्हे जो पार जालखड़ी में कोटडि़यों का पार से बेरियों में खींच लाते थे कोई छूआ छूत भेद भाव नहीं था आपसी लगाव भाई-चारा व्यवहार सुंदर था लोग साधन सम्पन्न सुखी थे!हिंदू मुस्लिम की एकता बेहतरीन थी!
ज़ोर ज़बरदस्ती बेगार नहीं हुआ करती थी सामंतशाही का नामो निशान नहीं था लास का रिवाज था जो समूह बनाकर परस्पर समान रूप से मददगार होते थे हमरचो का गान होता था खाने पीने घी का सेवन प्रचूर मात्रा में होता था !
इज़्जत आबरू सम्मान अदब का विशेष ध्यान रखा जाता था गांव में नंगे सिर कोई नहीं चलता था सिर पर पटका लाज़मी होता था गांव में ऊंट घोड़ा पर सवार मुसाफ़िर गांव की गवाड़ी में उतर पैदल चला करता था !
स्वास्थ्य के क्षेत्र में देशी नुसख़े नानी दादी पर निर्भर थे अंधविश्वास पर विश्वास था भोपा ओझाओं पर भरोसा करते थे चेचक की बीमारी पर शीतला माता का पूजन होता था किसी बच्चे को हो गई तो।
सात दिनों तक किसी कमरे झौपड़े में बंद कर रखते थे अंदर जाने की छूट नहीं होती थी बाहर दरवाज़े पर किसी टूटे फूटे बर्तन में गधे की लीद भिगोकर एतिह़ात वास्ते पैर डुबोकर जाना पड़ता था यह तीमादारी करने वाले पर भी लागू होता था सातवीं दिन किसी खेजड़ी के पैड़ के नीचे पूजन होता था रात को चूल्हा पानी डाल बुझाया जाता था ओर वो ठंडी राख रख पानी डाल माता से मन्नत करते कि अब ठंडे झोले देना हम छोटे बच्चों को गधा बनाकर माताऐं लोट पोट ज़मीन पर कराती थी!
गांव भाडासिंधा
गांव भाडासिंधा को श्री लाखोमल जोगू ने बसाया था श्री लाखो बहुत बहादुर क़द्दावर थे उनके पूर्वज गांव हरियार में रहते थे किसी कारण वश अपने धणीके से अनबन हुई आपस में लड़ाई झगड़ा हुआ।
वहां के राजपूत जागा का क़तल हो गया इसलिये आनन फ़ानन में गांव हरियार जहां देवी शक्ति मिलहण माता का सथान है छोड़ना पड़ा भागते लुका छुपी करते रहे किसी ने शरण नहीं दी।
अंत में किसी ने गांव छोड़ में रहने वाले एक फ़की़र ईस्प समेजा का पता बताया जिसकी दूर दूर तक ख्याति थी की पनाह में आये जहां किसी के जाने की बिसात़ नहीं होती थी वहां कुछ दिन रहने के बाद गांव बिजाला में आये वहां से श्री लाखोमल गांव लपलो आ गये ।
वहां कुछ साल रहने के बाद अंग्रज़ हाकम तरवट जब लोगों को ज़मीन आंवटन कर रहा था तब अपना गांव अलग बसाने के इरादे से गांव लपलो से उत्तर दिशा मे जहां सिराई डाकू छिपते थे वहां भाडा नाम के बड़े गढ़े होते थे ओर सिंधा यानी अंतिम सीमा थी वहां अपना खूंटा रोप दिया इस वजह से गांव का नाम भाडासिंधा पड़ गया ।
गांव लपलो में पार में लाखे की निजी बेटियां थी 1971 तक जिस किसी व्यक्ति का देहांत होता था तो क़बरस्तान लपलो तीन किलो मीटर शव यात्रा निकलती थी छोटी उम्र के बच्चों का मास़ूम क़बरस्तान गांव भाडासिंधा में था ओर चारों ओर पसगरदाई में अपना दबदबा था मेरी फड़दादी लाखो के बेटे श्री सोहजोमल की पुत्री थीं!
मेरे पड़दादा टोहोमल के ननिहाल होने के कारण हमारा परिवार गांव भाडासिंधा मे स्थाई बस गया ओर टोहोमल के नाम ज़मीन आंवटित हुई जबकि हमारा अर्जुन परिवार मूल गांव कागिया में रह गये!
मेरे अंतरंग मित्र श्री ताजन हालचंद पाल्हो फतू महेंद्रो मलूको बहादरो गुलो ख़ानू जेतो डूडो भारथो खेतो खंगारानी नांजो देचद नेतोमल जालो गुमानो गुलाब अनगिनत थे ओर गांव की बुज़र्ग पिता तुल्य आमजन आदरणीय बुढ्ढे माताऐं प्यार करती थी ।
मैंने साधु अजीम से हिंदी सीख ली थी जो श्रीमद भागवत गीता का पाठ सुनाता था रामायण प्रेम सागर विश्राम सागर महाभारत हनुमान चालीसा सुनाया करता ओर मेरी मौसी साध्वी गैनी को भी सिखाया था!
मेरी सगाई सन् 1970। में हुई थी तब मेरी सगाई की रिहाण में लगभग एक क्वंटिल से अधिक गुड़ मिश्री खटमीठे मेरे मित्रों की ओर से इक्कठे हुए थे तो प्रथम बार एसी घटना थी !
मेरे माता पिता का साया मेरे सिर से 1965 को उठ गया था मेरा छोटा भाई राणा राय मेरी चार बहीनें बारी मेघू हुरमी ढेली हम छह सदस्य रह गये थे वो अंधकार मय समय आज तक याद कर आंखों में ख़ून के आंसू बरबस टपक पड़ते है भगवान हर किसी के मां बाप को दूर नही करे!
कमा कागिया
चंद किवदंतियां
जब पुश्तेनी जागीर खारोड़ा को छोड़ देथा चारण ओर कागिया मेघवाल ढाट थळ की ओर निकले तब कुछ दिन राणियार में रुकने के बाद नये नवेले गांव कमड़ार बस गये !
1, कमे बसाई कमड़ार वंश चौहान वीर
माता देवल मेहर कीनी प्रसन्न रामा पीर
2, कमे बसाई कमड़ार वंश चौहान वीर
पाकेट ऊंट पलाणिया नहायो गंगा नीर
3, कमे कियो कमठाण चहूं दिशां हुओ चावो
घर बाळिया सब रा रली रहियो नहीं गाभो
कहते है कि उस ज़माने में कमा कागिया ह़ुक़ा पीता था एक दिन संयोग वश प्रात: हुक़ा सुलगाने के लिये आग नहीं मिली चूंकि माचीस दियासलाई नहीं होती थी ओर आग को सहज कर राख में छुपाये रखते थे ।
दूसरे परस्पर मांग कर लाते थे समस्त घरों पर मांगने पर जोत नहीं मिली तब दोनों मिंयां बीवी ने आमने सामने बेठ लकड़ी का मंथन कर आग निकाली ओर ह़ुक़ा तैयार कर पिया ओर अपने घर में वो जलते अंगार फेंक आग लगा दी ओर पूरा गांव जल स्वाहा हो गया ओर ख़ुद गांव छैड़ चलने लगा तब कुछ लोग साथ चलने लगे ओर शेष ने अपनी अपनी राह पकड़ी लेकिन वेडा देथा ने साथ नहीं छोड़ा ओर घोषणा की कि जिधर कमा कागिया जायेगा वहां मैं साथ रहूंगा ।
बाद में यह लोग छाछरो के निक्ट उत्तर दिशा मे एक टीले पर आकर बस गये वहां दोनों ने बेरियां खोदी ओर पानी का स्रोत बनाया और सुख शांति से रहने लगे ओर गांव का नाम वेडे का पार रखा लेकिन आम लोग कागीयां रो गांव कहने लगे ।
इस दौरान सरकार द्वारा राजस्व गांव की रिकार्ड में दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू हुई तब चारण समाज राजपूत आदि ने सर्व सम्मत से फ़ेस़ला किया कि मेघवाल जाति का कोई गांव नहीं है नवसृजित गांव को अब जुगतो चारण सरकार में लिखा जाये ओर आमजन को भी अवगत कराया जाये ।
फल स्वरूप एक भोज का आयोजन किये गया ओर सब जनता को कहा कि अब कागिया गांव नहींं जुगतो चारण बोला जाये लेकिन नहीं हो सका आज तक सरकारी रिकार्ड में गांव का नाम जुगतो चारण दर्ज होने के बावजूद आम जन की ज़ुबान पर कागिया गांव बोला जाता है ।
जो एक उदाहरण है! साठ के दशक में मेघवालों के नाम सूरे जो तड़ सूजे जो तड़ भारमल जो गोठ के गांव आम बोल चाल में बने मगर मान्यता में रोड़े अटक गये!
कागा के बारे में कुछ कवि जनों की पंक्तियां:-
1, कागा कुत्तां कुमाणसां जीभां अवगुण जहां
आडी डीजे भां घणी दूर बसजे वहां
2, कागा सब तन खाईयो चुन चुन खाईयो मांस
यह दो नैन मत खाईयो मने पिया मिलन की आस
3, कागा किसका धन हरत कोयल किसको देत
मधूर वचन के कारण सब अपना कर लेत
4, पहले यह मन कागा था करता जीवन घात
अब तो मन हंस भया मोती चुग चुग खात
5, तन उजला मन सांवला बगुला कपटी भेस
गण सूं तो कागा भला बाहर भीतर एक
6, कागा अपनी सोच को ज़रा बदल कर देख
तुमसे बुरे बहुत है आंखें खोल कर देख
डा, तरूण राय कागा पूर्व विधायक कवि साहित्यकार चौहटन ज़िला बाड़मेर राजस्थान के दो पुत्र बड़े बेटा श्री ललित पैशा खेती चार बच्चे , हेमंत हितेंद्र भवेंद्र पुत्र एक बेटी वर्षा छोटा बेटा युवराज प्राचार्य स्वामी विवेकानंद माडल स्कूल चौहटन दो संतान पुत्र गर्वित पुत्री निहारिका मेरा पिता श्री रामचंद्र रामचंद्र का पिता प्रभोमल प्रभोमल का पिता टोहोमल टोहोमल का पिता पूरोमल पूरोमल का पिता अर्जुन दास अर्जुन दास का पिता मोटाराम मोटाराम का पिता कमाराम कागिया ।
कमा कागिया एक दमदार
उस वक़्त कमा एक नामी ग्रामी शख़स़ियत थी जिसका डंका बजता था खारोड़ा से पलायन कर ढाट की ओर आगमन की अगुवाई कमा ने की थी कागिया चौहान वंश से बहिष्कृत मेघवाल बन गये ।
उस समय एसे कठोर सामाजिक बंधन प्रावधान थे लेकिन कागिया जोगू परिवार ने कभी देथा चारण से बेवफ़ाई नहीं की छाया की भांति साथ निभाया आराध्य कुल देवी के वचनों का शत-प्रतिशत पालन किया जिसमें प्रमुख मर्द के कानों का छेदन नहीं करते औरतोंं के पायल में घुंघरू बजने वाले कोई ज़ेवर या वस्तू पक्का मकान विशैष कर माडी़ बनाना जबकि खारोड़ा में इस बंदिश से पहले सबके पक्के मकान होते थे ओर कोई बंधन नहीं था!
अब नयी रीति आज तक परम्परा यथावत जारी है!कमा कागिया की संक्षेप में जिज्ञासु जानकरी निम्न प्रकार है!
