द्वंद | Dvand
वैसे वह एक हट्टा कट्टा नौजवान है । उसे जिम जाने का शौक बचपन से है ।
क्या मजाल किसी को की उसको कोई नीचा दिखा कर चला जाए?
मोहल्ले में ऐसी धाक जमाया है पट्ठा कि पूछो मत। सब उसे देवता समझते हैं देवता। परंतु इस देवता के हृदय में जलने वाली अग्नि को कोई नहीं देख पाता कि कितना दर्द छुपाए हुए है यह देवता?
बचपन में ही पिताजी का देहावसान हो गया । घर में संपन्नता होने के बाद भी पिता का ना रहना स्वयं में बहुत बड़ा दुख है । जब वह मात्र 6 वर्ष का हुआ तो मां ने भी साथ छोड़ दिया । अब उसका इस दुनिया में कोई नहीं बचा जिसे वह अपना कह सके।
घर की पारिवारिक जो जमीन थी धोखेबाजी में उसके चाचा ताऊ जी ने कब्जा कर लिया। एक तो दुखों का पहाड़ उसके जीवन में वैसे ही टूट पड़ा था दूसरी ओर परिवार की बेरुखी उसे सही ना जा रही थी।
वह सोच नहीं पा रहा था कि वह क्या करें ?
कभी-कभी विचार आया नदी में कूद कर जान दे दे। एक बार उसने जान देने का प्रयास भी किया परंतु लोगों ने उसे बचा लिया । जब तक प्रभु की मर्जी ना हो कोई कैसे किसी को मार सकता है।
घर परिवार एवं समाज द्वारा उपेक्षा को झेलते-जलते धीरे-धीरे उसके अंदर समाज के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती है। उसे लगता कि सभी उससे घृणा करते हैं ।सब धोखेबाज एवं मक्कार हैं ।
मैं एक एक से बदला लूंगा। किसी को नहीं छोडूंगा ।
कभी-कभी स्कूलों में भी वह गुरुजनों से झगड़ जाता। उसको रतंटु विद्या से घृणा हो गई ।उसका विचार है कि रटकर पढ़ने से परीक्षा तो पास की जा सकती है परंतु सृजनशीलता संवेदना नहीं विकसित हो सकती हैं। कभी-कभी जब उसे कोई पाठ याद नहीं होता तो गुरुजन उसे दंडित करते।
वह लाख समझाने की कोशिश करता किसी प्रकार से माना मैं रटकर परीक्षा तो पास कर लूंगा परंतु मेरे जीवन का विकास नहीं हो सकता । सच्ची शिक्षा वही है जो हमें जीवन को जीना सिखायें। हमें शांति प्रेम दया करुणा के भावों से भर दे।
जब उसे सुनाई पड़ता कि लोगों को दर्दों से मुक्ति देने वाला वैद्य स्वयं खुदकुशी करके मर गया तो उसे बहुत दुख होता है ।उसे समझ में नहीं आता कि लोग इतने असानंत से क्यों हैं? गाड़ी बंगला ऐशै आराम की सारी चीज होने पर कौन सा ऐसा दुख है जिसके कारण लोग आत्महत्या कर लेते हैं।
जब कभी वह यह सुनता कि दहेज न मिलने के कारण ससुराल वालों ने बहु को जला दिया तो सोचता क्या किसी मां बहनों की कीमत मात्र कुछ कौड़िया है?
उसका खून खौल जाता यदि दहेज लोभी व्यक्ति कहीं सामने पड़ जाता तो उसका खून पिए बिना उसे चैन ना पड़ता? सुबह-सुबह अखबार देख रहा है जिसमें समाचार था कि डॉक्टरों का ऐसा गिरोह सक्रिय है जो गुपचुप तरीके से कन्या भ्रूण हत्या करवा रहा है।
वह सोचता यदि इसी प्रकार कन्याओं की हत्या होती रही तो क्या पुरुष बच्चा देगा ?
आखिर लोग क्यों नहीं समझते कि श्रृष्टि तभी बची रह पाएगी जब स्त्री पुरुष का संतुलन समान होगा।
वह देखता कि लोग अपने सुखोंपभोग के लिए पेड़ पौधों वनों को नष्ट कर रहे हैं। उपजाऊ जमीनों पर कल कारखाने लगाए जा रहे हैं । मिलावट खोरी का बाजार इतना गर्म है कि पूछो मत। शुद्ध चीज आपको बाजार में कुछ भी मिल जाए तो मुश्किल है ।
आखिर मिलावट करके कुछ पैसों के कारण इतना नीचे इंसान कैसे गिर सकता है। इंसान मानवी अस्तित्व तभी बच पाएगा जब जल जंगल जमीन बचेगा।
दुनिया भर में फैली अराजकता को देखकर वह कुछ क्षण तक अपने दुखों को भूल जाता है । उसे लगता है कि प्रभु के शरणं में चलना चाहिए परंतु वहां भी बाबाओं की लीलाएं सुनकर उसके रोंगटे खड़े हो जाते हैं कि फलां संत सेक्स स्कैंडल में फंसा है तो फलां संत के नाम दसों हत्या के केस चल रहे हैं।
मंदिरों में पूजा के चढ़ावा के लिए होती लाठी चार्ज जैसी घटनाएं सुनकर उसे लगता क्या रखा है इन भगवान को बेचने वाले दुकानदारों के यहां?
अपने मन को ही मंदिर ना बनाया जाए। ईश्वर के दरबार में जब इतनी अराजकता है तो मानवता कैसे बची रह पाएगी। छोटे-छोटे बच्चों के साथ जब उसके ही भाई बाप बलात्कार करते हो तो उसे नहीं समझ आता क्यों मनुष्य जानवरों से भी गया गुजरा होता जा रहा है?
जानवर तो अपने नवजात शिशुओं के लिए दुराचार नहीं करता? मनुष्य क्या जानवर भी नहीं रह गया है?
समाज में फैली अराजकता को देखकर उसकी मन द्वंद से भर जाता है। क्या सही है क्या गलत है उसका बाल मन कोई निर्णय नहीं ले पाता है। कई लोगों से सलाह मस्वरा करता है।
फिर भी कोई समाधान नहीं समझ में आता। वह कुर्सी पर बैठे हुए समाज की स्थितियों का विश्लेषण करता है। वह अपने जीवन को भी अनुभव करता है। उसका स्वयं का जीवन भी द्वंद से भरा है।
योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )