कागा की कविताएं

मायड़ की ममता | Maayad ki Mamta

प्यार बनाम पैसा

हम प्यार के भूखे हमें प्यार चाहिये
जो पैसों के भूखे उनको पैसे चाहिए

बिना प्यार इंसान बेकार बिना रस मेवा
प्यार में ख़ुशबू ख़ुशी हमें प्यार चाहिये

हम ग़रीब ज़रुर मगर प्यार के परवाने
सोते चैन की नींद हमें प्यार चाहिये

बिना प्यार जीना बेकार तड़पे तन मन
जैसे बिना जल मछली हमें प्यार चाहिये

बिना प्यार भोजन बेस्वाद लगता बेरस बेअसर
घास की रोटी जैसा हमें प्यार चाहिये

आज कल इंसान पैसे के पीछे पागल
अपनों से करता नफ़रत हमें प्यार चाहिये

प्यार से पैसों की तुलना करना बेमानी
प्यार का किरदार बड़ा हमें प्यार चाहिये

पैसे करते जीवन की हर ज़रूरत पूर्ण
पैसा कोई कम नहीं हमें प्यार चाहिये

जीवन में पैसे का महत्व महान दोस्तो
पैसा एसा वैसा नहीं हमें प्यार चाहिये

प्यार रुह़ जान दम सांसें शक्ति भक्ति
प्यार जल थल वायु हमें प्यार चाहिये

बिना प्यार इंसान सांप जैसा मारे डंक
ज़हर से भरी ज़ुबान हमें प्यार चाहिये

मानव का हर घर जन्म होता ‘कागा’
मानवता किसी एक घर हमें प्यार चाहिये

ज़िंदगी

ज़िंदगी रोज़ दो चार कुछ कर गुज़र
सांसें मिली मुफ़्त उधार कुछ कर गुज़र

मिला बदन मिट्टी का कोई भरोसा नहीं
मिले नहीं हाट बज़ार कुछ कर गुज़र

सूरज जेसा चमकना है अगर जलना पड़ेगा
भट्टी में जलता अंगार कुछ कर गुज़र

रात को रोशन कर दीपक बन कर
देख तेल की धार कुछ कर गुज़र

उठ जाग मुसाफ़िर चल मंज़िल की ओर
नहीं करना कभी तकरार कुछ कर गुज़र

चमन में चहक महक चिड़िया बुलबुल की
बन गुल गुलाब गुलज़ार कुछ कर गुज़र

समुंदर की गेहराई बन समेट हीरा मोती
नदियां दोड़ी आये हज़ार कुछ कर गुज़र

ख़त़रों से खेलना सीख खिलाड़ी बन ख़ुदारा
नहीं बनना कभी ग़द्दार कुछ कर गुज़र

मोह़ताज नहीं सरताज बन सिरमोर शूर वीर
भिखारी बनना बेह़द बेकार कुछ कर गुज़र

सियासत शत़रंज का खेल गुली डंडा नहीं
बिठा अपने मोहरे विचार कुछ कर गुज़र

दुनिया मत़लब की अपनी मर्ज़ी मुत़ाबिक़ चलती
जलती देख तेज़ तर्रार कुछ कर गुज़र

बांध सिर कफ़न अपने सफ़ेद कपड़ा ‘कागा’
काम्याबी कर रही इंतजार कुछ कर गुज़र

सीख

इंसान ने सलीक़ा सीखा ओरों से
इंसान ने त़रीक़ा सीखा ओरों से

जन्म से नहीं होता कोई प्रवीण
इंसान ने बोलना सीखा ओरों से

मां ने दूध पिलाया सीने लगाया
इंसान ने खाना सीखा ओरों से

कांटों के साथ गुलाब महक खिलता
इंसान ने रहना सीखा ओरों से

घुटनों बल चलते रेंगते बच्चे बेबस
इंसान ने चलना सीखा ओरों से

नींद भूख प्यास प्रकृति की देन
इंसान ने व्यवहार सीखा ओरों से

अकेला आया अकेला जाना वापिस ‘कागा’
इंसान ने जीना सीखा ओरों से

गांधी जयंती पर विशेष

गांधी की आंधी ने ख़ात्मा कर दिया अंग्रेज़ों का
बांध बिस्तर बोरिया भाग खड़े होश उड़ाया अंग्रेज़ों का

अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा हुआ बुलंद जनता में
ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़े आक्रोश उत्पन्न जनता में

साबरमती का संत बड़ा महान जगाया आम जन को
सोया पड़ा था गहरी नींद जगाया आम जन को

नमक आंदोलन चलाया बच्चा बुढ़ा जाग उठा चपे चपे
महात्मा मोहन दास कर्मचंद का गूंजा नाम चपे चपे

आंखों का कांटा बना कर दिया नाक में दम
दम घुटने लगा सांसे फूलने लगी नाक में दम

‘कागा’ आज़ादी का सहरा सिंर बंधा सपने किये साकार
जय हिंद का नारा गूंजा गगन सपने किये साकार

श्राद्ध

श्रद्धा नहीं माता पिता में करते श्राद्ध
आस्था नहीं मां बाप में करते श्राद्ध

जीवित का जीया जलाया कर बेइज़्ज़त बेआबरू
छोड़ आये वृद्धाश्रम में लावारिस करते श्राद्ध

