मैं कोई फरिश्ता नहीं | Farishta
मैं कोई फरिश्ता नहीं!
( Main koi farishta nahi )
इतना काफी है जमाने को बताने के लिए,
आजकल आती नहीं हमको रुलाने के लिए।
कहानी तैरती है उसके दिल की झीलों में,
उतरती दरिया नहीं बेसुध नहाने के लिए।
हुस्न की गागर वो चलने पे छलकती ही है,
बढ़ती बेताबियाँ हमको जलाने के लिए।
कौन उठाएगा बोझ उसकी अदाओं का रोज,
उलझी गुत्थी वो आती नहीं सुलझाने के लिए।
उसकी मासूम आँखों में है शरारत इतनी,
नहीं आती है चौबारे आँख लड़ाने के लिए।
नींद आती नहीं साँसों का कफ़न ओढ़ा हूँ,
राह दिखती नहीं है उसको मनाने के लिए।
पहचान लूँगा मैं उसे उसके खुशबुओं से,
आजकल आती नहीं वो ज़ख्म दिखाने के लिए।
उड़ रही है बात मेरी सारी गली-कूचों में,
मैं कोई फरिश्ता नहीं आओ उठाने के लिए।
मेरा दिल लुट चुका, हार चुका दुनियावालों,
लगता है आँसू नहीं बचेंगे बहाने के लिए।
भरी बहार में मैं खिला हूँ एक फूल की तरह,
क्या मेरे नसीब में ये लिखा है मुरझाने के लिए।
रामकेश एम.यादव (रायल्टी प्राप्त कवि व लेखक),
मुंबई