गाथाएँ बलिदानों की | Gathayen Balidano ki
गाथाएँ बलिदानों की
( Gathayen balidano ki )
सुनो सुनाऊँ एक कहानी,
मतवाले दीवानों की।
प्रबल प्रेरणा स्त्रोत अनूठी,
गाथाएँ बलिदानों की।…
मंगल बिस्मिल भगत सिंह का,
आजादी ही नारा था।
नाना शेखर खुदीराम को,
देश प्राण से प्यारा था।।
हँसकर फाँसी चढ़े भगत जब,
वो अनमोल जवानी थी।
अंग्रेजों के अतिचारों की,
रोकी सब मनमानी थी।।
बिरसा मुंडा की यह धरती,
बनी शौर्य प्रतिमानों की।
लक्ष्मीबाई वीर मराठा,
कभी न झुकने वाली थी।
बोस तिलक, गाँधी पटेल ने
खाई शपथ निराली थी।।
थे अंग्रेज लुटेरे सारे ,
उनको धूल चटानी थी।
अंग्रेजों को याद दिला दी,
ऊधम सिंह ने नानी थी।
अलख जगाई आजादी की,
कही कथा अभियानों की।।
वीर शिवा जी के हम वंशज ,
जग के बने उजाले हैं।
राम – कृष्ण की इस धरती पर,
जन्मे लाल निराले हैं।।
आजादी की कीमत जानो,
ऐसे वीर जवानों से।
लहराया ध्वज तीन रंग का
उनके ही अतिमानों से।।
पूजन करती है माता भी ,
देखो उन संतानों की।
सिंहनाद कर वीर सुतों ने,
माँ की बेड़ी तोड़ी थी।
बलिदानी माँ बहनों ने भी,
धार समय की मोड़ी थी।।
राणा की अद्भुत ताकत तो,
मुगलों ने भी जानी थी।
आजादी पाई थी माँ ने,
ओढ़ी चूनर धानी थी।।
कंचन मिट्टी माथ लगा लो,
कर्मवीर बलवानों की।
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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