छोटी सी बात पर करते रहते ज़लील
मूर्ख की देते थे पदवी करते श्राद्ध

सेवा चाकरी का नामो निशान नहीं कभी
मरने बाद मृत्यू भोज अब करते श्राद्ध

लोक लाज बेशर्मी की भी ह़द होती
करते लूट खसोट चोरी तस्करी करते श्राद्ध

नाम बदनाम परिजन का करते धड़ले से
मनह़ूस लेते घूस घनेरी डकार करते श्राद्ध

ज़िंदा मां बाप को सताया तड़पाया ख़ूब
खाना पीना दवा दारू नहीं करते श्राद्ध

जोरू के ग़ुलाम बन किया ज़ुल्म सितम
किया घर सम्पति से बेदख़ल करते श्राद्ध

भूख प्यास से बिलखते रहे बेसहारा बन
पूछा नहींं कभी ह़ाल चाल करते श्राद्ध

मन तन कर अर्पण तर्पण जीवित जी
कर जीवन समर्पण अपना फिर करते श्राद्ध

‘कागा’ को कागोल चखाने का छोड़ो ढोंग
बुराईयों का कर त्याग फिर करते श्राद्ध

शहीद ए आज़म भगत सिंह

लोहे के चने चबाने वाला भगत सिंह
अंग्रेजों की आंखों का तिनका बना तीखा
सरे आम धूल झौंकने वाला भगत सिंह
सुखदेव राजगुरु की जुगल जोड़ी बनी मज़बूत
फांसी का फंदा चूमने वाला भगत सिंह
चापलूस चुग़ल चाटूकार वत़न के बडे़ ग़द्दार
बेबाक बोलने वाला बावफ़ा शहीद भगत सिंह
आओ याद करें शूर वीरों को ‘कागा
मुल्क का नाज़ो फ़ख़र रहबर भगत सिंह

मेहमान

अब हम चंद दिनों के मेहमान
अब तुम चंद दिनों के मेज़बान

जहां से आये वहां जाना हमें
भटक अटक गये थे जाना हमें

आपके घर में गुज़ारे कुछ रोज़
दुलार मिला दमदार मुझे कुछ रोज़

फंस गया तेरे प्यार में पागल
आपकी मेहमान नवाज़ी ने किया पागल

बेझिझक बेगार करते रहे पेट वास्ते
चारों मौसम चलते रहे पेट वास्ते

जवानी बीत गई बर्बाद बेकार में
बुढापा बाक़ी चला जायेगा बेकार में

ऊंधे मुंह लटक भूल गये वचन
याद आये अचानक दिये गये वचन

मिला जीवन अनमोल खोया गोफन में
हीरा मोती लाल बहाया गोफन में

उतर गया नशा चढ़ा था सिर
अब खड़ी मोत आकर देख सिर

क़दम डगमगा रहे लड़खड़ा रहा तन
नैनों में नहीं नूरानी बेबस बदन

चेहरे पर झुर्रियां हाथ कांप रहे
चुभ रही छुरियां होंठ कांप रहे

माना जिसको अपना देते मुख अग्नि
चित्ता पर चढ़ाते जहां भभकती अग्नि

‘कागा’ क़बर चित्ता का कर चैन
जहां मिले अंत तक अमन चैन

ताल-मेल

ताल मेल बनाये रखो आपस में
मेल मिलाप बनाये रखो आपस में

ऊंच नीच भेद भाव छूआ छूत
छोड़ जोड़ नाता रिश्ता आपस में

एक हाथ से ताली नहीं बजती
दोनों हाथों का गठजोड़ आपस में

एक हाथ से भोजन करते भरपूर
धोते दोनों साथ साथ आपस में

दूसरे हाथ से करते मल स़ाफ़
ललित पलित नफ़रत नहीं आपस में

एक को चोट लगती दूसरा सहलाता
दोनों दर्द बांट लेते आपस में

खाना बनाते दोनों हाथ मिल जुल
दायां बायां ईर्ष्या नहीं आपस में

क़दम दर क़दम दोनो चलते पांव
आगे पीछे अ़दावत नहीं आपस में

मिलती मंज़िल गिला शिक्वा नहीं कोई
आकार होता अलग प्रेम आपस में

आंखों ने नहीं देखा ख़ुद को
तन देखती मिल समान आपस में

इंसान करता आपस में दोगलापन ‘कागा’
कलह कलेश करता रहता आपस में

जेसी करनी वेसी भरनी

जेसी करनी वेसी भरनी विधि का विधान
जेसी शक्ति वेसी भक्ति विधि का विधान

मन बुद्धि चित्त शुद्धि चंचल सरल संस्कार
जेसा अन्न वेसा मन विद्धि का विधान

जल निर्मल तन कोमल मल मल नहाना
धोना वस्त्र रखना पवित्र विधि का विधान

काम वासना क्रोद्ध भावना मानव के शत्रु
भूख प्यास निद्रा निंदा विधि का विधान

लोभ लालच मोह माया मद छोड़ बंदा
प्रार्थना आस्था आराधना आरती विधि का विधान

जीवन अनमोल में ज़हर नहीं घोल ‘कागा’
तोल बोल मुख खोल विधि का विधान

सबका मालिक एक

सबकी मंज़िल एक मगर रास्ते अनेक
सबका मालिक एक मगर वास्ते अनेक

भगवान बड़ा इंसान ऊंचा कोई बताये
सबका इरादा एक मगर मज़हब अनेक

कोई बनाये मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे
सबका ख़ून एक मगर चेहरे अनेक

