गीता ज्ञान | Geeta Gyan
गीता ज्ञान
( Geeta Gyan )
जब से गीता ज्ञान मिला
मुझे भागवत में भगवान मिला,
कण कण में जब नारायण तो फिर
कण-कण से मुझे ज्ञान मिला!
नहीं सर्वज्ञ अंतर्यामी में ,
ना ही में कुछ जानता हूं
मेरे अंदर भी तू है बसा हुआ !
मैं तुझको पहचानता हूं।।
देख धनुर्धर अर्जुन को जब
पार्थ कहकर तूने पुकारा था
हर व्यथा दूर की उसकी तुमने ,
वह उत्तम सखा तुम्हारा था ।
आज मैं भी शरण हूं गिरधर तेरे
बैर ,भाव ,न किसी से द्वेष मुझे
कर्म करूं कर्म पथ पर चलूं सदा
तुझे समर्पित करता हूं ये मन अपना
बस छोटा सा एक काम करूं
विश्व कल्याण हेतु ही मैं गीता का
करूं अनुसरण और ध्यान धरूं।
आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका)
ग्वालियर – मध्य प्रदेश
dubeyashi467@gmail.com