फ़ौरन संभाल लेता है
फ़ौरन संभाल लेता है
वो गुफ़्तगू में मिसालों को डाल लेता है
बिगड़ती बात को फौरन संभाल लेता है
बढ़ेगा कैसे मरासिम का सिलसिला उससे
ज़रा सी बात पे आँखे निकाल लेता है
छुपाना उससे कोई राज़ है बड़ा मुश्किल
वो बातों बातों में दिल भी खंगाल लेता है
कशिश अजीब सी रहती है उसके लहजे में
हरेक शख़्स को अपने में ढाल लेता है
ग़जल कहे या कहानी लिखे या ख़त मुझको
अजब गजब सी वो उनमें मिसाल लेता है
जवाब देना मुसीबत से कम नहीं मुझको
मुझे हराने को टेड़े सवाल लेता है
हिला न पायेगा उसका वजूद ग़म कोई
वो एक ज़ख़्म क्या हर ग़म को पाल लेता है
ग़ज़ल को उसकी सुना तो पता चला साग़र
ज़रा सी चोट का कितना मलाल लेता है
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003