देख लिया | Geet Dekh Liya
देख लिया
( Dekh Liya )
अन्तस लहरों में ज्वार उमड़ता देख लिया।
उनकी आँखों में प्यार छलकता देख लिया ।।
कैसी सुगंध यह फैल रही उर-उपवन में।
जब खिला सरोवर में कोई जलजात नहीं।
किसने इस मन को बाँध लिया सम्मोहन में।
साँसें महकीं या प्राण जले कुछ ज्ञात नहीं ।
अब डोल रहा है किसी मधुप सा मन मेरा।
पंछी पिंजरे में क्षणिक तड़पता देख लिया।
उनकी आँखों में——
अब साँझ-सवेरे यह जीवन गतिविधियां हैं।
मन भटक रहा है इधर उधर वैरागी सा ।।
यह पवन लिये उड़ता है किस कलि का पराग ।
उर-पुष्पों का मकरंद हुआ अनुरागी सा ।।
उनके पैरों की आहट है या भ्रम मेरा।
मन -कानों से हर स्वर का रिश्ता देख लिया ।।
अंतस लहरों में——
मन-वीणा के यह तार स्वयं ही बोल उठे।
मन के भीतर रसराग अँकुरित होता है ।।
वह अनायास साग़र आ आकर चुपके से।
अंतसतल में मादक मुक्ताफल बोता है ।।
कर दिया मुग्ध उसने सारा नंदन कानन ।
मन-वसुधा पर आकाश उतरता देख लिया ।।
कवि व शायर: विनय साग़र जायसवाल बरेली
846, शाहबाद, गोंदनी चौक
बरेली 243003
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