एक मिट्टे के मजस्मे सारे इंसान
राम रह़ीम एक मगर जाति अनेक

कोई रहता ख़ामोश कोई बुलंद आवाज़
सबका मक़स़द एक मगर त़रीक़ा अनेक

इंसान बना बेरी इंसान का ‘कागा’
सबकी नज़र एक मगर नज़रिया अनेक

ह़िजरत

ह़िजरत करना कोई आसान काम नहीं
वत़न छोड़ना कोई आसान काम नहीं

वजह रही होगी जानना बहुत ज़रूरी
घर छोड़ना कोई आसान काम नहीं

सबब जान क्या करोगे हम दर्द
परिवार छोड़ना कोई आसान काम नहीं

आबाद झौपड़े खेत खलियान गांव था
पड़ोस छोड़ना कोई आसान काम नहीं

बच्चपन से साथ खेले लिखे पढ़े
यार छोड़ना कोई आसान काम नहीं

जन्म भूमि ननिहाल रिश्ते नाते वास्ते
रास्ते छोड़ना कोई आसान काम नहीं

पलायन कर बेघर आसमान के नीचे
विश्राम छोड़ना कोई आसान काम नहीं

दर दर की ठोकरें खाई भटक
अपने छोड़ना कोई आसान काम नहीं

घाट घाट का पानी पिया घूम
मुल्क छोड़ना कोई आसान काम नहीं

हाथ फेलाया नहीं किसी के सामने
ज़मीन छोड़ना कोई आसान काम नही

जंग जारी रखी मसायल से लड़ना
अरमान छोडना कोई आसान काम नहीं

ह़ोस़ला बुलंद रखा हर क़दम ‘कागा’
जायदाद छोड़ना कोई आसमान काम नहीं

ख़त़रा

अब ख़त़रा अपनों से ग़ैरों से नहीं
अब ख़ोफ़ गीदड़ों से शेरों से नहीं

पालतू तीतर बन बोलते बिकाऊ बोल
जाल में डाल फंसने पर उड़ाते मख़ोल

खाते खुरचन जूठन सूखी बासी चपाती भात
खाते पुलाव बिरियानी पीते पव्वा दिन रात

बोलते बोल रटाया गया बेज़मीर बन कर
गुर्राते बेग़ैरत उतरन पहन अमीर बन कर

गले में गमछा गु़लामी का बड़े बेशऊर
बाशऊर बाअदब की करते बेइज़्ज़ती बड़े बेशऊर

‘कागा’ कठपुतली बन नाचते पराये इशारों पर
बेशर्म बदतमीज़ बन बोलते पराये इशारों पर

इंसान ज़मीर

जमीर मर चुका इंसान ज़िंदा है
इंसान मर चुका जाति ज़िंदा है

बेचा ज़मीर चांदी के टुकड़ों पर
ईमान मर चुका इंसान ज़िंदा है

बेचा ईमान रोटी के टुकड़ों पर
पानी मर चुका इंसान ज़िंदा है

आंखों का बहता दरिया सूख गया
बेज़मीर मर चुका बाजमीर ज़िंदा है

ठोकर मारी ठाठ बाट को ठहर
रस्सी जल चुकी ऐंठन ज़िंदा है

इंसान दुनिया में अलग रंग रूप
स़ूरत मर चुकी सीरत ज़िंदा है

इंसानियत सिसक रही अंतिम सांसें बाक़ी
इंसान मर चुका इंसानियत ज़िंदा है

दस्तूर नहीं बदला दुनिया का ‘कागा’
माह़ोल मर चुका रिवाज ज़िंदा हैं

छू लूं मैं आसमान

जुनून कहता मेरा छू लूं मैं आसमान
ख़ून उबलता मेरा छू लूं मैं आसमान

बंद कली हूं फूल बनने दो मुझे
इरादा कहता मेरा छू लूं मैं आसमान

अबला नहीं सबला हूं कल्पना चावला जेसी
ह़ोस़ला रहता मेरा छू लूं मैं आसमान

तितली मत समझो मैं चील जेसी चुस्त
जोश कहता मेरा छू लूं मैं आसमान

असूरों को पछाड़ा देवियों ने इतिहास साक्षी
रूह़ उक़ाबी मेरा छू लूं मैं आसमान

नदी हूं कल कल कर चलती मतवाली
समुंदर मक़स़द मेरा छू लूं मैं आसमान

कायर नहीं पहाड़ पिघल जाते मेरे सामने
बर्फ़ीला चेहरा मेरा छू लूं मैं आसमान

आंधी तूफान सुनामी बन जाती यदा-कदा
कोमल दिल मेरा छू लूं मैं आसमान

सीप हूं सागर की कोख में मोती
सीना चौड़ा मेरा छू लूं मैं आसमान

ममता की मूर्त हूं क्षमता में मर्दानी
चमकीला रूप मेरा छू लूं मैं आसमान

बिजली बन कड़क जाती बादलों के बीच
बारिश रंग मेरा छू लूं मैं आसमान

मैं आत्मा बन बदन में रहती ‘कागा’
निराला संग मेरा छू लूं मैं आसमान