अर्जुन के दो पुत्र थे 1, पूरा 2,जीवण
मोटाराम के दो पुत्र थे 1,अर्जुन 2, महेश
कमा के छह पुत्र थे 1, मोटाराम 2, प्रेमाराम 3, हरदास 4, खंगार 5,डेका 6,जीवा
कमा पुत्र सुरजन पूत्र मेहाराम थे समय के थपेड़ों के साथ गांव कागिया मिठड़ियो चारण मिठड़ियो सुथार ऊगे जो पार कीतारी गडरा नगर पारकर भाडासिंधा चेलहार दोबाहर करनोर दादिये जो तड़ मींहल जो तड़ वरणाबो जोगी मढ़ी मिठा तड़ टंडो आल्हायार आदि विभिन्न गांवों मे फेल गये, जो अन गिनित है!
1947 को हिंद पाक विभाजन 1965 एंव 1971 की भारत पाक लड़ाई में आकर बसे गांव हरपालिया आलमसर धनाऊ चौहटन बूठ राठोड़ान वावड़ी कला वींजासर स्वरूप का तला गोहड़ का तला आगीन शाह का तला मिंये का तला समेले का तला बिजराड़ देदूसर भोजारियो गफ़नें शोभाला नवातला मिठे का तला इटादा जुम्मे की बसती गडरा रोड पणेला राणासर गुजरात में थराद बीकानेर में पूगल चक दो एडी चक छह एडी टूडीओ आदि गांवों में निवास कर रहे है ।
सबकी आर्थिक सामाजिक पारिवारिक स्थिति सुदृढ़ है सरकारी मुलाज़िम हुनर व्यापार खेती में अपना रोज़गार कर रहे है! पाकिस्तान में राजनीति क्षेत्र में श्री घमूमल चैलाणी श्री रायधन ओर शिक्षित वर्ग में श्री सतरामदास कागिया श्री मारूमल कागिया गांव दादिये जो तड़ एंव मास्तर मोटूमल धनानी मास्तर कलोमल माधाणी मास्तर लूंगमल मिठड़ियो ओर वकील श्री भमरलाल चौहान कागिया प्रमुख नुमांयां रहे!
शिक्षा विभाग में सिंध स़बे की प्रथम महिला एक मात्र श्रीमति कमला निदेशक पद पर रह चुकी है एंव विभिन्न पदों पर कार्यरत है,!
माता पिता
मेरे माता पिता दोनों सात्विक धार्मिक प्रवृति के धनी थे कभी घर में कलेश कलह का नामो निशान नहीं था मेरा बच्चपन बहुत अच्छी त़रह़ से बीता शिक्षा आगे पढ़ाना अकेला बेटा पुत्र मोह की वजह से बाहर नहीं भेजना चाहते थे उस समय मानसिकता अलग ही हुआ करती थी ।
सन् 1965 में मां बाप का साया 6 माह की दूरी से सिर से उठने के बाद एह़सास हुआ मेरे से दो साल छोटे भाई श्री राणा जो कि पुश्तेनी पैशा कम्बल पट्टू बुनने में दक्ष था ओर मेरे चाचा श्री भलूमल के साथ गांव छोड़ छितरियो पार ढाणी बनाकर वहां काम करने लगे और मैं फ़कीर मौहम्मद ह़ुसीन हालेपोटो खाण जिनका कारोबार उमरकोट में आटा फ़लोर मिल एवं लकड़ी आरा मशीन तथा फ़क़ीर ब्रदर्स बस सर्विस काम था जो मेरे पिता के घनिष्ट मित्र थे के पास उनके बुलावे पर चला गया चूंकि उनको मालूम हो गया था कि मेरे पिता फ़ोत है चुके है !
उस समय वन विभाग में फ़ारेस्टर की वेकेन्सी निकली थी मुझे अपने साथ मीरपुर ख़ास ले गया ओर दरख़्वास्त लिख पैश की तथा आश्विसन मिला कि कल तक आर्डर हो जायेगा मैं मीरपुर ख़ास में मेरे भाई श्री हीरोमल जो एक कपास की मिल पर कार्य करते थे रुक गया दूसरे दिन जब वन विभाग दफ़तर में गया तो उस आफ़सर ने यह कह कर मना कर दिया कि आप हिंदू है मैं नोकरी नहीं दे सकता ।
मैंने उस कपास मिल मालिक से फ़ोन पर उमरकोट फ़क़ीर मौहम्मद ह़ुसीन को बताया तो उन्होंनेे वापिस उमरकोट आने को कहा ! उस समय फ़ोन व्यवस्था इक्का दुक्का थी!
मेरे भाई ने मुझे कहा मिल में लग जाओ मैं कुछ दिन वहां रहा मगर मुझे अटपटा लगा ओर छोड़ कर उमरकोट आ गया जहां फ़क़ीर स़ाह़ब ने उमरकोट बीच बज़ार में प्राईवेट क्लिनिक में डा, मोहम्मद स़िदीक़ी के वहां कम्पाऊंडर लगा दिया मेरे खाने पीने रहने ठहरने सोने का इंतज़ाम फकीर कार्यालय में हो गया ओर रोज़गार अच्छा चलने लगा इस दरमियान मेरा भाई मुझ से मिलने उमरकोट आया ओर बोला अब वापिस घर चलो खेती बाड़ी करनी है!
मैं नोकरी छोड़ गांव चला आया जहां घर में एक गाय थी वो मर चुकी थी टोघड़ा चालीस रुपये में बेच दिया ओर ऊंठ रुपये 800 में मेरे मामाजी मास्टर बलजीमल को बेचान कर किया अब हमारे पास पांच बकरी दो गधे एक ऊंट बचा!
ओर मैंने मामा जी की राय पर मेरे ननिहाल गांव रड़ियाला में किरियाणा की दुकान खोल व्यापार करने लगा! जब मैं पहली बार भारत आने के बाद माह जून 2024 को वहां गया तो उस समय के जो छोटे थे उन्होने काफ़ी भूले बिसरे संस्मर्म सुनाये चूंकि बुज़र्ग कोई बचा नहीं था !
सन् 1971मैं अपने गांव भाडासिंधा लोट आया ओर अपने घर में निजी क्लीनिक खोल प्राईवट प्रेक्टस करने लगा जो शानदार कमाई होती थी! इस दौरान मेरे जीजा जी श्री खंखणराम खोखर ने मेरी सगाई अपने बड़े भाई श्री भीखाराम के घर गांव मडुआ (मके जो पर) में अन्य दी! लगा मगर””””
चरस का चस्का
1971में दीपावली बाद मैं ओर श्री ताजन दोनों छाछरो किसी काम से गये वहां श्री साहूमल मूलानी कोडेचा पशू अस्पताल में कम्पाऊंडर थे मिलने गये खाना भी वहां खाया श्री ताजन वुडबेन सिग्रेट पीने का आदी था ।
कभी कभी मैं कश मार देता था श्री ताजन ओर साहूमल दोनों ने मुझे चरस पिलाने के इरादे से सिग्रेट में डाल दो कश दे दिये जिसकी बदबू धीरे धीरे मेरी नासिका में मह़सूस होने लगी तथा हम दोनों पैदल गांव फांगालिया के लिये रवाना हुए बीच में पड़े खेतों में मतीरे हमने तोड़ अपनी प्यास बुझाई ।
मगर मुझे चरस ने अपना अस़र दिखाना शुरू किया उल्टियां आना शुरू हो गई आहिस्ते चलते फांगालिया पहंचे वहां घी डाला खाना परोसा गया लेकिन मैंने नहीं खाया ओर दस्तें भी शुरू हो गये ।
सारी रात जाग कर गुज़ारी स़ुबह़ बिना नाश्ता किये मेरे ननिहाल गांव रड़ियाला पहुंचे वहां स्नान आदि किया तब कुछ राह़त मिली तब तक ताजन ने चरस वाली बात छुपाये रखी जो वापिस घर आने पर राज़ खोला ।
यह मेरे जीवन का कटू अनुभव था मुझे बच्चपन से बीड़ी सिग्रेट जर्दा नसवार से नफ़रत रही ! हमारे गांव में उस ज़माने में युवा पीढ़ी जागरूक थी जो शादी ब्याह में फ़ुज़ूल ख़र्च कराने के ख़िलाफ रहती थी ओर नशाबंदी की महिम पर बेदार थी ।
उस समय बारात वालों की बीड़ी सिग्रेट पर पाबंदी लगा रखी थी जिसका प्रभाव अन्य गांवों में होने लगा!
1971 की लड़ाई में भारतीय सैना छाछरो क़ब्जे में कर कंटियो उमरकोट तक पहुंच चुकी थी जिसकी अगवानी श्री लक्ष्मण सिंह सोढा पूर्व रेल मंत्री पाकिस्तान कर रहे थे जो जंग से पहले अपने परिवार सहित पहले आ चुके थे !
छाछरो फ़तह़ के दूसरे दिन श्री लक्षणसिंह सोढा छाछरो अपने दल बल के साथ आये अपनी कोटड़ी में समस्त हिंदू ब्रादरी के लोगों को बुलाया ओर कहा अब कोई भी भारत चलना चाहे रास्ता खोल दिया है अब आपकी मर्जी उस मिटिंग में मैंने शिरकत की थी!
प्रत्येक गांव मे पलायन करने पर राय मशोरा होता रहा उथल पुथल अफ़रा तफ़री मच चुकी थी नफ़ा नुक़सान लाभ हानि का गणित लोग लगाने लगे महाराजा भवगनी सिंह जी के साथ श्री लक्ष्मण सिंह आये थे!
शिमल समझोते तक छाछरो पर भारत का शासन था बार्डर कमिश्नर श्री कैलाश दान उज्जवल थे भारत सरकार के समस्त विभाग कार्यरत थे!
पलायन
मेरे ससुराल वालों ने यकायक गांव के समस्त हर वर्ग के लोगों ने सर्व सम्मति से निर्णय किया भारत जाने का हमें भी संदेश भेजा कि हम लोग भारत जा रहे है आप भी चलो ।
यह सुन हमारे पैरों तले ज़मीन खिसक गई जेसे सिर मुंडाते ओले पड़े हो मेरा गांव किसी के मातह़त या मोह़ताज नहीं था गांव में राय मशोरा हुआ लेकिन यकराय नहीं हो सके अधिकांश पलायन के पक्ष में नहीं थे ।
उनका मानना था इतनी बड़ी संख्या में कहां रहेंगे चूंकि उस समय मारवाड़ भारत की परिस्थितियां अनुकूल नहीं थी! मेरा गांव बड़ा विशाल स्वतंत्र विचार धारा वाला स्वाभिमान प्रवृति का था परंतु मेरे परिवार के विक्ट वातावरण उत्पन्न हो गया ।
मेरे चाचा श्री भलूमल ने हमारे गांव के बात चीत कर भारत चलने की ह़ामी भराई प्रागानी परिवार के लोग तैयार हो गये ओर श्री हंसोमल जोगू मिठड़ियो चारण वाले दो चार ऊंट लेकर आये हमने खाने पीने का सामान उन पर लाद कर दिसम्बर 1971 के आख़री सप्ताह में पैदल रवाना हुए ओर एक रात्रि मिठड़ियो में रहकर दूसरे दिन शाम को गांव शोभाला जेतमाल पहुंचे वहां श्री डूंगरो जी पंवार ने एक धोरे पर ठहराया ओर कुछ लोगों को खाने पीने भोजन का इंतज़ाम किया!
