पुस्तकों की पीर | Geet pustakon ke peer
पुस्तकों की पीर
( Pustakon ke peer )
कंप्यूटर क्या कहर ढा रहा मोबाइल मुस्काता है।
अलमारी में पड़ी किताबों को बहुत धमकाता है।
इतने सारे चैनल हुये पाठक सारे दर्शक हो गए।
टीवी परोसता सीरियल पुस्तक प्रेमी कहीं खो गए।
कलमकार लाइव चले ऑनलाइन हुआ चलन है।
पुस्तकों का दम घुट रहा किताबे हो रही दफन है।
यह कैसा आया चलन है -2
साहित्य साइटों संग फेसबुक पेजो पे चल आया।
साहित्य सुधा काव्यधारा सुरताल सुधारस लाया।
गीत गजल छंद मुक्तक चौपाई सोरठा रच दो।
कवि हृदय के भाव लिखो जो मन की पीर हो।
मंचों पर कविता गूंजे रचनाकार अब सारे मगन है।
पुस्तकों से दूरी महापाप किताबे हो रही दफन है।
यह कैसा आया चलन है-2
पुस्तक प्रेमी सारे आओ नया माहौल बनाओ।
रामायण महाभारत लाओ गीता ज्ञान सुनाओ।
वेद उपनिषद ग्रंथ सारे दिव्य ज्ञान ज्योत हमारे।
जिनसे बहती ज्ञान की धारा बदले जीवन हमारा।
शब्द शब्द गंगाजल सा पावन कर दे तन मन है।
पोथियां चिंता में डूबी किताबे हो रही दफन है।
यह कैसा आया चलन है-2
अलमारी से उन्हें निकालो पढ़ो देश के नौनिहालों।
भाग्य के तारे चमकाओ ज्ञान सिंधु गोते लगाओ।
बदल जाए तकदीर तुम्हारी भाग्य के खुलते द्वार।
सफलता स्वर्ण शिखर का मिले प्यारा सा उपहार।
घट ज्ञान ज्योत जला अंधकार का होता दमन है।
कबाड़ में जा रही पुस्तके किताबे हो रही दफन है।
यह कैसा आया चलन है-2
कवि : रमाकांत सोनी सुदर्शन
नवलगढ़ जिला झुंझुनू
( राजस्थान )