अकेला

अकेला आया जहान में अकेला लोट जाना
किराये दार बन कर अकेला लोट जाना

मेरा तेरा कुछ नहीं बाक़ी सब बकवास
अपनों से फ़र्ज़ निभाना अकेला लोट जाना

दुनिया का दस्तूर चंद दिनों का मेहमान
अपनों का क़र्ज़ चुकाना अकेला लोट जाना

भारी भीड़ में नज़र आता अजनबी अकेला
ख़ामोश ख़ुद ग़र्ज़ होना अकेला लोट जाना

नाते रिश्ते हम राही सफ़र के साथी
अदब से अर्ज़ हमारा अकेला लोट जाना

मोह़ब्बत नफ़रत दोनों बंद मुठ्ठी में लाये
अपना नाम दर्ज कराना अकेला लोट जाना

मां बाप बेटा जन्म के बंधन पुराने
त़ौर त़रीक़ा तर्ज़ बनाना अकेला लोट जाना

खुला हाथ जाना छोड़ बदबू ख़ुशबू ‘कागा’
बहाने बना मर्ज़ मरना अकेला लोट जाना

मरना बेहतर

घुट घुट कर जीने से मरना बेहतर
बंदी बन कर जीने से मरना बेहतर

शाहीन उड़ता ऊंचा आसमान को छू कर
पिंजरे में क़ैद पंछी से मरना बेहतर

ग़ुलामी का दाना पानी ज़हर से बदतर
उड़ान में आये कमी से मरना बेहतर

सांसें अटक जाती ह़लक़ में मरोड़ते गर्दन
आंखें फूट आती बाहर से मरना बेहतर

क़लमकार पढ़ते कशीदे किसी की शान में
चापलूसी की चाहत रखने से मरना बेहतर

क़लम कटार की धार तेज़ तर्रार रख
चाटुकारी के चार अल्फ़ाज़ से मरना बेहतर

आज़ादी की जद्दो-जहद में शायर शामिल
ज़िंदा लाश बन जीने से मरना बेहतर

बेबाक बिना रोक टोक बड़ा मुश्किल मुह़ाल
हक़ीक़त नहीं बयान करने से मरना बेहतर

सच्च बोलते नहीं लेते झूठ का सहारा
ग़ल्त़ी ग़फ़लत़ गुनाह करने से मरना बेहतर

नया रूह़ जान फूंकी कवियों ने ‘कागा’
ग़ुलामी की ज़िंदगी सफ़र से मरना बेहतर

झूठ झांसा

झूठ का बज़ार गर्मा गर्म सावधान
झांसा का माह़ोल गर्मा गर्म सावधान

नया त़ौर त़रीक़ा नया नारा इरादा
नफ़रत की आग सुलग रही सावधान

इंसान आपस में उलझ रहे फ़ालतू
धर्म के नाम धोखा धमकी सावधान

जाति भेद भाव छूआ छूत वर्गीकरण
आरक्षण से छेड़-छाड़ जारी सावधान

हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई हम भाई
का नारा हो गया ख़त्म सावधान

बर्तन चमकाने के बहाने होती ठगी
लुटेरों के हो़स़ले बड़े बुलंद सावधान

बहिन बेटियां सुरक्षित नहीं दरिंदों से
होती हत्याऐं बलात्कार लगातार लानत सावधान

बेरोज़गारी का बोल बाला युवा परेशान
खाते दर दर की ठोकरें सावधान

नशे के आदी हो चुके मवाली
करते चोरी तस्करी गु़डा गर्दी सावधान

प्रकृति से करते छेड़ ख़ानी ‘कागा’
पर्यावरण प्रदुषण फेला संरक्षण नहीं सावधान

बदलाव

इंसान बदल गया हवा के साथ
चेहरा बदल गया उम्र के साथ

इंसान मत़लब का यार बड़ा ज़ालिम
विचार बदल देता ज़रूरत के साथ

हवा का रुख़ भांप चलता हरदम
संग बदल देता हुड़दंग के साथ

अपना कोई वजूद नहीं पराया भरोसा
ज़ायक़ा बदल देता ख़ोराक के साथ

पानी पर बुलबुला पल भर होता
मोती मान लेता स्वभाव के साथ

ओस की बूंदें दग़ा दे जाती
गुमराह हो जाता चमक के साथ

चढ़ जाता नशा जोश जवानी का
होश खो देता ह़वस के साथ

चमक दमक चका चौंध में ‘कागा’
जल जाते परवाने ज्वाला के साथ

बहु बेटी समान

बहु बेटी समान घर की आन बान शान
बहु बेटी समान घर की जान ईमान अरमान

बहु घर का पर्दा आंगन की रंगीन रंगोली
बहु में बेटी की छवि मुख की ज़ुबान

चाल चेहरा चरित्र चित्त चित्र पवित्र पावन भावन
ग्रहस्थ जीवन में ग्रहणी आनंद बरसाये वर्षा आलीशान