खान पान का भारी संकट खड़ा हो गया मुझे सब लोगों ने कहा कि श्री तेज़ूराम जो कि गडरा रोड़ में रहते थे की पूछ ताछ की तो मालूम हुआ वो लड़ाई की स़ूरतह़ाल के कारण बाड़मेर रहते है ।
मैं स़ुबह सवेरे एक पुरानी बस से सवार होकर वाया चौहटन बाड़मेर पहुंचा भेलीराम की सराय के पास खुले मैदान में बस रुकी मैने मालूमात की तब किसी ने बताया कि श्री तेजूराम ढाणी बज़ार में चंचल नाथ की मढ़ी के पास रहता हैं मैने ढूंढ कर घर पहुंचा वहां बच्चे ओर मेरी मामी तेजूराम की घरवाली मिली ।
मैंने सारी ह़क़ीक़त सुनाई उन्हों ने मुझे भोजन कराया ओर कहा तेजूराम गडरा रोड़ अकेले रहते है आप वहां जाओ मुझे गडरा रोड़ जाने वाली किसी को साथ भेज बिठाया लगभग 3 बजे बस रवाना सांय 8 बजे गडरा रोड़ पहुंची बस उतरते बताये गये कारख़ाने पर मामा श्री तेजूराम मिल गये मेरी पहचान कराई ।
हम दोनों घर गये वहां मूंग की दाल में आटा गौंध बाटियां पकाई और हम दोनों ने घी में चूर कर खाई सारी रात जाग गुजारी् गांव के हालात पूछे ओर भारत आने की नाराज़गी ज़ाहिर की ओर पीछे रहने वालों को स्पष्ट मना कर दिया ।
किसी को घर गांव नही छोड़ना है फिर सीमा खुली होने से आवागमन जारी था लोग अपना ज बेचने के लिये आते को नहीं आने की ताकीद करता इसलिये गांव भाडासिंधा वालों ने बाद में किसी ने पलायन नहीं किया ।
श्री तेजूराम अकेले मात्र व्यक्ति थे जो विभाजन के समय गांव छोड़ परिवार सहित भारत आये थे मुझे एक पत्र श्री पेमाराम बालाच गागरिया के नाम लिख भेजा कि इनको किसी ऊंट पर शोभाला भेज देना ओर मुझे गागरिया तक जाने के लिये बस में बिठाया।
मैं गागरिया में हमारे गांव की बेटी चौथी जो वहां ब्याही थी अपने घर ले गई ओर रात्रि विश्राम उनके घर किया दूसरे दिन भौजारिया वालों के साथ भौजारिया गया ओर रात वहां ठहर स़ुबह़ पैदल शोभाला पहुंच गया! मुझे श्री तेजूराम ने सुझाव दिया कि आप गांव अभे का पार आ जाओ यहां पानी मीठा ओर बहुत है!
मैंने सारी बात बुज़र्गों को बताई जहां मिठड़ियो वालों ने शोभाला में रहने की अपनी इच्छा जताई जबकि हमारे परिवार ओर प्रागानी ने अभे का पार चलने की मंशा ज़ाहिर की जहां आकर जूलाई तक रहे समया गुज़ारा!
मेरे ससुराल वालों ने गांव बि़डाणी छोड़ बिजराड़ चले गये ओर फिर सरकार ने सहायता राह़त शिविर खोले तब मेरे जीजा श्री खांखणजी ओर परिजन भारत अधिकृत पाक सीमा में गांव इब्राहिम का तला चले गये जहां अपना गांव छोड़ आने वालों की भार भरकम भीड़ थी छाछरो के इर्द गिर्द के समस्त परिवारों का जमावाड़ा था!
इस दौरान मेरे ससुराल वालों ने शादी करने के इरादे से लग्न तारीख़ 21 मई 1972 निश्चित कर दी हमें बारात लाने को अवगत कराया प्रकृति की अद्भुत रचना सगाई सिंध में शादी हिंद में बिना घर आंगन झुग्गी झौंपड़ी जले पराई बस्तियों में हमने बारात अभे का पार से तीन ऊंटों पर गांव इब्राहिम का तला लेकर गये ओर वापिस आये ।
इस बीच फ़रमान जारी हुआ कि जो शरणार्थी केम्प खुल चुके है उनके अलावा जो लोग हैं पाक वाले क्षेत्र में चले जायें ओर यह भी सुगबुगाहट होने लगी की फोजें किसी भी समय वापिस लोट सकती है ओर जीता हुआ क्षेत्र पाकिस्तान को दोबारा सौंपा जायेगा!
हम लोगों ने गडरा रोड़ के पास छहे की तलाई पर डेरा डाला एक माह तक वहां रहे ओर एला हुआ सीमा बंद होने वाली है राजनीति दलों में खलबली मची काफ़ी प्रति पक् के नेता सक्रीय हुए श्री अटल बिहारी वाजपेयी श्री भैरोंसिंह शेखिवत श्री जगदीश प्रसाद माथुर महारणी विजय राजे सिंधिया अन्य नेता गण विरोध करने लगे ।
श्री वाजपेयी ने गडरा रोड़ आकर तमाम शरणार्थी लोगों के जत्थे के साथ छहे की तलाई बार्डर लांघा फलस्वरूप अपनी गिरफ़तारी दी जिसमें उपस्थित था !
1972 में शिमला सझोता इंद्रा गांधी ओर जुल्फिकार अली भुट्टो के मध्य हुआ जिसमें जीती सरज़मीन वापिस करने सरेंडर फोजी देना शरणार्थी आदि था!
हम अधरझूल में
पाकिस्तान से बेघर होकर आये हिंदू परिवार जिसमें राजपूत ब्रह्मण महाजन मेघवाल भील दर्जी नाई सुनार स्वामी जाट खतरी की संख्या अधिक थी सन् 1947 से पूर्व आवागमन था चूंकि रिश्तेदारी हुआ करती थी लेकिन हम लोग किसी पर बोझ नहीं बने!
शरणार्थी समस्या एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा होता है सरकार कि विभिन्न एजेंसियों की पैनी नज़र हम पर थी कुछ हमारी ह़ालत पर तरस कुछ की देश विरोधी गतिविधियों पर होती थी जबकि हमारे लोग नेक ईमानदार ख़ुदार बाज़मीर स्वाभिमान वाले थे ।
विशेषकर अहम प्रमुख परेशानी हमारी रोजी रोटी आवास शिक्षा चिकित्सा स्वास्थ्य पेयजल सुरक्षा थी इस लिह़ाज़ से लगभग 23 शरणार्थी शिविर खोले गये जिसमें मुख्य बाखासर साता धनाऊ आलमसर मिठे का तला स्वरूप का तला मिठड़ाऊ वींजासर चौहटन बिजराड़ वावड़ी कला शोभाला जेतमाल गडरा रोड़ हरसाणी तुड़बी गिराब बालेबा बिसाला नीम्बला साजीतड़ा राजड़ाल बाड़मेर महाबार पुषड़ आदि जिसमें सबका पंजीकरण किया गया ओर प्रति परिवार को एक तम्बू देने एक राशन कार्ड बनाया गया लेकिन दुर्भाग्य से नजदीक रिश्तारों को भी जोड़ एक राशन कार्ड बना जो बाद में बड़ी समस्या का कारण बना कुछ लोगों ने शिविरों में रहना बंद कर अपने स्तर पर रहने लगे!
सरकार ने कड़ी निगरानी में सख़्त पाबंदियां लगा दी प्रतिदिन एक ह़ाज़री रजिस्टर से गणना होती थी मुक़र्र समय सु़बह़ दस बजे होता था लेकिन यदा-क़दा अचानक गणना की जाती थी कभी कभी कोई लघु शंका के लिये केम्प से नदार्द मिलता तो उनका नाम काट लिया जाता था ।
बाद में उचित आपनी स़फ़ाई ओर साक्ष्य के बाद बाड़मेर जाकर एडीएम की अनुमति से जोड़ते थे उस समय श्री राधा कृष्ण त्रिपाठी एडीएम और श्री थानसिंह एस डी एम अधिकृत अधिकारी थे शिविर में एक प्रभारी एक सहायक एक चपरासी सरकारी मुलाज़म तैनात थे ।
सुरक्षा की दृष्टि से आर ए सी के जवान थे एक स्वास्थ्य केंद्र जिसमें एक डाक्टर एक कम्पाउडर एक नर्स एक चपरासी कार्यरत थे बाद में प्रत्येक कैम्प में स्कूल खोले गये जिसमें शरणार्थी योग्यधारी अध्यापक लगाये गये!
हम गांव भाडासिंधा के प्रागाणी जोगू एंव प्रभाणी कागिया गांव गडरा रोड़ में अपने स्तर पर रहते थे त़य्य किया कि अपने को भी किसी शरणार्थी शिविर में प्रवेश लेना चाहिये इस सिलसिले में मैं ओर श्री फतूमल जोगू दोनों बाड़मेर गये ओर श्री त्रिपाठी जी से महाबार में दाख़ला के आदेश कराया ओर दिनांक 4 अगस्त को अपने परिवारों को गडरा रोड़ से ट्रेन द्वारा लाये वो मंज़र अभी तक ताज़ा है ।
मैं प्राईवेट प्रेक्टशनर का काम करता था मेरा कार्य क्षेत्र अभे का पार डभे का पार सूराली जाने की बेरी सजन का पार बुकड़ पादरिया इलाज के उदेश्य से आना जाना आम था!
इस दौरान मेरे ससुराल वाले वावड़ी कला में आ गये मैंने परिजन को कैम्प महाबार में शरणार्थी राशन कार्ड बनाकर निश्चित सहायता चालू कराई ओर बी़हदो शादी के बाद मेरे ससुराल वालों के वहां गांव वावड़ी कला गये जहां मेरे साथ श्री बहादरोमल जोगू ओर श्री ईसरदास गुलजीमल कोडेचा रड़ियालो वाले साथ चले थे इस बीच प्रशासन द्वारा सूचना दी गई कि सरकार ने प्रत्येक शिविर में स्कूल खोलने के आदेश दिये है।
जिसमें शरणार्थी अध्यापक लगाये जायेंगे ओर योग्यता के मानदंड 1947 में आये लोगों की सिंध की समकक्ष मान्यता मानी जायेगी सब शिक्षित प्र शिक्षित उम्मीदवार बुलाये गये जिनका नियमानुसार साक्षात्कार योग्यता का निरीक्षण गठित चयन समिति द्वारा किया गया ।
परिणाम स्वरूप छात्रों की संख्या के आधार पर अध्यापक नियुक्त किये गये मेरा भी चयन हुआ मैंने 16 सितम्बर 1972 को शरणार्थी शिविर साजीतड़ा तह़स़ील शिव में कार्य ग्रहण किया साजीतड़ा में पीर सोढ़ा कालूंझरी सादूल सोढ़ा पाबू वेरो राजपुरोहित चारणोर पीर जो तड़ भाडी आदि गांवों वाले थे!
शरणार्थी शिविर साजीतड़ा
गांव साजीतड़ा ढाणियों में बसा हुआ था स्थानिय लोगों के लिये अलग से प्राथमिक विद्यालय था लेकिन शरणार्थी बच्चों के लिये स्कूल एक तम्बू में शुरू हुआ जो बाद में एक झौंपडे में संचालित होने लगा ।
उस समय हमें एसी शक्तियां दी गई कि हम शपथ पत्र के आधार पर मन चाहे किसी उच्च कक्षा में प्रवेश दे सकते थे मैंने श्री चतरसिंह पुत्र श्री हीरसिंह राजपुरोहित सहित अन्य को चतुर्थ पांचवीं मे दाख़ला कराई।
मैंने अपनी लग्न से छात्रों को शिक्षा दी ओर लगातार अगस्त 1975 तक साजीतड़ा में सेवायें देने के बाद चौहटन चला आया!
1972 में श्री धरणी धर सेवक शिविर प्रभारी एंव कम्पाउडर श्री भगवती प्रसाद दवे थे बाद में किशोर कुमार शर्मा बाड़मेर आये शरणार्थी शिविर में श्री हीरसिंह राजपुरोहित पीर जामसिंह सोढ़ा श्री सुरत सिंह पुरोहित श्री सादूलसिंह सादूल श्री जोगराजसिंह बाड़मेरा आदि अन्य का बहुत वृहद हस्त आशीर्वाद रहा।
स्थानिय लोगों में श्री भूरसिंह कोटड़िया भी इज़्ज़त करते थे कैम्प के बड़े बुज़र्ग मातायें बहिनें हम उम्र मित्र प्यार करते थे मैं तन मन से घुल मिल गया जो आज तक वो लोग याद करते है जो बाद में फतह़गढ़ राजड़ाल कीता में स्थाई बस चुके है !
