Eid ka Chand
Eid ka Chand

ईद का चांद

( Eid ka chand )

 

देखते   ही   तुझको , तुझसे  प्यार  हो  गया

ऐसा  लगा   कि   जैसे   चमत्कार   हो  गया

 

जन्नत  की  हूर  सी  लगी  उतरी है  चांद सी

समझा  कि  ईद-ए-चांद  का  दीदार हो गया

 

जुल्फों  के  बीच  खिलखिलाने को क्या कहूं

दिल  में लगा कि बिजली का संचार हो गया

 

जब   कभी  वह  देखती  मुस्कान  अदा  से

एक  क्षण के  लिए लगता मैं बिमार हो गया

 

धरती बनी गगन तो गगन को अब क्या कहूं

धरती  पर  अब  तो चांद का दीदार हो गया

 

नजरें  अजब  की  ढाहते आंखों  में करिश्मा

एक  ही नजर में तुमसे आंखें चार हो गया है

 

मुखड़ा  कहूं  कि  चांद  का टुकड़ा कहूं तुम्हें

देख  तुमको   तुझपे  दिल  निसार  हो  गया

 

चलती हवाएं छूती जब कोमल सी बदन को

तन  बदन  में  सिहरन  का  तुषार  हो  गया

 

रचनाकार रामबृक्ष बहादुरपुरी

( अम्बेडकरनगर )

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