आदमी

Ghazal | आदमी

आदमी

( Aadmi )

 

हर  तरफ मजबूरियों में, रो  रहा है  आदमी।

आंसुओं से जख़्मे दिल को,धो रहा है आदमी।

 

कौन किसके दर्द की,आवाज को सुनता यहॉं,

डालकर  कानों  में  रूई,  सो  रहा है आदमी।

 

दौरे तूफॉं में चैन से,जीना कोई मुमकिन नहीं,

भार  अपनी  ज़िंदगी  का, ढो रहा है आदमी।

 

रास्ते  के  पत्थरों  सा, खा  रहा  है  ठोकरें,

दिन-ब-दिन पहचान अपनी,खो रहा है आदमी।

 

भर  रहा  है जेब  अपनी,बेचकर शर्मो हया,

इंसानियत से दूर भी अब,हो रहा है आदमी।

 

✍️

कवि बिनोद बेगाना

जमशेदपुर, झारखंड

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