छाछरो से भारत का प्रशानिक अमला वापस आ चुका था शिमला समझौते के प्रावधान के तहत सरकार ने शरणार्थीयों को छुट दे रखी थी कि जब वो चाहें लोट सकते है सीमा खोल रखी है ।
इस दौरान पाकिस्तान सरकार का एक प्रतिनिधि मंडल राणा श्री चंदनसिंह की रहनुमाई में पीर जीलानी ओर वसाण स़ाह़ब तथा अन्य क़द्दावर लीडर सहित भारत आये ओर चौहटन में एक विशाल जलसा हुआ जिसमें शरणार्थी लोगों को वापिस लोट चलने की गुज़ारिश की ओर राना स़ाह़ब ने संकेतों में अपना उद्धबोधन दिया!
मेरे चाचा श्री भलूमल की पुत्री की शादी गांव रामजी की बेरी में हो रखी थी ससुराल वाले लेने नहीं आये समाचार ख़ूब दिये तब मजबूर होकर लोटने का मानस बनाया जो मेरे बिछोड़े का कारण बना चूंकि समस्त अध्यापकों को सात माह तक वेतन नहीं मिला था ।
इसलिए मेरे परिजनों ने फ़ेस़ला किया कि हम लोट रहे है आप इन प्रागाणियों के साथ आ जाना मैं ओर मेरी पत्नि हम दोनों रह गये! मेरी पत्नि को मैंने उनके मायके गांव बिजराड़ छोड़ मैं साजीतड़ा ड्यूटी पर चला गया ।
अचानक बोर्डर बंद कर दिया गया मैं मेरी को साथ लेकर साजीतड़ा रहने लगा मेरे घर के बर्तन बिस्तर बोरिया महाबार रखा रहा जो बाद में केम्प स्थानांतरण श्री पन्नू मल ग़ढेर पाताणी धनाऊ के लिये ओर मैंने चौहटन के लिये किया!़ओर चौहटन में पंजीकरण कराया! मैं अपने दो झौंपड़े त्राटी के अरणी के लकड़ी के बनाये में रहने लगा ।
हमारा कैम्प वर्मान विरात्रा चौराहा पर था जहां हम जालों के बड़े पैड़ों के नीचे पाठशाला लगाते थे हमारा प्रधानाध्यपक पंडित उतमचंद ओझा ओर अन्य मेरे सहित श्री ओम प्रकाश रेगस्तानी श्री चंदनलाल मथराणी श्री देवदत्त छांगाणी श्रीमती बसंती देवी छांगाणी छह जने थे ।
तह़स़ील मुख्यालय होने की वजह से अधिकारियों की विज़िट आम होती थी ओर निरीक्षण भी 1978 में मुझे अध्यापक पद से कम्पाउडर बनाया गया ओर साथ में मिठे का तला शोभाला बिजराड़ का चार्ज भी अतिरिक्त थमाया गया चूंकि विभागिय कर्मचारियों को सर्पल्स कर वापिस भेज दिया था चौहटन में डा,जगदीश प्रसाद शारदा ओर अन्य भी रहे!
शरणार्थी कैम्प बांकलसर चौहटन
समस्त शरणार्थी शिविरों में अध्यापक नियुक्त हो चुके थे छह माह तक पगार नहीं मिली जब तक परिजन को निर्वाह भत्ते के त़ौर पर सरकार द्वारा अन्य शरणार्थियों की भांति त़य्य शुद्धा सहायता सामग्री देना शुरू की वेतन शुरू होने के बाद भारत सरकार ने एक आदेश निकाला कि अध्यापक गण को दोहरा लाभ मिला है सहायता राशि की गणना कर लगभ 19 लाख की रिक्वरी निकाल दी।
इससे अध्यापकों में रोष व्याप्त हुआ ओर खलबली मच गई परिणाम स्वरुप एक हंगामी बेठक आयोजित हुई सब मास्टरों ने शिरक्त की ओर बाद विचार विमर्श सर्व सम्मिति से श्री चंदनलाल मथराणी अध्यापक चौहटन को अध्यापक एसोसियशन का अध्यक्ष मनोनीत क्या गया श्री मथराणी ने खड़े होकर एलान कर मुझे अपना उतराधिकारी घोषित कर समस्त शरणार्थी अध्यापकों की सहमति से स्वीकृति ली तर्क दिया गया कि युवा ओर होशियार है!
लगभग दो सौ रूपये चंदा वस़ूल कर मुझे मांग पत्र बनाकर जयपुर जाने के लिये कहा गया राजस्थान में माननीय भैरोंसिंह शेखावत मुख्य मंत्री ओर क़ेंद्र में माननीम मुरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बन चुकी थी!
मैंने जोधपुर के अलावा ओर कहीं नहीं गया था मेरे लिये अजीबो ग़रीब चुनोती थी जो मैंने ख़ुश होकर तसलीम कर दी विधान सभा का प्रथम सत्र चालू होने वाला था मैं बस द्वारा वाया जोधपूर जयपुर पहु़ंचा जहां गवरमेंट हाऊस जयपुर का मालूम कर पूछताछ करते श्री चैनाराम मेघवाल नवनिर्वाचित विधायक सिवाना के रूम गया वहां पर भारी भीड़ थी मगर मैं साहस बटोर श्री चैनाराम जी से मिला उनसे मैंने सारी बात समस्या से अवगत कराया ।
उसने मेरी बात गंभीरता से सुनी और मुझे आश्वास्त कर मांग पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दिये मुझे कहा मैं एक अनपढ़ प्रथम बार विधायक बना हूं अधिक जानकारी नहीं है मैंने समस्त विधायक जो एक ही जगह ठहरे थे से जाकर रूबरू मिला जिसमें अधिकांश ने अपने दस्तख़त किये ।
कुछ ने मना क्या दो तीन दिन मशक्त करता रहा ओर बाद में श्री सम्पतराम मेघवाल जो पुनर्वास मंत्री था से मिला उसने बात को ग़ौर से सुना माननिय भैरोंसिंह शेख़ावत मुख्य मंत्री से मिलने को कहा ओर अपनी ओर से भारत सरकार को अनुशंसा करने का भरपूर आश्वासन देकर मेरा मनोबल बढ़ाया ओर ह़ोस़ला अफ़ज़ाई करते हुए भारत सरकार के पास जाकर समस्या समाधान की स़लाह़ दी ।
मैं हर रोज़ मुख्य मंत्री से मिलने की कोशिश करता रहा लेकिन भेंट नहीं हो सकी इस दौरान मेरी मुलाक़ात अजमेरे से निर्वाचित विधायक श्री नवल राय बचानी जो एक सिंधी थे से मिलन हुआ मैंने अपनी बोली में साया विवरण मसला सुनाया उन्हों ने भी अपनी ओर से शिफ़ारिश कर मुख्य मंत्री से समय मांगा ओर मिल गया ।
हम दोनों श्री शेख़ावत स़ाहब से मिले उन्होंने तुरंत अपने ओएसडी श्री सिंधी ( पूरा नाम भूल गया ) को बुलाया ओर एक लेटर भारत सरकार को लिख हस्ती मुझे देने को कहा जो दूसरे दिन मिला कथित पत्र लेकर मैं श्री बचानी जी को दिखाया तो उन्हों कहा अब आपको दिल्ली जाना पड़ेगा ।
मैं उदास मायूस हो गया मेरा चेहरा देख श्री बचानी ने भाव भांप कर मझे अपनी जेब से रूपये पच्चास निकाल दिये तो उस समय बहुत थे ओर एक पत्र श्री भानुकुमार शास्त्री के नाम लिख कर दिया कि दिल्ली जाकर उनको देना ।
आपकी मदद करेगा कुछ देर बाद श्री ओम प्रकाश बाहेती मेरे पुराने हम क्लासी दोस्त आ गये उनके साथ श्री हीरालाल राठी एंव अन्य महेश्वरी समाज के लोग जिसमें गुजरात से भी थे आये मैं दिल में बहुत ख़ुश हो गया ।
मैंने अपनी सारी ह़क़ीक़त बताई श्री ओमजी ने कहा हम भी दिल्ली चलेंगे चिंता मत करो मेरा आत्म विश्वास बढ़ा फिर हम सब मिलकर श्री भंवरलाल शर्मा जो उस समय शिक्षा मंत्री थे ।
एक पत्र श्री नाथूसिंह गुर्जर जो एक कम उम्र का युवा तेज़ तर्रार सांसद बने थे दिल्ली में पैरवी करने के लिये पाबंद किया हम लोग अपना भारी भरकम जत्था लेकर खेरथल गये वहां एक दिन ठहरने के बाद एक पुष्करणा ब्राह्मण को साथ लेकर दिल्ली 11 अशोक रोड श्री जगदीश प्रसाद माथुर के बंगले गये ।
वहां श्री सुंदर सिंह भंडारी भी एक साथ रहते थे हमारी ठहरने की व्यवस्था हुई दूसरे दिन लोक सभा स्वागत कक्ष में पहुंच श्री भानुकुमार शास्त्री को वहां बुलाया ओर मुख्यमंत्री का लेटर दिखाया उन्होंने श्री सिकंदर बख़्त जो क़ेंद्रीय पुनर्वास मंत्री थे को दिया ओर आश्वासन मांगा तब उसने प्रत्युत्तर में एक सप्ताह में वसूली पर स्थगन आदेश जारी करने को कहा ।
फलस्वरुप हम 19 दिनों के बाद घर लौटे चूंकि बारिश के कारण सारे रास्ते बंद हो चुके थे!एक ह़फ़ते में रिक्वरी का स्टे आ गया जो बाद मे़ माफ़ हो गई यह संदेश तमाम कैम्पों में आग की त़रह़ फेल गया ।
मेरी वाह-वाही प्रशंसा होने लगी! हमारे पीछे श्री लक्ष्मण सिंह सोढ़ा भी जयपुर दिल्ली शरणार्थियों की पैरवी नई सरकार से करने गये थे हमारी गतिविधियों की जानकारी से अवगत थे ।
चौहटन आकर मुझे बुलाया ओर शरणार्थी ऐसोसियशन बनाने की बात कही ओर चंद दिनों में बाड़मेर स्थित बादल नाथ की मढ़ी में एक विशाल सभा हुई जिसमें सिंधी शरणार्थी एसोसियशन का गठन किया गया जिसमें अध्यक्ष श्री लक्ष्मण सिंह सोढा उपाध्यक्ष श्री सतीदानसिंह सोढ़ा पीर रणछोड़सिंह सोढा श्री नाथूसिंह राणा राजपूत श्री जगमालसिंह दोहट महा सचिव श्री तोकलराम (तरूण राय कागा) सचिव मनोनीत किये गये ओर मेघवाल समाज से श्री पंजूमल गंढेर जो एक ह़ाज़िर जवाब बीडी मेम्बर श्री अजीतदान चारण समस्त पाक में रहे चैयरमेन ओर गणमान्य प्रतिनिधि थे !
नागोर भ्रमण
भारत सरकार द्वारा एक पत्र आया कि अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को जो कताई बुनाई का कार्य मे़ं दिलचस्पी रखते है उनको भीलवाड़ा कपड़ा मिल ओर नागौर में खादी ग्रामोद्योग में सरकारी इमदाद से रोज़गार के लिये अनुदान धन राशि एंव बिना ब्याज ऋण दिया जायेगा।
जो आसान न्यूनत्तम किस़त़ों में वापिस अदा करना होगा के सिलसिले में मेरे नेतृत्व एंव श्री जोधसिंह जी चीफ़ कैम्प कमांडेंट की निगरानी में उनके साथ श्री महेंद्रोमल जयपाल श्री सुघोमल जयपाल श्री अलूमल पंवार श्री फतूमल जोगू श्री पंजूमल गंढेर सहित हम नागैर गये जहां बुनकर बस्ती में बुनाई का काम करते कारीगरों से मिले ओर मालूमात ह़ास़िल की लेकिन वहां का रहन सहन सामाजिक ताना बाना रास नहीं आया ओर शाम को लोट जोधपुर रघुनाथ धर्मशाला में रुके बिना किसी फ़ेस़ले के कोई हां ना मुकर नहीं किया ।
इस दौरान नागरिकता देने का एलान हो गया ओर नये तरीक़े से विकल्प पत्र भरने शुरू हुए हम सब लोग उहापोह की स्थिति में आ गये विकल्प पत्र में 1,जिला बाडमेर 2, जैसलमेर, जालोर 4 जोधपुर 5, श्री गंगा नगर इंदिरा गांधी नहर परियोजना में घड़साणा अनोप गढ़ विजय नगर छत्तर गढ क्षेत्र प्रमुख थे।
नये नवेले चीफ़ केम्प कमांडेंट श्री तेजसिंह जी आ गये जो बड़े तेज़ तर्रार आईपीएस थे ने केवल मिलने के लिये तीन लोगों को अनुमत किया जिसमें श्री लक्ष्मण सिंह सोढा श्री सतीदानसिंह सोढ़ ओर मैं स्वंय था!
मेडिकल विभाग ने अपना स्टाफ़ वापिस बुला दिया तब श्री जोधसिंह जी ने एक कमेटी डा, सी के बाफ़ना मुख्य चिकित्सा एंव स्वास्थ्य अधिकारी की अध्यक्षता में विशेषज्ञों के द्वारा साक्षातकार ओर अपेक्षित दस्तावेज़ चैक कर मुझे अध्यापक से कम्पाऊंडर पद पर पद परिवर्तन ओर श्री मोतीराम कोडेचा को स्वीपर+चपरासी) पद से कम्पाऊडर पद पर लगाया गया हमारे अलावा श्री मोरूमल एंव श्री तनसुख महेश्वरी दोनों कम्पाऊंडर लगा रखे थे!
शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता एंव पुनर्वास वास्ते नये प्रस्ताव लेकर हम लोग मेरे सहित श्री लक्ष्मण सिंह सोढा श्री पंजूमल गंढेर लाडूराम कोडेचा सच्चानंद जोगू नाथूसि़ह शंकरसिंह राजपुरोहित दिल्ली श्री तनसिंह सा़ंसद बाड़मेर के पास गये ओर वहां रुके मैं ओर मेरे साथी बग़ल में बंगला श्री बेगाराम चौहान सा़ंसद गंगा नगर वाले के वहां रुके हमारी इस मुहिम में श्री लाल कृष्ण आडवाणी श्री अटल बिहारी वाजपेयी श्री राम जेठमलानी बाबू जगजीवनराम ने बढ़ चढ़ सहयोग किया जिसके हम आभारी है!
भारतीय नागरिकता एक अभियान के त़ौर पर प्रत्येक शिविर में मिली ओर मेरी ड्यूटी भी साथ थी ओर जिन लोगों ने जिला बाड़मेर का विकल्प भरा था उनको भूमि की उपलब्धता के अनुसार आंवटन हुआ शेष बचे लोगों को गांव झि़झनियाली जैसलमेर में जबरन आंवटन कर दिया मना करने पर बदल कर द्राभा रोहड़ी बोही सुंदरा में किया गया जो आज तक विवाद स्पद है जिसका मुख्य कारण उनकी हठधर्मिता रही है!
चौहटन में कुछ स्थानिय लोगों ने माननिय उच्च न्यायलय से स्टे ले रखा था इसलिये आंवटन नहीं हुआ! भारत सरकार द्वारा तीन सौ परिवारों को राजस्थान नहर पर आंवटन हुआ जिसमें सिर्फ़ राजपूत तब्क़े़ का होने से श्री ओम प्रकाश बाहती अपनी आपति दर्ज कराने ओर मह्रेश्वरी समाज को पुनर्वास हेतू चीफ़ केम्प कमांडे़ट से मिला ।
जहां तकरार लो गई ओर श्री बाहेती ने एक शिकायत दर्ज करता दी जिससे नहर का आंवटन निरस्त हो गया! दोबारा नये सिर से पुन: मांग दोहराई गई उस समय चौधरी चरणसिंह प्रधान मंत्री बन चुके थे श्री अटल बिहारी वाजपेयी श्री लाल कृष्ण आडवानी बाबू जग जीवन राम श्री भैरोंसिंह शेख़ावत मुख्य मंत्री राजस्थान के अथक प्रयासों से दोबारा नहर की स्वीकृति मिली ।
इस बीच पूर्व आंवटित भूमि जो पौंग बांध के विस्थापितों को आरक्षित थी का क़ब़्ज़ा लेंने आ गये हमने बड़ी जद्दोजहद के बाद जिला बीकानेर में दूसरे चरण की भूमि देखने की योजना बनाई जो अभी तक विचाराधीन थी!
जालोर का भ्रमण
मेघवाल समाज के लोग विभिन्न शिविरों में अलग अपनी पुरानी सोच के कारण टस के मस नहीं होना माह थे थे जहां जिस ह़ाल में है उसी में ख़ुश थे भविष्य की कोई चिंता नहीं थी जिला बाड़मेर में भूमि आंवटन के लिये।
एक वरिष्ठ आर ए एस अधिकारी श्री रोशन लाल को लगाया जिसने सबसे पेहले शरणार्थी प्रतिनिधि श्री लक्षमणसि़हह सोढा ओर मुझे चौहटन स्थित ग्रीफ़ के रेस्ट हाऊस में चर्चा के लिये बुलाया सबसे पहले शरणार्थी केम्प चौहटन के मेघवाल परिवारों के आंवटन से आग़ाज़ हुआ।
यह अभियान लगातार जारी रहा ओर अनुसूचित जातिके बाद स्वर्ण जाति का आंवटन हुआ जिसमें तीन हज़ार परिवारों को रोक रखा था ओय उसे साथ श्री पंजूमल गंढेर आलमसर का कुनबा और चौहटन के जयपाल ओर पातालिया थे उस समय राजस्थान में श्री दिनेश राय डांगी पुनर्वास मंत्री एंव श्री जी रामचंद्र मीणा पुनर्वास सेक्रेटरी थे।
मुझे जयपुर श्री नवीन शर्मा आईपीएस चीफ़ केम्प कमांडे़ट को फ़ोन कर मुझे बुलाया गया ओर कहा चंद मेघवाल अगर जालोर में बसना चाहे़ तो वहां झूंजाराणी जोड़ है कलेक्टर जालोर से वार्ता हुई आंवटन पर सहमति बनी मैं वापिस आया लोगों को प्रस्ताव से अवगत कराया ।
लगभग एक सौ से अधिक ने ह़ामी भर दी ओर हम प्रस्तावित भूमि देखने जालोर जाकर कलेक्टर स़ाह़ब से मिले उन्होंने एक पटवारी ज़मीन देखने साथ भेजा हमने मौक़ा मुआईना किया ज़मीन समतल बहुत अच्छी क़िस्म की उपजाऊ थी जहां एक मात्र किसी सेठ का ट्यूब वैल था ओर पानी मीठि था।
ज़मीन पर बडे़ विशाल दरख़्त लगे थे मेरे साथ श्री पंजूमल गंढेर लाडूमल कोडेचा मास्टर कानजी मल जोगू महेंद्रोमल जयपाल अलूमल पंवार साथ थे!
यह प्रस्ताव सहमति सहित श्री नवीन शर्मा ने तुरंत प्रभाव से राज्य सरकार को अनुमोदन ओर स्वीकृति के लिये भेजा गया इस बीच मेरे छोटे सगे भाई श्री राणा राय का पाकिस्तान में निधन हो गया मैं अपना पासपोर्ट बना हुआ था वीज़ा लेकर पाकिस्तान चला गया ।
जहां मेरी दो बहिनों का पासपोर्ट बनाकर वीज़ा साथ लेकर आया दो माह गुज़र चुका था मेरी अनुपस्थति जंजाल बनी! मेरे वापिस आने पर दोबारा नवीन प्रक्रिया के साथ श्री दिनेश राय डांगी से राजस्थान नहर का आदेश कराये तब तक मेघवाल समाज के तीन सौ परिवार हो चुके था ।
इस दौरान श्री नवीन शर्मा का तबादला हो गया ओर श्री आर एस चौहान आईपीएस का पदस्थापन हुआ था दोबारा प्रक्रिया शुरू हुई मेरे साथ जो चलते थे बीकानेर गये ओर पूगल के चक 1 से 8 एडी ओर डेली टू डीओ की ज़मीन पर अपनी रज़ामंदी देकर वापिस लोट आये ओर यह चक आरक्षित कराये गये!
बीकानेर बसेरा
सन् 1978 में समस्त शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिल चुकी थी अब मह़ज़ एक जटिल मुद्दा पुनर्वास या जिला बाड़मेर में लोग बस चुके थे शेष लगभग 3500 परिवार वंचित रह गये थे जिनका विकल्प राजस्थान नहर का था इंदिरा गांधी नहर परियोजना के द्वीतिय चरण उपनिवेशन तह़स़ील पूगल बज्जू कोलायत में भूमि चिन्हित की गई ।
एक टोला ( जत्था ) श्री सतीदानसिंह(शक्तिसिंह) सोढा बिजराड़ के नेतृत्व में देखी गई ओर पुनर्वास विभाग को सूचित किया गया बसाने की तैयारी बड़े ज़ोर से शुरू हुई राजस्थान नहर पर बसाने के उदेश्य से गठित आवंटन समिति में श्री राधे कांत शर्मा उप सचिव पुनर्वास श्री गणपतसिंह राजपुरोहित उप आयुक्त उपनिवेशन बीकानेर श्री आर एस चौहटन मुख्य शिविर समादेष्टा बाड़मेर श्री भंवरसिंह निर्वाण ज़िला पुनर्वास अधिकारी बाड़मेर श्री शक्ति सिंह बिजराड़ श्री तोकलराम संयोजक अनुसूचित जाति चौहटन की संयुक्त बेठक में पूगल बज्जू कोलायत में आवंटन हुआ !