जन्म पर घर हुआ छोड़ आई माता पिता
पति संग जीवन समर्पण माना पति परमेश्वर समान

सास ससुर को मां बाप समझ करे सेवा
आंच नहीं आने दे परिवार की शान परवान

ननंद देवर को माने बहिन भाई सगा अपना
परम शांति प्रिय जीवन बीते भरा भंडार सामान

धन दोलत की कोई कमी नहीं ग्रह लक्ष्मी
कलह कलेश उठा पटक का नहींं नामो निशान

संस्कार सभ्यता संस्कृति गंगा जमुनी की धारा बहती
कल कल कर कहती घर स्वर्ग के सामान

बहु बेटी करती दो कुलों का नाम रोशन
मायका ससुराल के परिजन प्रसन्न पूर्ण देख अरमान

बहु घर की रानी बड़ी स्यानी कामनी ‘कागा’
घर में चार चांद लगाये चमके रोशन दान

सेवा मेवा

मात पिता की कर सेवा बंदा
जिसने दिया जीवन कर सेवा बंदा

प्रात: उठ कर चर्ण स्पर्श नमन
ह़ाल चाल पूछ कर सेवा बंदा

जीवन दिया जन्म दिया जग में
दिव्य कराया दर्शन कर सेवा बंदा

कर सेवा मिले फ़ल मेवा मीठा
दुआ आशीष मिले कर सेवा बंदा

मरने बाद करता ओसर मोसर दिखावा
मृत्यू भोज पकवान कर सेवा बंदा

जीवित की सेवा कर हर रोज़
आत्मा संतुष्ट रख कर सेवा बंदा

पितर पक्ष में करता अर्पण तर्पण
जीवित में समर्पण कर सेवा बंदा

मां बाप का क़र्ज़ चुकाना मुश्किल
फ़र्ज़ अदा ज़रूरी कर सेवा बंदा

स्वर्ग नर्क संसार में सुख दुख
मन चित्त प्रसन्न कर सेवा बंदा

वृद्ध आश्रम के ह़वाले नहीं करना
घर में रखना कर सेवा बंदा

पाल पोष बड़ा किया लायक़ बनाया
नालायक़ नहीं बन कर सेवा बंदा

मात तात जेसी सेवा नहीं ‘कागा’
छोड़ फंदा धंधा कर सेवा बंदा

जीवन के रंग

जीवन के रंग अनेक
कुछ बद कुछ नेक

कोई काला कोई गोरा
कोई लाल कोई कोरा

रंग बरंगी फूल खिले
चमन में पीले नीले

तिलली चहके बड़ी मस्त
कली खिली मद मस्त

बुलबुल बहक महक उठी
चिड़िया चुलबुली चहक उठी

त़ोत़ा मीना की कहानी
लेलां मजनू की ज़ुबगनी

राधा कृष्ण का प्रेम
मीरा कृष्ण का प्रेम

प्रेम भाव पावन पवित्र
शुद्ध मन भावन चरित्र

पुरूष प्रकृति का मेल
रज वीर्य का खेल

जेसी दृष्टि वेसी सृष्टि
जेसा बीज वेसी सृष्टि

कागा कोयल रंग एक
भिन्न भाषा अलग विवेक

इंसाफ़

आज कल इंसाफ़ धर्म के नाम होने लगा
आज कल न्याय जाति के नाम होने लगा

सच्च झूठ की परख नहीं फ़र्क़ नहीं फेर
आज कल रिश्ता राजनीति के नाम होने लगा

परिवार की पूछ ताछ नहीं मोबाईल सब कुछ
आज कल याराना दोलत के नाम होने लगा

फ़ेसबुक इंस्टाग्राम पर सगाई होती रंग रूप देख
आज कल ब्याह चैट के नाम होने लगा

दुल्हन दोड़ आती जाती सीमा पार सज धज
आज कल परिवार इंटरनेट के नाम होने लगा

धर्म मज़हब जाति बंधन नहीं भेद भाव ‘कागा’
आज कल समाज बराबरी के नाम होने लगा

इस्तेमाल

आपका इस्तेमाल हो रहा है सियास्त में
आपका उपयोग हो रहा है हिरास्त में

जाहल पागल हो तुम एकदम अनाड़ी अबोझ
आपका दुर्पयोग हो रहा है विरासत में

हाथ जोड़ दोनों मांगते बन भिखारी वोट
आपका उभोग हो रहा है शराफ़त में

पांच साल तक पेहचान नहीं रहते गुमनाम
आपका वियोग हो रहा है अदालत में

काम काज होता नहीं रोज़ मरह का
आपका प्रयोग हो रहा है शरारत में

तारा तोड़ लाने का करते वादा ‘कागा’
आपका उधोग हो रहा है इमारत में

नारी का सम्मान

कर नारी का सम्मान नारी नर की खान
कभी नहीं करना अपमान नारी नर की खान

मां की कोख से उत्पन्न हुआ होगा तुम
मां बेटे की जान नारी नर की खान

बहिन होगी चुलबुली चिड़िया गुड़िया प्यारी दुलारी लाडली
पराई का करते अपमान नारी नर की खान

