क्या लेना
( Kya Lena )
है रौशनी तो मुझे तीरगी से क्या लेना
चमक यूँ क़ल्ब में है चाँदनी से क्या लेना
हर एक तौर निभाता हूँ दोस्ती सबसे
मुझे जहाँ में कभी दुश्मनी से क्या लेना
बुझा न पाये कभी तिश्नगी मेरे दिल की
तो अब भला मुझे ऐसी नदी से क्या लेना
जो मुश्किलों में मेरे काम ही नहीं आया
सहीह ऐसे मुझे मतलबी से क्या लेना
जो बादशाह बना बैठा है सिहासन पर
भला उसे किसी की मुफ़लिसी से क्या लेना
उतर न पाये कभी पढ़के शायरी दिल में
ऐ “मौज” ऐसी मुझे शायरी से क्या लेना
डी.पी.लहरे”मौज”
कवर्धा छत्तीसगढ़