मैंने अपना अस्थाई मुख्यालय श्री मोहता धर्मशाला रेल्वे स्टेशन के पास बीकानेर में कर रखा था आवंटित भूमि का मौक़े पर कब्ज़ा दिलाया गया तथा अंतिम दौर सरकार का दबाव आया कि मौक़ा पर भौतिक रूप से बसा जाये ।
मैंने पुनर्वास के परियोजना अधिकारी श्री भंवरसिंह निर्वाण से मिल योजना बनाई मैं जयपुर जाकर श्री दिनेश राय डांगी पुनर्वास विभाग जयपुर से विचार विमर्श किया तब उन्होंने एक आदेश जारी कि अंतिम सहायता राह़त राशि तह़स़ील मुख्यालय पूगल की स्टेट बैंक बीकानेर जयपूर में अपने खाता खोल प्राप्त करना था सब ।
लोग मौक़े पर पहुंच गये तथा सिंचाई जल की आपूर्ति शुरू हुई लोग अपने खेतों पर काश्त करने लगे प्रति परिवार को मुरब्बा 25 बीघा भूमि मिली मैंने अपना भविष्य ताक पर रख कैम्प बंद होंने के बाद दोबारा नोकरी हेतू आवेदन नहीं किया ।
जबकि अन्य समस्त कर्मचारियों ने कार्य ग्रहण किया ओर स्थाई आदेश हो गये मैंने अपना जीवन समाज सेवा में खपा लिया! मैं प्रति दिन बीकानेर से पूगल बस द्वारा आता जाता था ओर छोटी बड़ी परेशानी उपनिवेशन तह़स़ीलदार आर आई आफ़िस क़ानूनगो पटवारी से मिल ह़ल कराता था।
दिन को पारली बुस्कुट खाकर काम चलाया करता था पूगल गण की नुकड़ पर एक टूटी फूटी होटल (ढाबा) होती थी यदा-कदा खाना खा लेते थे ओर तह़स़ील के सामने एक चाय की थड़ी होती थी कभी कभी चाय पिया करते थे ।
हमारी दयनिय ह़ालत थी फिर सेवा का भूत सवार था भुने बड़े चाव से खाया करते थे हमारी बदह़ाली के चश्मदीद गवाह ठाकुर श्री जंजीरसिंह जो हमेशा मिलते थे एक दो बार मुझे अकेला ढाबे पर रात बेंच पर सौ कर गुजारी! मैंने एसी तंगह़ाली में मेरी पत्नी की नाक की बूली सोन की ओर पैरों में चांदी के कड़े बेचने पड़े!
मैंने पुनर्वास कराने के बाद चिकित्सा एंव स्वास्थ्य विभाग में आवेदन किया इस दौरान थर्ड ग्रेड के कम्पाउडर के पद समाप्त कर दिये थे मुझे मंत्रालयिक संवर्ग में कनिष्ट लिपिक पद पर मुख्य चिकित्सा एंव स्वास्थ्य अधिकारी बाड़मेर में पद स्थापित किया गया।
मैंने दिनांक 8 मार्च 1982को कार्य ग्रहण किया जो बाद में 4 माह पश्चात प्राथमिक स्वास्थ्य के़द्र चौहटन स्थानांतरण होकर आया ओर अपनी सेवायें सुचारु रूप से देना प्रारम्भ की!
शरणार्थी बने मतदाता
भारतीय नागरिक बनने के बाद आम चुनाव हुए जिसमें जनता पार्टी का उम्मीदवार जैसलमेर महाराजा श्री चंद्रवीरसिंह एंव कांग्रेस का प्रत्याशी श्री वृद्धि चंद जैन मेदान में थे श्री लक्ष्मनसि़ह सोढ़ा ने फ़तवा जारी किया ।
श्री चंद्रवीर सिंह के पक्ष में मतदान करने का लेकिन श्री वृद्धि चंद जैन जीत गये श्री घनश्याम मोहता जो एक शरणार्थी युवा नेता थे एक पुस्तक प्रकाशित कर घोषणा की थी कि शरणार्थी एक लाख हाथ इंदिरा के साथ शीर्षक दिया गया ।
जिसमें हर जाति समाज के पोस्टरों में नाम मेरा भी था जो बिना पूर्व अनुमति स्वैच्छा स लिखे थे सरकार कांग्रेस की बन गई इस बीच श्री लक्ष्मणसिंह सोढा की किसी ने शिकायत कर दी कि श्री सोढ़ा शरणार्थी श्रेणी में नहीं आता इनका पुनर्वास रोका जाये तर्क दिया कि इनका परिवार 1971 की जंग से पहले अनाधिकृत रूप से भारत में प्रवेश किया है तुरंत प्रभाव से राजस्थान नहर का प्रस्तावित आवंटन पर रोक लग गई!
राजस्थान विधान सभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी श्री सोढ़ा आनन फानन में श्री भैरोंसिंह, श्री कल्याणसिंह काल्वी, श्री गुमानमल लोढा, श्री लाल कृष्ण आडवानी, श्री अटल बिहारी वाजपेयी, जयपुर महाराजा भवानीसि़ह जी से मिल विचार विमर्श चर्चा के बाद समाज कल्याण छात्रावास में ठा, श्री बलवंतसिंह बाखासर की अध्यक्षता में ठा, समर्थसिंह चौहटन ठा,, अखजी चौहान गंगासरा की उपस्थति में शरणार्थी समाज की विशेष सभा हुई ।
जिसमें फ़ेस़ला किया गया कि कांग्रेस का समर्थन कर मतदान किया जावे परिणाम स्वरूप पहली बार अब्दुल हादी जनता दल की हार हुई ओर श्री भगवानदास डोसी झांक शत के जीत गये!
श्री भगवान दास डोसी के चुनाव प्रचार प्रसार में मेरे साथ श्री औकारदास जैन श्री कल्याण परमार अन्य काफ़ी कार्कर्ता बारी बारी से रहते थे श्री लक्ष्मण सिंह सोढा प्रधान की चुनाव कमान मेरे हाथ में थी ओर श्री तिलोकाराम बालाच मेरे सहयोगी थे।
श्री वृद्धि चंद जैन सांसद और श्री डोसी के साझा प्रयास रंग लाये ओर श्री सोढा की समस्या का समाधान हो गया ओर राजनीति को स्थाई करने के उदेश्य से श्री सोढा मंजे खिलाड़ी थे ।
आने वाले पंचायती राज चुनाव की रणनीति बनी और समस्त विधान सभा की समीक्षा की गई आपसि तालमेल पर विशेष ज़ोर दिया गया शरणार्थी बाहूल्य ग्राम पंचायत जानपालिया स्लरूप का तला मिठडाऊ वावड़ी कला बूठ राठोड़ान के लिये श्री लक्ष्मण सिंह कमान सम्भाली ।
उम्मीदवारों के चयन में भारी मशकत करनी पडी़ 1971 श्री गोविंदराम जोगू 1965 श्री पूंजाराम 1947 श्री चतरोमल ख़भू नाम घोषित हुए! उस समय प्रधान चयन के लिये वार्ड पंच सहवृत सदस्यों का मतदान होता था बाद में श्री लक्ष्मण सिंह सोढ़ा प्रथम पाक विस्थापित प्रधान निर्वाचित हुए!
मां की नस़ीह़त बाप की वस़ियत
मेरी मां सदेव कहती थी बेटा मर जाना पसंद करना मगर झूठ कभी नहीं बोलना पिता का फ़रमान था सच्च की बेड़ी डोलती डगमगाती ज़रूर है डूबती नहीं जीवन में सच्च की डगर पर चलना चाहे कांटे हो चाहे कंकर कैसी भी बाधा आये अपने आप रास्ता बदल देगी घबराना नहीं।
मेरे पिता पहले चले गये 6 माह अंतराल के बाद जब मेरी मां अंतिम सांसें गिन रही थी तब मुझे पास बुलाया ओर कहा कि मैंने आपको बार बार झूठ नहीं बोलने को कहती हूं गांठ बांध लो काम आयेगी ।
मेरा दूध ओर पिता का नाम नहीं लजाना समस्त कुसंस्कारों की जड़ झूठ है सत्य की राह पर चलते रहना जग में सुखी रहेगा तेरा एक छोटा भाई ओर चार बहिन है इनका ख़ूब ध्यान रखना मेरा आशीर्वाद आपके सिर पर है ।
लोग आयेंगे चले जायेंगे कभी मायूस उदास नहीं रहना घर की कोई चीज़ व्यर्थ खोना नहीं किसी को देना नहीं मांगने पर सौ बार सोच विचार कर बाद में देना यह सोन मांगने वाले लोग होते है ।
कहावत है मांगने राणी आती है देने दासी तक नहीं आती अपना व्यवहार को सुंदर सलीक़े दार रखना किसी लोभ लालच में मत पड़़ना भगवान आपका भला करेगा मेरे पिता जी का चाल चेहरा दयालू था ।
लोग याद करते ओर कहते थे ओर हमें सीख देते थे कि आपके पिता ने कभी चलती कीड़ी पर भी पैर नहीं रखा हमें बड़ा गर्व मह़सूस होता था! मैने अपने निजी जीवन में दिये गये संस्कार आदर्श मान फू़ंक फूंक क़दम उठाये ।
किसी से ठगी झगड़ा वाद विवाद हेरा फेरी सीना ज़ोरी चोरी चकारी मकारी नहीं की सादगी पसंद जीवन जिया बिना फ़ुज़ूल ख़र्ची शराब कबाब शबाब की ख़ुमारी में नहीं रहा!
बांकलसरा कैम्प में उत्तर दिशा में अंतिम छोर पर मेरा घर था तीन झौंपड़े त्राटी के मिट्टी गोबर का आंगन चारों ओर त्राटी कांटों की बाड़ रहती थी मेरी जान पहचान समाज में अधिक होने से लोगों का आना जाना आम था ।
चौहटन कस्बे में कोई धर्मशाला मुसाफ़िर खाना ढाबा होटल ठहरने-खाने पीने की सुविधा नहीं थी लोग अपने रिश्तेदारों के पास आकर रुकते थे मेरे पास अनजान लोग भी आते जाते थे ।
बाहर की शिविरों के लोग अपनी समस्याओं के समाधान हेतू भी आते थे परिवार मे़ हम दो मिंया़ बीवी ओर छोटी बेबी थे कस्बे से मेरा आशियाना तक़रीबन तीन किलो मीटर दूरी पर था फिर भी आगुत़ंक पूछ-ताछ कर मेरे डेरे तक पहुंच जाते थे मुझे मेहमान नवाज़ का मौक़ा मिल जाता था !
मैं शरणार्थी शिविर चौहटन में शिनाख़्ती कार्ड बनाने आये दिन विकल्प पत्र भरने किसी का नाम काट जाने पर पुन: जोडने आदि में मदद करता रहता शिविर में मेघवाल ब्राह्मण सुथार राजपुरोहित दर्जी नाई राणा राजपूत सेवक श्रीमाली स्वामी रहते थे।
मैंने बिना राग ईर्ष्या भावना के बिना किसी लाग लपेट अपनी सेवायें दी श्री गिरधारी रणजीताराम श्री ज्वाराराम ओनाराम श्री वगतसि़ह कांटियो वाले प्रमुख नेता थे समस्त का भूमि आवंटन उनकी इच्छानुसार मेघवाल वावड़ी राणा राजपूत घोनिया रमज़ान की गफन राजपुरोहित इटादा में कराया गया ।
लोगों ने अपने क़ब्ज़े आदि भी ले लिये! श्री शंकरसिंह उस समय स्कूल में पढ़ रहा था तथा होशियार चालाक सक्रिय था बाहर गया हुआ था वापिस आने पर मुझे मिला ओर राजस्थान नहर पर बसने की जिज्ञासा प्रक्ट की ।
तब मैंने उसे बताया कि आप राजपुरोहित समाज की एक बेठक करो ओर अपना विकल्प पत्र बदलो यहां का आवंटन रद्द कर नहर की स्वीकृति मेरी ज़म्मेवारी हैं इस संदर्भ में श्री रणछोड़ धर्मशाला में पुरोहित समाज की मीटिंग मेरी उपस्थिति में हुई ।
जिसमें नोजवान श्री शंकर सिंह राजपुरोहित को अध्यक्ष पद पर श्री शिवसिंह चंदानी अन्य को साथ रख एक कमेटी बनाई गई ओर दोबारा मांग नहर वास्ते की गयी!
