छूकर मेरे मन को | Geet chukar mere man ko
छूकर मेरे मन को
( Chukar mere man ko )
छूकर मेरे मन को हलचल मचा दी रे।
आया सुहाना मंजर प्रीत जगा दी रे।
भावों का भंवर उमड़ा गीत तेरे प्यार के।
मीठे मीठे शब्द सुरीले प्रेम के इजहार के।
खुशियों के खजाने खुले दिल के बजे तार।
संगीत साज सजे बजी वीणा की झंकार।
सुहाने हसीं लम्हों ने बगिया महका दी रे।
छूकर मेरे मन को हलचल मचा दी रे।
खिल उठा मन का कोना महक गई वादियां।
शहनाई बज गूंज उठी भावन लगे शादियां।
सजने लगे सुर मिलकर गीतों के तरानों में।
मुस्कानों के मोती झरते प्रीत भरे गानों में।
मनमंदिर की घंटियों ने तान सुना दी रे।
छूकर मेरे मन को हलचल मचा दी रे।
सपने सुरीले सारे चमक भाग्य सितारों की।
उर आंगन गूंज उठी मधुरता मीठे धारों की।
मन मयूरा झूमके नाचे मस्ती का आलम छाया रे।
झरनों का कल-कल बहता मन का मीत आया रे।
दिल की उमंगों ने प्रेम लगन लगा दी रे।
छूकर मेरे मन को हलचल मचा दी रे।
दो प्रेम दीवाने धरा पर प्रीत भरी बात करें।
सुहानी सी शाम होती दिलों में जज्बात भरे।
मौसम सुहाना आया घिर काली घटा छाई रे।
रिमझिम बदरिया बरसे उर उमंग जगाई रे।
मनभावन चाहतों ने अगन जगा दी रे।
छूकर मेरे दिल को हलचल मचा दी रे।
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )