दुष्यंत त्यागी हो गए | Dushyant Tyagi ho Gaye
दुष्यंत त्यागी हो गए
( Dushyant tyagi ho gaye)
आत्मा आहत हुई तो शब्द बागी हो गए।
कहते कहते हम ग़ज़ल दुष्यंत त्यागी हो गए।
है सियासत कोठरी काजल की रखना एहतियात,
अच्छे-अच्छे लोग इसमें जा के दागी हो गए।
गेह-त्यागन और यह सन्यास धारण सब फ़रेब,
ज़िन्दगी से हारने वाले विरागी हो गए।
गालियाँ बकते रहे जिनको उन्हीं के सामने,
क्या हुआ ऐसा कि श्रीमन पायलागी हो गए।
आप जिन कामों को करके हो गए पुण्यात्मा,
हम उन्हीं को करके क्यों पापों के भागी हो गए।
कवि व शायर: वीरेन्द्र खरे ‘अकेला
छतरपुर ( मध्य प्रदेश )