बाद में एक दल बीकानेर से घडसागा विजय नगर अनोप गढ सूरत गढ क्षेत्र भूमि भ्रमण पर गया! मेरे साथ भी एक प्रतिनिधि मंडल था ।
जब पंचायती राज के चुनाव शुरू हुए तब ग्राम पंचायत चौहटन के वार्ड 13 पर शरणार्थी मतदाता सूची में अधिक मतदाता जुड़ जाने से बड़ा हो गया था में मेघवाल दर्जी देसांतरी को टटोला गया लेकिन सबने मना कर दिया कोई तैयार नहींं हुआ ।
श्री भगवान दास डोसी विधायक बन चुका था केम्प में सबकी राय ली गई निर्विरोध पर सहमति नहीं बनी सरपंच के उम्मीदवार ठा, श्री प्रतापसि़ह राठोड़ एंव श्री भंवरलाल डोसी थे मैंने भी यह कहकर चुनाव लड़ना मना कर दिया कि दो साल ब्रेक हो चुका हूं ।
पाकिस्तान यात्रा के कारण ओर मेरी दो बहिन ओ की शादी की वजह से काफ़ी मनुहार के बाद श्री लक्ष्मण सिंह सोढ़ा के आदेश का पालन किया ओर मैंने चुनाव लड़ा उस समय आरक्षण का प्रावधान नहीं था ओर हर कोई हिम्मत नहीं जुटा पाता था मेरे सामने श्री शंकर सिंह राजपुरोहित खड़े हुए चंद वोटों से जीत गये और मैंने दोबारा नोकरी ज्वाईन की!
सादा स्वभाव इंसान
मेरा पदस्थापन प्राथमिक स्वास्थ्य केंंद्र चौहटन होने के पश्चात मैंने अपने झौंपड़े छोड़ मेघवाल बस्ती में श्री स्वरूपाराम गेहलोत के मकान में किराये पर रहने लगा चूंकि मेरी दो बेटियां कैम्प से प्राइमरी स्कूल में आने जाने में दिक़्त होती थी ।
केम्प का स्कूल बंद कर दिया था ओर अधिकांश मेघवाल परिवार बीकानेर नहर चले गये थे केम्प में भी शरणार्थी मेघवाल दो बस्तियों में विभाजित थे ओर बीच में काफ़ी दूरी थी पुनर्वास विभाग के अनुसार जहां भूमि आंवटित होनी है बसना था लेकिन वोटों की राजनीति ने रोक लिया।
आधी आबादी जिनका बाड़मेर चौहटन में आवंटन था रुक गई श्री भगवान दास डोसी विधायक के प्रयासों से बांकल सरा बस्ती का खसरा शरणार्थी लोगों के आवास के लिये आरक्षित हुआ ओर स्पष्ट शर्त थी कि अनुसूचित जाति को प्रथमिकता दी जाये ।
उस समय चौहटन के सरपंच श्री भंवरलाल डोसी थे केम्प में मेघवालों को 25×54 आवासीय भूखंड निशुल्क देना था लेकिन लोग जहां बेठे थे को वहां से हटने को तैयार नहींं थे सब पूरी ज़मीन लेना चाहते थे ।
सहमति नहीं बनी इसलिये कुछ दिनों के लिये आवंटन रोक दिया गया इस बीच ग्राम पंचायत ने नई योजना बनाई ओर 30×,45 का प्लाट निशुल्क ओर नींव भर पांच सौ रूपये में देना सुनिश्तित किया जो श्री भंवरा धोधा गुमाना आम्बा डामा गेना ने ह़ामी भर दी ।
कुल 12 भूखंड थे मुझे देने को त़य्य हुआ मैंने मना किया ओर श्री भगवान डोसी को मेरे बाहर के गांव वालों को देने की मांग की तो ह़ामी भर दी मैंने बूठ राठोड़ के श्री तगाराम श्री सजनराम क़ासमाणी को दो प्लाट तथा श्री लिछमण दास के परिवार को चार प्लाट दिलाये ।
चूंकि श्री लक्ष्मण सिंह सोढा प्रधान के परिवार को दिये जा चुके थे मुझे भी 6 प्लाट दिये जो दो मैंने स्वंय के लिये रखे ओर तीन ससुराल वालों को ओर एक फरसाराम राणा राजपूत को दे दिया !
अगला कार्यकाल में श्री रूप सिंह राठोड़ सरपंच बने सरकार द्वारा आदेश जारी हुआ कि पाक विस्थापित परिवारों को चौहटन में रोड के पास ज़मीन एक रूपये वर्ग फुट बीच में 50 पैसे दूरदराज पर 25 पैसे दर से वस़ूल कर पट्टे जारी किये जायें ।
सूचियां बनाई जाये एक अभियान के तहत कार्य सम्पन्न किया जाये लेकिन वार्ड पंचों की टीम ने मेघवालों को छोड़ अन्य जातियों की लिस्टें बनाई गई मुझे सरपंच श्री रूपसिंह जी ने बुलाकर अवगत कराया कि अपेक्षित सूची में मेघवालों के नाम नही है ।
मैंने श्री नीम्बा गाजी को बुला कर नक़ल मांगी ओर श्री सोहनलाल ज़िला कलेक्टर से मिला जिसने मुझे स़लाह़ दी गई कि आपको राज्य सरकार के पास जाना होगा मैं अपनी रिपोर्ट भेज देता हू़!
मैंने जयपुर के लिये प्रस्थान किया ओर उस समय श्री नरपतराम बरवड़ राजस्व मंत्री थे को वस्तुस्थिति से अवगत कराया मुझे कलेक्टर के नाम आदेश दिया ओर दोबारा सर्वे सूची बनाकर कार्य प्रारम्भ हुआ और प्रक्रिया जारी रही! अन्य को निर्धारत दर पर निश्चित माप दंड पर गुमराह कर 30 गुणा 60 का प्लाट का नकशा बनाया ओर एक ह़ल्फ़नामा लिखाया गया!
सेवा भाव की ललक
मेरा आना जाना पूगल चक दो एडी 6,7,8 एडी निरंतर रहा कुछ लोगों की शिकायत थी हमारा मुरब्बा मौक़े पर नाक़ाबिल ए काशत है बदल कर अन्यत्र सिंचित दिया जात मैंने सरकार से मांग की पुनर्वास विभाग बंद हो चुका था ।
राजस्व एंव उपनिवेशन को अवगत कराया पटवारियों की टीम ने दोबारा भौतिक मुआइना किया और अपनी रिपोर्ट पैश की के अनुसार कुछ तथ्य सही पाये गये ओर एक स्थाई आदेश विभाग ने जारी किये सूची के मुता़बिक़ उनिवेशन तहस़ील नाचना के धूड़ का डेहर में तबादला मेघवाल लोगों का हो गया ।
जो पूगल से दूर था कुछ ने कब्जे लिये कुछ ने मना किया जो पड़े रहे एंव आदेश में यह भी ताकीद थी कि जो स्वेच्छा से बदलना चाहे छूट रहेगी!
श्री श़ंकर सिंह राजपुरोहित ने अपने समाज की समाज की सूची पेश की जिसके तहत नवसृजित उपनिवेशन तहसील श्री मोहनगढ़ में मण्डाऊ में आरक्षित रक्बे हुए मैंने एक मुरब्बा पसंद कर तबादला का आवेदन कर रखा था।
मेरा भी तबादला आंवटन मंडाऊ में चक 2 एमडी में हो गया मेरा इरादा काश्त करने का नहीं था सरकारी नोकरी कर रहा था बच्चे छोटे थे मैंने मौक़े पर क़ब्ज़ा ले लिया पुर सुकून था कि शरणार्थी केम्प चौहटन के राजपुरोहित समाज का चारों ओर पड़ोस मिला जहां मैंने मेरी एक ढाणी मेघवाल मात्र होने का लाभ वास्ते टेलिफ़ोन लगवाया ।
जो मोहनगढ़ के अलावा नहीं था बिजली के पोल लगा कर चक 2 एम डी को रोशन किया जो दूर की कोड़ी थी हैंडपम्प खुदाया गया जो मेरे पड़ोसियों के काम आया मेरा आवागन का सिलसिला जारी रहा मैंने अपने जीवन में कभी किसी इंसान से राग द्वेष नहीं रखा लोग बदले की भावना से पराया बिना किसी सोच से बुरा करते है जबकि मैं सोच तक नहींं पाया नहीं किसी का बिगाड़ा!
ह़ालांकि मैं मंत्रालियिक कर्मचारी था लेकिन मेरे हृदय में सेवा भावना कूट कूट कर भरी थी गांवों से आने वाले भोले भाले लोग जानकारी के अभाव में इधर उधर भटकते फिरते मुझे उनकी दयनिय ह़ालत पर तरस आता उनकी बिना मांगी मदद कर देता था ।
लोग दुआयें देते थे मरीज़ों को डाक्टर को दिखाना रोगी के उपचार दवाई तक में सहयोग सहायता करता था ग्रामीण तोकल नाम पूछ कर आते थे कभी आपातकाल में रात्रि को मेरे घर आ कर मुझे नींद से जगाते थे मेरे कार्यकाल में तमाम बेहतरीन सेवा भाव के चिकित्सक आये।
मेरी सेवा भावना देख मेरी प्रशंसा करते थे मेरी चर्चा गांवों में भी होने लगी उस समय गांवों में भी कभी बीमारी फेल जाती तब चिकित्सा दल में जाता था ओर नसबंदी शिविरों में एसा कोई गांव नहीं जहां मैं नहीं गया ।
नसबंदी कराने वाली महिलाओं को क्षतिपूर्ति राशि मौक़े पर दी जाती थी मेरे पास केश का चार्ज होता था! अस्पताल में पच्चास फ़ीस़दी स्टाफ़ महिला कर्मचारी नर्स स्टाफ़ नर्स ए एन एम ओर एल एक वी होती थी जो ग्रामीण क्षेत्र में विभिन्न प्रा स्वा, केंद्र उप केंद्रों पर नियुक्त थी ।
मेरी कार्य शेली सहयोग से संतुष्ट थे जो मेरी स्वैच्छिक सेवानिवृति पर फूट फूट कर रोई थी ओर समस्त स्टाफ़ मेरी विदाई बजार से घर तक जुलूस के रूप में चले थे मैंने काजल की कोठड़ी में रहकर कर अपने दामन पर कालिक लेश मात्र नहीं लगने दी चाल चेहरा चित्र चित्त चमकता रखा!
जन जागृति
बच्चपन से मेरी विचार धारा सोच जन जागृति की रही पुरानी रूढ़िवादी दिक़ियानूसी जाह़लियत को दूर करना था मैंने 1976 ,77 में जयपुर में राजस्थान यूनिवर्सिटी के छात्र संघ के अध्यक्ष श्री वृद्धिचंद मीणा द्वारा आयोजित डा, भीमराव अम्बेडकर की जयंती में शिरकत कर पहली बार डा, अम्बेडकर के सम्बंध में सुना जाना जीवनी की छोटी एक पुस्तक ख़रीद कर लाया ओर श्री घमूमल मूलाणी पातालिया को अध्यक्ष बनाकर जयंती मनाया करता ओर गुड़ बांट लेते थे ।
बाद में जब मैं कनिष्ठ लिपिक के पद पर अस्पताल में लगा तब चौहटन कस्बे में प्रथम बार सरे बज़ार में जयंती मनाने का फ़ैसला किया हास्टल के छात्रों का सहारा भीड़ जुटाने ओर नारा लगाने में लिया जिसमें श्री सग्राम पुत्र पन्नूमल धनाऊ अग्रणी रहे हाथ ठेले पर बाबा स़ाह़ब का चित्र ओर बेट्री लगा माईक से नारा लगाते रेली निकाली ।
जो एक अजूबा दृश्य था लोगों को अचम्भा होने लगा कुछ लोग भड़काऊ बातें करते देखो तोकल अस्पताल में है ऐसा डाक्टर लाकर नसबंदी करायेगा लोग भोले भोले बहकावे में आकर आने में कतराने लगे दूर से देख लेते साथ चलने को तैयार नहीं थे!
