Ghazal | दिल नहीं माना कभी कोई ग़ुलामी
दिल नहीं माना कभी कोई ग़ुलामी
( Dil Nahi Mana Kabhi Koi Gulami )
दिल नहीं माना कभी कोई ग़ुलामी।
देनी आती ही नहीं हमको सलामी।।
सीधे-सादे हम तो है उस रब के बंदे।
राह सीधी जो चले सन्मार्ग-गामी।।
गलतियों से क्यूं डरे हम इस जहां में।
कौन जिसमें है नहीं कोई भी ख़ामी।।
इस कदर बर्बाद होकर रह गया दिल।
आई थी जैसे कोई इसमें सुनामी।।
शायरी का शौक रखते है जहां में।
हम नहीं शायर कोई ग़ालिब से नामी।।
कवि व शायर: मुनीश कुमार “कुमार”
(M A. M.Phil. B.Ed.)
हिंदी लेक्चरर ,
GSS School ढाठरथ
जींद (हरियाणा)
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