Muhabbat mein
Muhabbat mein

 मुहब्बत में इशारे बोलते हैं

( Muhabbat mein ishare bolte hain )

 

फ़लक से चाँद तारे बोलते हैं
मुहब्बत में इशारे बोलते हैं

तुम्हीं ने रौनक़े बख़्शी हैं इनको
यहाँ के सब नज़ारे बोलते हैं

बहुत गहरा है उल्फ़त का समुंदर
मुसाफिर से किनारे बोलते हैं

बहुत मुश्किल सफ़र है ज़िन्दगी का
थके हारे सहारे बोलते हैं

मेरे अपनों को आखिर क्या हुआ है
उन्हीं के हक़ मे सारे बोलते हैं

मैं वाक़िफ़ हो गया हूँ ख़ूब उनसे
फ़कत जुमले वो प्यारे बोलते हैं

बुलंदी एक दिन मिलकर रहेगी
मुक़द्दर के सितारे बोलते हैं

ख़ता सारी हमारी ही है साग़र
ये हम तो डर के मारे बोलते हैं

 

कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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