चरण स्पर्श क्यों
( Charan Sparsh )
एक हि अग्निपिंड से है बना ब्रम्हांड
होता रहता इनमे अखंड नाद
रहती इक दूजे मे ऊर्जा सदा प्रवाहित
करती आदान प्रदान निज गुणों के साथ
होता कण कण प्रभावित इक दूजे से
होकर देह से विसर्जित हो जाती वसुधा मे
सिर शिखा से हो पद तल से जाती जमी
संग व्यक्ती के गुणों से युक्त बढ़ती जाती
इसी से बना नियम श्रेष्ठ के चरण स्पर्श का
गुरु, पितु मातु , संत सम पूज्य जन का
श्रेष्ठ संग ऊर्जा का प्रवेश हो लघु के भीतर
हों सफल, ले आशीर्वाद, प्रगति हो निरंतर
अलौकिक शक्तियों का संचार रहता सदा
संपूर्ण ब्रम्हांड कि गतिशीलता जुड़ती सदा
इसी के लाभार्थ चरण स्पर्श की प्रथा चली
आधुनिकता मे अविश्वास की कुरीति है पली
समझना होगा संस्कृति को अपने हित में
रीति, रिवाज, प्रथा, मान्यता रहे लोकहित मे
चिंतन, मनन, कुछ भी नही व्यर्थ चलन में
स्विकारिये सहर्ष, चाहते यदि उत्कर्ष जीवन में
( मुंबई )