Geet Ped Raha na Rahe Parinde

पेड़ रहा न रहे परिंदे | Geet Ped Raha na Rahe Parinde

पेड़ रहा न रहे परिंदे

( Ped Raha na Rahe Parinde )

 

हमें बस दाल रोटी भर जैसे दे दे रब
और इससे ज्यादा तुमसे मांगे हैं कब।

थके मेरे इन हाथो में वो जोड़ नहीं है
जूते सी कर जीते थे वो मोड़ नहीं है
रही नहीं स्थिति पहले जैसी है अब।

कहते थे उनसे, झोंपड़ी तो मत हटाओ
परिंदे टिकते हैं ये पेड़ भी मत कटाओ
पेड़ रहा न रहे परिंदे मिट गए हैं ये सब।

क्या नहीं बिका, चिंता हमारी किसे है
पीड़ा की कहानी जीवन के मेरे हिस्से हैं
हमें बस दाल – रोटी भर जैसे दे दे रब।

Vidyashankar vidyarthi

विद्या शंकर विद्यार्थी
रामगढ़, झारखण्ड

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