ग़म की बारिश में मैं भीगता रह गया

ग़म की बारिश में मैं भीगता रह गया | Gam ki Shayari

ग़म की बारिश में मैं भीगता रह गया

( Gam ki baarish mein main bhigta rah gaya )

 

ग़म की बारिश में मैं भीगता रह गया

उसकी यादों में ही डूबता रह गया

 

वो सनम गैरों से आशना हो गये

मै उन्हें ख़ुद से ही रोकता रह गया

 

इश्क़ करके मुझे अब तलक क्या मिला

बस यही बात मै सोचता रह गया

 

बन चुके है सनम आलिमे इश्क़ वो

और में हर्फ़ बस सीखता रह गया

 

उसकी बातें मेरे सामने सब ने की

और मैं सबका मुंह देखता रह गया

 

रोज़ सोचूं के अब छोड़ दूँ मैं तुम्हें

रात दिन मैं यही सोचता रह।गया

 

आप जाओगे अब “शाह फ़ैसल” कहां

कौन सा आपका  रास्ता  रह गया

 

 

?

शायर: शाह फ़ैसल

( सहारनपुर )

 

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