गांव की रौनक पंगत | Gaon ki Ronak Pangat
गांव की रौनक पंगत
( Gaon ki ronak pangat )
गाँव रौशन हैं
ऐसे आयोजनों से!
शहरों ने ली करवट
बने बाबू शहरी बुरबक!
ठगे/लूटे जा रहे शरेआम
मैरैज हाल में केवल तामझाम
बद इंतजाम!
पकड़े प्लेट रहिए खड़े कतार में
रहिए बारी के अपने इंतजार में!
मिल जाए तो भकोसिए खड़े खड़े
कुछ घटे तो फिर लगिए लाइन में…
शरीफ लोगों को, जो मिला उस पर किए संतोष
जल्दबाजी में धोए हाथ और निकल लिए!
बच्चे उनके लौटे घर मनमनोस
होती यहां बरबादी बहुत पकवानों की
ना हो पाती खातिरदारी ढंग से
मेहमानों की!
बावर्ची, होटल वालों की मौज
उनके कार्यकर्ताओं की दिखती
हर जगह फौज!
मेहमान क्या लुत्फ उठाएंगे?
जो ये लोग उठा जाते हैं
दबाते हैं कसकर
और झोले में उठाकर
पार्सल भी करा देते हैं?
रही बात होस्ट की, तो ये
मन मारकर…पैसे चुकाकर
घर चले आते हैं।
लेखक–मो.मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
सलेमपुर, छपरा, बिहार ।