ऐ मुहब्बत | Ghazal Aye Muhabbat
ऐ मुहब्बत
( Aye Muhabbat )
ऐ मुहब्बत ! तिरा जवाब नहीं ,
तुमने किसको किया खराब नहीं !
हिज़्र, ऑंसू, फ़रेब, मक़्क़ारी,
तुझमें शामिल है क्या अज़ाब नहीं !
तेरे कूंचे में ऐ मुहब्बत सुन,
खार ही खार हैं गुलाब नहीं ।
एक धोखा है तेरी रानाई,
अस्ल में तुझमें आबो ताब नहीं ।
दूर से ही हसीन लगती हो,
पर हक़ीक़त की माहताब नहीं ।
सुन ऐ साक़ी तुम्हारे साग़र में,
ज़हर ही ज़हर है, शराब नहीं ।
तुमने ढाये हैं वो सितम अनहद,
जिसकी हद है नहीं, हिसाब नहीं ।
अजय जायसवाल ‘अनहद’
श्री हनुमत इंटर कॉलेज धम्मौर
सुलतानपुर उत्तर प्रदेश
*हिज़्र-बिछुड़न
*अज़ाब-यातना
*आबो ताब-चमक
*खार-कांटे
*रानाई-रौशनी
*माहताब-चंद्रमा
*साग़र-प्याला