
फ़ौजी की राखी
( Fauji ki rakhi )
जिस बहिना के नहीं कोई भाई,
बाॅंधों राखी वह हमारी कलाई।
बनालो मुझको मुँह बोला भाई,
सूनी है मेरी हाथों की कलाई।।
ऐसा बहन तुम मन में ना लाना,
कि नहीं है हमारे कोई ये भाई।
सीमा पर खड़ा जो फ़ौजी भाई,
दुश्मन से कर रहा वह लड़ाई।।
डाक फ़ोन से राखी एवं मिठाई,
भेज देना यह मैसेज इस भाई।
छुट्टी न आ सकता फ़ौजी भाई,
ख़ुश रहो बहिना कहें ये भाई।।
सुनो हमारी प्यारी प्यारी बहना,
धीरज तुम ये कभी मत खोना।
यह आँसू भी तुम न झलकाना,
न कभी रोना हॅंसते ही रहना।।
ईश्वर को अगर यह मंजूर हुआ,
सामनें आपके आयेगा ये भाई।
गणपत नाम से पहचान है मेरी,
बाॅंधो राखी बनालो मुझे भाई।।
रचनाकार : गणपत लाल उदय
अजमेर ( राजस्थान )