बेटी कलेजे का टुकड़ा धड़कन दिल की धारा
बुरी नज़र नहीं जान नारी नर की खान

करते छेड़ ख़ानी गली कोचे चोराहे पर जबरन
करता बलात्कार लानत इंसान नारी नर की खान

दहेज वास्ते करता दमन दरिंदा बन हत्या ‘कागा’
सबको अपनी बहिन मान नारी नर की खान

देश भाग्य विधाता

हम दास देश के देश भाग्य विधाता
हम भक्त देश के देश हमारा दाता

बोलो वंदे मातरम चाहे ख़ुशी चाहे ग़म
देश दिल की धड़कन देश हमारी दम

जब तक जान जिस्म में ज़िंदा दिल
देश भाग्य विधाता दाता हम ज़िंदा दिल

आन बान शान जान क़ुर्बान मुल्क पर
ईमान अरमान बलिदान कर देंगे मुल्क पर

आंच नहीं आने पाये वत़न पर कोई
बुरी नज़र लगे नहीं दुश्मन की कोई

इज़्जत आबरू सांसों से प्यारा हमारा वत़न
ह़िफ़ाज़त करेंगे हर लिह़ाज़ से मुकमल जतन

धन दोलत शान शोक्त शहोरत मुल्क हमारा
वत़न हमारी आत्मा देश प्राण से प्यारा

तिरंगा आज़ादी का ऊंचा लेहराये छूकर आकाश
गायें गीत गुनगुना गूंजे नील गगन आकाश

‘कागा’ पंद्रह अगस्त को करें याद शहीद
ग़ुलामी से आजादी दिलाई करें याद शहीद

बेटी बोझ नहीं

बेटी बोझ नहीं बेटी सिर का ताज
बेटी मां बाप के सिर का ताज

बेटी तितली कली फूल की कोमल सुंदर
बेटी चेहकती चिड़िया गुड़िया सू़रत मूर्त सुंदर

बेटी अनमोल मोती मोर मुक्ट जेसी मोहक
बेटी को बोझ मत मानो मन मोहक

बेटी का वासा उस घर में लक्ष्मी
पूजन करो प्रेम से भंडार भरे लक्ष्मी

बेटी दो कुल का कल्याण करे भरपूर
मायके ससुराल का चिंतन करे भाग्य भरपूर

बेटी मां बहिन बहु का नाता निभाये
बेटी बूआ सास का रिश्ता नाता निभाये

बेटी घर आंगन की रंगोली भोली भाली
बेटी पूजा अर्चना आराधना आरती की थाली

‘कागा’ बेटी कलेजे की कूंपल पंखुड़ी प्यारी
बेटी का बखान कितना करूं महिमा न्यारी

राष्ट्र भक्ति

हम राष्ट्र भक्त हम अंध भक्त नहीं
हम वत़न प्रस्त हम अंध भक्त नहीं

हम उपेक्षा के शिकार बने बार-बार
भेद भाव छूआ छूत में तार-तार

धर्म देश ईमान नहीं छोड़ा हम बुलंद
लालच में अरमान नहीं तोड़ा हम बुलंद

ज़मीर अपना बेचा नहीं सहा ज़ुल्म सितम
बेघर बन रहना क़बूल सहा ज़ुल्म सितम

बहिन बेटियां ब्याही नहीं किसी ग़ैर को
अस्मत क़ायम रखी सौंपी नहीं ग़ैर को

रूखी सूखी बासी जूठन खाई भीख मांग
कभी सिर झुकाया नहीं अपनी सीमा लांघ

इंसान की गरिमा बनाये रखी मर्यादा में
मुख़बर ग़द्दार नही बने रहे मर्यादा में

वफ़ादार ईमानदार मुल्क के पीढ़ी दर पीढ़ी
ग़रीबी में जीवन गुज़ारा पीढ़ी दर पीढ़ी

कलंक का काला दाग़ नही लगने दिया
भूख प्यास मरना मंज़ूर नहींं लगने दिया

शिक्षा दीक्षा से दूर रखा परवाह नहीं
मंदिर पूजा पाठ से परहेज़ परवाह नहीं

‘कागा’ मुल्क पर आंच आने नहीं देंगे
जान की बाज़ी लगा आने नहीं देंगे

जाग राही

जाग राह के राही चल मंज़िल की ओर
जाग क़ौम के सिपाही चल मंज़िल की ओर

हर बंदा बेदार है मंज़िल ह़ास़िल करने को
ढूंढ रहा हम राही चल मंज़िल की और

दुश्मन खड़ा दरवाज़े पर राह की रुकावट रहज़न
तुला है करने तबाही चल मंज़िल की ओर

कौन अपना कौन पराया जान पेहचान कर प्यारे
बिना स़बूत देगा गवाही चल मंज़िल की कर

करवट बदल दल दल छल कपट झूठ झांसा
उठ लेकर अब अंगड़ाई चल मंज़िल की ओर

कारवां चला गया लशकर लड़ाई करने वाले लोग
अब रह गयी तन्हाई चल मंज़िल की ओर

रास्ता बड़ा मुश्किल है ऊबड़ खाबड़ डगर मगर
साथ रखना अपनी सुराही चल मंज़िल की ओर

चाक चौबंद होकर चलना खेल नहीं आसान यार
नहीं चलेगी ज़रा लापरवाही चल मंज़िल की ओर

ह़िस़ाब किताब लेखा जोखा सही सलामत रखना ‘कागा’
संग कापी क़लम स्याही चल मंज़िल की ओर

सच्चाई

सच्चाई सुनने को तैयार नहीं लोग
झूठ पसंद करते तैयार नही लोग

झूठ हज़म हो जाता जल्द मगर
सच्च से प्यार नहीं करते लोग

सच्च से प्यार नहींं आज कल
झूठ को पसंद करते गुमराह लोग

झूठ ज़िंदगी का ह़िस्स़ा हो गया
हर बात में बोलते झूठ लोग

डांट फटकार की परवाह नहीं ज़रा
कूंए में पड़ी भांग पीते लोग

ज़मीर औंघ गया सांप सौंघ गया
सच्च सुनते नहीं झूठ बोलते लोग

केसा दौर केसा ज़माना आया ‘कागा’
क़दम दर क़दम फरेब करते लोग

चले जाना

रोते आये जहान में रोते छोड़ चले जायेंगे
सोते आये संसार में सोते छोड़ चले जायेंगे

दुनिया में जीना दो दिन का आख़र जाना
बंद मुठ्ठी आये हम ख़ाली हाथ चले जायेंगे

दुनिया बड़ी दीवानी मस्तानी अजब ग़ज़ब खेल तमाशा
नंगा बदन आये हम नंगा तन चले जायेंगे

जन्म पर नहा नही सके मरने पर माज़ूर
उधार सांसे लाये हम सांसें छोड़ चले जायेंगे

हम रोये अपने हंसे बांटा गुड़ बजाई थाली
पैदल आये पराये कंधों सवार होकर चले जायेंगे

ख़ुशी ग़म का लुत़्फ़ लिया जग में जमकर
एक झौंके में उड़ते छू मंत्र हो जायेंगे

नहीं कोई ठोर ठिकाना नहीं मंज़िल का पता
अकेले आये हम अकेले जहान छोड़ चले जायेंगे

दो गज़ ज़मीन कफ़न कपड़े वास्ते कमाया धन
मेरा तेरा मत कर बंदा सब छोड़ जायेंगे

बिना पंख पंखेरू हर किसी के जिस्म में
पंख फड़फड़ा कर फुर्र होकर उड़ चले जायेंगे

मुखाग्नि देंगे अपने ज़रा भी तरस नहीं ‘कागा’
दफ़न करना जलाना करेंगे अपने हम चले जायेंगे

दीमक

दीमक लग चुकी धूल हटाओ हर रोज़
आईना धुंधला हुआ धूल हटाओ हर रोज़

दुश्मन देहरी लांघ घुस चुका घरों में
ग़ैर को भगाओ ध्यान रखो हर रोज़

नीयत में खोट है जान पेहचान नहीं
घुसपेठ हो चुकी सावधान रहो हर रोज़

बिना मांगे लाता जबरन जूठन खुरचन खाना
टर्रा पव्वा पूरी ख़बरदार रहो हर रोज़

सहयोग सहायता के बहाने ईमान के सोदागर
बेजमीर बना रहे सतर्क रहो हर रोज़

फूट डाल चुके कर चीर फाड़ ‘कागा’
ह़क़ हड़प रहे मज़बूत रहो हर रोज़

आज़ाद पंछी

वो जलते आह वाह हम चलते रहे
हमें मिली राह वो हाथ मलते रहे

ह़सद की आग में जल बने राख
हमें मिली हिम्मत वो हाथ मसलते रहे

पिट्ठुओं से पूछा नहीं चले हम अकेले
हमें मिली मोह़ब्बत वो मूर्ख मचलते रहे

हम सफ़र मिल गया राह चलते चलते
हमें मिली स़ोह़ब्बत वो ऊंचे उछलते रहे

ग़ुरूर था ग़ज़ब का रुक थक गये
हमें मिली जन्नत वो ज़हर उगलते रहे

रहबर मिल गया हमें अपना मन पसंद
हमें मिली इज़्जत वो बलते उबलते रहे

कम सामान सफ़र आसान एक गठरी गूदड़ी
हमें मिली उल्फ़त वो उल्टे उलझते रहे

त़ौर त़रीक़ा तकरार का क़दम दर क़दम
हमें मिली ह़िफ़ाज़त वो रंग बदलते रहे

नफ़रत की आग फेलाने वाले नादान नाकाम
हमें मिली केफ़ियत वो बेबस बिदकते रहे

बंद पिंजरे के त़ोत़े रटते राग ‘कागा’
हमें मिली इजाज़त वो बेवजह बकते रहे

रोशन

वत़न का नाम रोशन करना है चलना सीखो
मुल्क का नाम रोशन करना है जलना सीखो

राही बन जाओ राह का मंज़िल की ओर
क़ौम का नाम रोशन करना है बदलना सीखो

दीपक बन जलना होगा बिना बाती बिना तेल
जाति का नाम रोशन करना है बलना सीखो

गुलाब का गुल बनने की ह़स़रत दिल में
ख़ानदान का नाम रोशन करना है महकना सीखो

कांटा बन रहना होगा नुकीला संग फूलों के
ख़ुद का नाम रोशन करना है बहकना सीखो

नर्म सख़्त मिज़ाज एक सिक्के के दो पेहलू
चमन का नाम रोशन करना है चहकना सीखो

अगर सूरज बन रोशन करनी कायनात को ‘कागा’
कायनात का नाम रोशन करना है ढलना सीखो

नर नादान

वो नर नादान जो करे नारी की निंदा
वो नर बेईमान जो करे नारी की निंदा

नो माह़ तक अपनी कोख में पाला पोसा उसको
बोझ उठाया मां ने जान से प्यारा रखा उसको

जब हुआ जन्म सुन किलकारी बजाई थाली ख़ुशी में
बधाई मिली बांटा गुड़ मिठाई पुत्र की ख़ुशी में

बोल बोलना नहीं आता मां ने सिखाया हर शब्द
अब ज्ञानी बन बेठा विद्वान नारी को कहता अपशब्द

ढोल ढोर शूद्र नारी को कहता ताड़न के अधिकारी
नारी नर जननी भगनी संगनी सदेव सम्मान की अधिकारी

नारी लक्ष्मी सरस्वती ऋद्धि सिद्धि ममता क्षमता की मूर्त
नारी वंश वृद्धि की बेल संसार समता की मूर्त

नर नारी का मेल मिटा दे घोर अंधेरा छाया
नर सूरज चांद नारी रोशनी चांदनी कामनी काया माया

ब्रह्मा विष्णु शिव बिना नारी नहीं उत्पत्ति सृष्टि रचना
सरस्वती लक्ष्मी पार्वती बिना नहीं जग में कोई संरचना

‘कागा’ माता बहिन अद्धांगनी का करो आदर सत्कार स्नेह
जीवन सफल हो जायेगा जग करो आदर सत्कार स्नेह

सुखी इंसान

रोटी कपड़ा ओर मकान
लंगोटी छपरा ओर दुकान

मिल जाये समय पर
वो होता सुखी इंसान

नहीं लफड़ा लोभ लालच
नहीं मोह सुखी इंसान

भूख प्यास बुझाने को
अन्न जल सुखी इंसान

सिर छिपाने को छपरा
छाया मिले सुखी इंसान

तन ढकने को कपड़ा
हाथों काम सुखी इंसान

संस्कार युक्त संग संगनी
प्रेम पावन सुखी इंसान

श्रम की कमाई शुद्ध
सोच बुद्ध सुखी इंसान

बंद मुठ्ठी आया अकेला
नंगा बदन सुखी इंसान

खुला हाथ चले जाना
बेबस बंदा सुखी इंसान

दो गज़ ज़मीन कफ़न
दफ़न वास्ते सुखी इंसान

अपना नहीं कोई ‘कागा’
अकेला जाना सुखी इंसान

ज़़मीर

चमक देख चुग़लों की चित्त डग मग हो गया
दमक देख दोगलों की मन जग मग हो गया

चमचों की पौ बारहा रहते हरदम चिकने चुपड़े चुस्त
बिचोलियों की बले बले शाम ढले दिलो दिमाग़ दुरस्त

दाल गलती देखी दलालों की चाल चलती चापलूसों की
शराब कबाब शबाब में लाजवाब बेहतरी चौकीदार चापलूसों की

गधे खाते देखे गुलाब जामुन घोड़ों को नहीं घास
सांप बंद कर दिये टोकरी में सपेरों को विश्वास

नाग पंचमी को पिलाते दूध भर कटोरा कर पूजा
वरना करते वार देख जाये घर में लाठी पूजा

‘कागा’ देख रंग बदरंग दुनिया का ज़मीर नहीं बेचना
उतार चढ़ाव आते रहेंगे जीवन में ज़मीर नहीं बेचना

मां की ममता

मां की ममता का चमकता सितारा बेटा
मां के आंचल में दमकता सितारा बेटा

मां की आंखों का तारा पलक पावड़ा
मां के कलेजे का टुकड़ा प्यारा बेटा

दिल की धड़कन आंखों की फड़कन होता
नन्हा मुन्हा जवान जोशीला जज़्बाती सहारा बेटा

दिल से दूर नहीं आस पास बसता
मिल जुल मुस्काये ख़ुशियों का पिटारा बेटा

मां बेटे जेसा कोई पवित्र रिश्ता नहीं
दिल को सुकून देता हरदम दुलारा बेटा

श्रवण की सेवा मां बाप की अनूठी
हर मां की इच्छा मिले मतवारा बेटा

मां का जीवन बेटे पर क़ुर्बान ‘कागा’
उगता सूरज मां का लाड़ला सवेरा बेटा

प्रशंसा

कब तक करते रहोगे पराई प्रशंसा
कब तक करते रहोगे पराई अनुशंसा

परिजन से प्यार कर हर रोज़
कब तक करोगे पराया भरोसा

ग़ैर की गोद में बेग़ैरत बने
कब तक रहोगे फंदे में फंसा

अपनों की करते बढ़ चढ़ बुराई
कब तक करते रहोगे पराई सुरक्षा

जी ह़ुज़ूरी बन खड़े हो ख़ुदारा
आज़ाद होने की नहीं है मंशा

पराया घर रोशन करने को उतावले
अपनों को क्यों देते झूठा झांसा

जिस जाति कुल में जन्म लिया
वो क्या रखें आप में आशा

ओरों से बोलते मीठे बोल मधुर
अपनों से कब बोलोगे मीठी भाषा

अपेक्षा उपेक्षा में बदल गई ‘कागा’
कब तक देखें हम दोगला तमाशा

बलात्कार

हर रोज़ होता बहिन बटियों का बलात्कार
हर रोज़ होता बहिन बेटियों से दुराचार

हृदय हांफता कलेजा कांपता सुन घिनोनी घटनाऐं
हर रोज़ होता बहिन बेटियों पर अत्याचार

चीख़ चीत्कार चिलाना सुनता नहीं कोई कसाई
हर रोज़ होता बहिन बेटियों का दुर्व्यवहार

गलियारों चौराहों सरे आम होती छेड़-ख़ानी
हर रोज़ होता बहिन बूटीयों पर तकरार

दहेज के लोभी भेड़िये मांगते धन दोलत
हर रोज़ होती बहिन बेटियां बलि हज़ार

ह़वस़ का शिकार होती बदनसी़ब दीन हीन
हर रोज़ होता बहिन बेटियों का बंटाधार

रिश्ते नाते कलंकित देखे कलयुग में ‘कागा’
हर रोज़ होता बहिन बेटियों का तिरस्कार

बंटवारा

बंटवारा कर बंटाधार कर दिया इंसान का
इंसान ने नुक़स़ान कर दिया इंसान का

प्रकृति के नियम क़ानून तोड़े इंसान ने
धर्म को बांटा भागों में इंसान ने

वर्ण व्यवस्था लागू की ऊ़च नीच की
जाति को छिन्न भिन्न ऊंच नीच की

इंसान ने हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई बनाये
पूजा पाठ के अलग प्रथा नियम बनाये

मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे भगवान के घर
मूर्ती काबा क्रास समाधी स्थल दरगाह दर

‘कागा’ नाम राम रहीम अल्लाह गाड वाहगुरु
इबादत में अलह़दगी बंदगी नमाज़ सत गुरु

नारी

नारी नर पर भारी नारी नर जननी
नारी भगनी नारी मां ममता नारी संगनी

बिना नारी जग सूना नारी आंगन उजाला
नारी नर की खान नारी ज्योति ज्वाला

नारी लक्ष्मी सरस्वती सावित्री करती सिंह सवारी
नारी माता सीता पार्वती ऋद्धि सिद्धि बलिहारी

नारी प्रथ्वी अग्नि नारी चमकती बिजली बन
मारी जाती कोख में कन्या भ्रुण बन

चित्ता चढ़ती सत्ती प्रथा के बहाने जलती
देहेज की बलि दानवों के हाथ जलती

दरिंदों की दासी होती काम वासना शिकार
मानव बनता दानव उत्पन्न होते पशु विकार

‘कागा’ नारी वंश वृद्धि की बेलड़ी सुंदर
करो नारी का सम्मान मन चित्त सुंदर

कवि साहित्यकार: डा. तरूण राय कागा

पूर्व विधायक

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