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ले हाथों में इकतारा

( Le hathon mein iktara )

 

गली-गली घुमा करता ले हाथों में इकतारा।
सात सुरों के तार जोड़ संगीत सुनाता प्यारा।
शब्द शब्द मोती से झरते बहती जब रसधारा
महफिल में भी तन्हा रहता मनमौजी बंजारा।
ले हाथों में इकतारा

 

प्रेम गीत के मधुर तराने ले अनुबंधों की माला।
बंध बंध सुघड़ सलोने जब गाता वो मतवाला।
मोहक हो महफिल सुनती सुनता जन मन सारा।
झड़ी बरसती अनुरागों की जब गाता वो बंजारा।
ले हाथों में इकतारा

 

भाव सिंधु उमड़ा आता मोती बरसे नेह धारा।
शब्द सुरीले मीठे-मीठे सुन समां झूमता सारा।
महफिल में तन्हा लगता कंठो का मधुर सितारा।
सारी दुनिया घूम के गाता वो झूम-झूम बंजारा।
ले हाथों में इकतारा

 

वीणा के बजे तार सारे दिलों को दस्तक दे जाते।
तान छेड़ता जब गीतों की साथ-साथ सारे गाते।
महक उठती महफिल सारी भावन सा सुर प्यारा।
महफिल में भी तन्हा लगता निखरा चांद हमारा।
ले हाथों में इकतारा

 

मधुर स्वर लहरियां गूंजे शब्द सुधारस धारा।
गीतों की लड़ियों से झरता प्रेम तराना प्यारा।
हर्ष खुशी आनंद बरसता मन मयूरा झूमें सारा।
थिरक उठते साज सारे जब गाता वो बंजारा।
ले हाथों में इकतारा

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कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन

नवलगढ़ जिला झुंझुनू

( राजस्थान )

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