1986 को श्री बख्ताराम गंढेर मैनेजर एसबीबीजे श्री मुन्नालाल गोयल व्याख्याता श्री शंकरल बोचिया अध्यापक महाबार से मिल बड़ा जलसा करने की योजना बनाई ओर एक निशान गाड़ी किराये पर लेकर आलमसर धनाऊ बिजराड़ वावड़ी बूठ बींजासर मिठड़ाऊ गुमाने का तला देदूसर नवातला जहां शरणार्थियों का बाहूल्य था में प्रचार प्रसार कर धूमधाम से आयोजन किया ।
जिसमें श्री तेजूराम जोगू स्वत़ंत्रता सेनानी के सानिध्य में श्री भगवान दास डोसी को मुख्य अतिथि बनाकर श्री बख़ताराम गंढेर बेंक मेनेजर की अध्यक्षता में ग्राम पंचायत परिसर में विशाल आयोजन हुआ जिसमें विभिन्न प्रकार की मन मोहक झांकियां भीम की जीवनी पर आधारित रोचक छात्रों की वेष भूषा तथा श्री गैनराम कोडेचा छात्र नवातल ह़ाल प्राचार्य शिक्षा विभाग को अम्बेडकर बनाकर घोड़ी पर बिठाते हूए बिंदोली बज़ार में गुज़री ओर अलग भोहल्लों गलियों में होते हुए ग़्राम पंचायत भवन पहुंची ।
इसमें महती भूमिका श्री तनूराम राठोड़ वर्तमान जिला शिक्षा अधिकारी बाड़मेर श्री किसन लाल पंवार अध्यापक श्री दयालाराम धनदे सेतराऊ का आहम किरदार रहा प्रभात फेरी ओर झांकियों ने चार चांद लगा दिये चारों ओर वाह-वाही होने लगी बाड़मेर से छात्र टोली श्री अगराराम बोस श्री लीला राम श्री लक्षमण वडेरा अधिक संख्या में आये थे यह मुहिम इस गति से निरंतर गतिमान रही!
अस्पताल में डा, सुरेंद्र कोडनानी उनकी पत्नि डा, माया कोडनानी जिसका नाम बदल बाद में लवीना कोडनानी किया गया मुझे परामर्श किया कि तुम भी तोकलराम बदल दूसरा नाम कर दो मेरे में भी जिज्ञासा जागी उत्सुक होकर क़ानूनी प्रक्रिया बताई ।
उस समय श्री रूपनारायण बीईई पद पर कार्यरत था ने तोकल की बजाय तरूण नाम सुझाया ओर राजस्थान राज पत्र अंक 41 दिना़क 10 जनवरी 1985 को भाग -7 के पृष्ठ 364 से 365 में प्रकाशित हो गया यह पहली घटना है तोकल राम कागिया के बजाय तरूण राय कागा नाव विधिवत हो गया जबकि अन्य बिना किसी तार्किकता के नाम गौत्र बदल देते है!
14 अप्रेल को भारतीय दलित साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा मुझे डा,अम्बेडकर फ़ेलोशिप सम्मान पत्र, 14 सितम्बर 1999 को हिंदी दिवस पर जैमिनी अकादमी पानीपत से मानद उपाधि आचार्य से सम्मानित 13 सितम्बर 2000 को जैमिनी अकादमी पानीपत 132103(भारत) से बुसवीं शताब्दी रत्न सम्मान पत्र 4 अगस्त 2001 को जैमिनी अकादमी पानीपत से पद्म श्री डा, लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति सम्मान से नवाज़ा गया और भारतीय दलित साहित्य अकादमी दिल्ली से महात्मा ज्योतिबा फुले फैलोशिप सम्मान -2002 राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मेलन दिल्ली 26-27 नवम्बर 2002 को सम्मानित किया गया ।
इस प्रकार 26 जनवरी 2006 गणतंत्र दिवस -2006 सदस्य पंचायत समिति पंचायत समिति चौहटन में सामाजिक एंव दलित वर्ग के उत्थान के लिये की गई सेवाओं का सराहनीय कार्य करने के उपलक्ष में प्रशस्ति-पत्र दिया गया!
उथल-पुथल
नब्बे के दशक में मेरा तबादला जैसलमेर में मुख्म चिकित्सा एंव स्वास्थ्य अधिकारी के अधीन हुआ मैंने तुरंत प्रभाव से कार्य ग्रहण कर लिया जहां विधान सभा का प्रशनों के उत्तर जयपुर लेकर जयपुर जाता था वहां पता लगाया कि आपका स्थानांतरण रूटीन में हो गया है ।
निरस्त किया गया दोबारा वापिस एपीओ हो कर मुख्यावास निदेशालय चिकित्सा एंव स्वास्थ्य सेवाऐं जयपुर हो गया है जहां संयोगवश मुझे मंत्रालियिक संवर्ग की वरिष्टता और पदोन्नति की सूचियां बनानी थी ।
मैं श्री अब्दुल ह़ादी विधायक के आवास पर ठहरा था जहां खाना होटल पर खाता था ओर निदेशालय पर मालूम किया ओर मंत्री के पास खोज बीन कराई कि आपका स्त्थानांतरण राजनीति करने की शिकायत पर हुआ है विधायक से अवगत कराया ।
हम दोंनों श्री ललित किशोर चतुर्वेदी मंत्री से मिले उन्होंने भी यह बात कही मैंने जांच कराने की मांग की ओर जांच अधिकारी ने जांच की ओर शिकायत झूठी पाई मेरा एपीओ निरस्त किया गया लेकिन मुझे फ़ायदा हुआ कि मेरा नाम वरिष्ठता में जोड़ा गया ओर यथा समय पदोन्नति मिली!
ईर्ष्यालु लोगों को मेरी प्रतिभा कभी पसंद नहीं आई जिला बाड़मेर में शरणार्थियों को भूमि आवंटन अस्पताल में जन सेवा आदि!
मुद्दई लाख बुरा चाहे क्या होता है
होता है वो जो मंज़ूर ख़ुदा होता है
मेरा सगा भाई चचेरा भाई कोई नहींं था मेरा सहारा मैं ख़ुद बना ओर अन्य बेसहारा लोगों का भी सच्चाई की राह पर अकेला चलता रहा ईश्वर ने मेरी पूरी मदद की!
सांवा में जहां जोगू परिवार बेठे है सरकारी ज़मीन थी पर बेठे थे की श्री भारमल ने शिकायत कर दी अतिक्रमण कर बेठे है श्री रावताराम मेरे पास आया जिसको तरीक़ा बताया काग़ज़ तैयार कर लाये लेकिन तह़स़ीलदार रोक बेठे रहे ।
मैंने विधायक से बात करने को कही लेकिन भगवदास जी ने मना कर दी मैंने तहसीलदार जिला कलेक्टर से मिल कागज़ जयपुर भेजे ओर मेरे साथ श्री रावताराम को जयपुर ले गया ओर,स्वीकृति लाकर श्री छीतरमल ग्राम सेवक से सूची के अनुसार पट्टे जाजान री करवा कर घर बेठे सुपुर्द किये!
श्री रावताराम जोगू कांच कशीदाकारी का काम करते थे ओर प्रेम प्रकाश धर्मशाला पर रुके थे मैं अपने किसी निजी काम से जयपुर गया हुआ था हमारी मुलाकात हुई श्री रावताराम ने मुझे बताया कि हमारे माल का पार्सल रेल्वे पर रोक दिया है।
दस हज़ार रूपये मांग रहे है कोई जान पेहचान हो तो मदद कराओ मेरा वापसी टिक्ट था मैं श्री रावताराम जोगू को मंत्री श्री नरपतराम बरवड़ के पास ले गया उसने बात कर सामान दूसरे दिन लोटाने की बात कही श्री जोगू ने मुझे रुकने को कहा दूसरे दिन बात कर माल दिलाया ओर मैं बस द्वारा जयपुर से रवाना हुआ!
पंचायती राज चुनाव
श्री भैरोंसिंह शेखावत मुख्य मंत्री राजस्थान ने पुरानी पद्धति को परिवर्तन कर 1994 नया पंचायती राज अधिनियम लागू कर चुनाव कराने की घोषणा की जिसमें प्रथम बार अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति पिछड़ा वर्ग महिलाओं के आरक्षण का प्रावधान कर कार्यक्रम समय निर्धारित किया ।
उस समय श्री भगवान दास डोसी विधायक थे और पंचायत समिति चौहटन की प्रधान सीट अनुसूचित जाति महिला का एलान हुआ राजनीति ह़ल्क़ों में हलचल शुरू हुई श्री चतरामल खंभू सक्रिय हुए ओर श्री अब्दुल हा़दी वरिष्ठ नेता कांग्रेस की शरण में गये ओर पुरनी गिला शिक्वा भूल समर्पित भावना से प्रधान बनने की मंशा ज़ाहिर की।
श्री ह़ादी जी ने बोला पेहले पंचायत समिति सदस्य निर्वाचित होना पड़ेगा आप मेघवाल समाज की एक मिटिंग बुलाओ समाज की आरक्षित वर्ग की सीटों से जीत कर आयें समस्त 25 सदस्यों की राय शुमारी के बाद प्रधान त़य्य करेंगे ।
गांव अद्रीम का तला में मिटिंग रखी गई समाज के लोग और कुछ प्रमुख लोग मिले आरक्षित सीटें 1,गोहड़ का तला स्वरूप का तला अद्रीम कि तला 2, वावड़ी कला बूठ राठोड़ान 3, आलमसर धनाऊ से नामों पर चर्चा के बाद विचार विमर्श चला जो महिला वर्ग के लिये आरक्षित थी टिक्ट क्रमश; 1,श्रीमति मिश्री देवी कागा 2, श्रीमति सजनी देवी कागा 3, श्रीमति के़कू देवी की घोषणा हुई मुक़बला कड़ा था ।
सत्ता पक्ष श्री भगवान दास डोसी ने एड़ी से चोटी का ज़ोर लगाया लेकिन पलड़ा कमज़ोर रहा 25 सीटों में कांग्रेस के 18 भाजपा के 7 सदस्य निर्वाचित हुए श्रीमति के़कू देवी पत्नि श्री बृजमोहन (पुत्री चतरोमल खंभू की पुत्री) ने बग़ावत कर भाजपा का दामन थाम प्रधान का चुनाव लड़ा को मह़ज़ 8 मत प्राप्त हुए और श्रीमति मिश्री देवी कागा प्रधान पद पर विजयी हुई !
पांच साल नर्विविद कार्यकाल सम्पन्न हुआ कार्य काल के दौरान 91 के प्रकरण नियमित किये गये ओर पेहली बार अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति की बस्तियों में राजीव गांधी स्कूल पर्यापत मात्रा में खोले गये ओर मेघवाल भील अध्यापक लगाये गये ।
उस समय जीवन धारा योजना के तहत निजी बेरे भी खुदाये गये ओर आमजन को लाभाविंत किया गया ओर बांकलसरा बस्ती में आवासीय पट्टे वितरण का काम सम्पन्न हुआ!
दोबारा 2000 में बींजासर मिठे का तला से श्रीमति मिश्री देवी कागा पंचायत समिति सदस्य निर्वाचित हुईं इस बीच श्री गंगाराम चोधरी विधायक बन चुके थे ओर 1965 के पाक विस्थापित परिवारों को भूमि आवंटन में बत़ौर आवंटन कमेटी की राज्य सरकार द्वारा सदस्य आवंटन हुआ!
सन् 2005में आंटिया कापराऊ से मैं ख़ुद पंचायत समिति सदस्य निर्वाचित हुआ इस चुनाव में चौहटन मुख्यालय की पंचायत समिति सदस्य सीट महिला आरक्षित थी मनाकर श्रीमति नब्बू देवी निजार को चुना गया ओर ग्राम पंचायत सरपंच पद अनुसूचित जाति आरक्षित को त्याग श्रीमति कसूंबी देवी पत्नि श्री गोपाराम मेघवाल को विजयी बनाया!
कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा
पूर्व विधायक
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