चल रहीं थीं वहां आतिशबजियाँ | Ghazal aatishbajiyan
चल रहीं थीं वहां आतिशबजियाँ
( Chal rahi thi wahan aatishbajiyan )
चल रहीं थीं वहाँ आतिश बाजियाँ,
लोग सब समझे सवेरा हो गया
घर से निकले तो हुये हैरान जब,
सिर्फ कुछ पल में अन्धेरा हो गया !!
गली, कूचे, गाँव, कस्बे और शहर,
पूछते थे आँखों आँखों में सवाल
जिसके आने का हुआथा शोर कल,
वो उजाला फिर कहाँ पे खो गया !!
जो भी बोला वो कहाया दीवाना,
जोभी समझा वोकोई कमअक्ल था
देखते भी चुप रहा बोला नहीं,
शख्स वो ही सिर्फ दानां हो गया !!
कैसे कोई खिलाफत करता भला,
कैसे कोई आता और ललकारता
किसकेदिलमेंअबवो जज्बाथाजिसे,
वक्त की बारिश का पानी धो गया !!
सुलगने , जलने की आवाजें लिये,
झोपड़ों से मकानों से उठ रहा
था घना काला धुआँ उस तरफ भी,
जिस तरफ था वक्त सूरज बो गया !!
आदमी औरत अमीरों गरीबों ,
सभी के चेहरे खड़े थे बदहवास
जानते थे वजह पर खामोश थे,
फिर उसी शै का था फेरा हो गया !!
हैं कहाँ उस सच की अब परछाइयाँ,
हर तरफ बिखरी हैं गहरी खाइयाँ
बीच में कुछ सीधे औ’ ऊँचे पहाड़,
वहाँ कब किसका बसेरा हो गया !!
आज के हिन्दोस्ता पे गजल मैं,
चाहता तो नहीं था ऐसी लिखूॅं
पर मेरे एहसास में जो कुछ था कल,
लग रहा है वो कहीं पर खो गया !!
होंठ सूखे , आँखें गीली , टूटे दिल,
देखते कम जर्फ बादल जो घिरे
रौशनी से दमकते “आकाश” के,
मुल्क में कितना अन्धेरा हो गया !!
कवि : मनोहर चौबे “आकाश”
19 / A पावन भूमि ,
शक्ति नगर , जबलपुर .
482 001
( मध्य प्रदेश )