पूर्ण बेटी से वो हसरत हो गई
पूर्ण बेटी से वो हसरत हो गई
ज़र जमीं की जब वसीयत हो गई ।
टेढ़ी उन बेटो की नीयत हो गई ।।
ठीक वालिद की तबीयत हो गई ।
जान को उनकी मुसीबत हो गई ।।
जिस तरह औलाद खिदमत कर रही ।
हर किसी को देख हैरत हो गई ।।
चाहते तो एक बेटा हम भी पर ।
पूर्ण बेटी से वो हसरत हो गई ।।
जिस तरह बेचैन हूँ उनके लिए ।
लग रहा मुझको मुहब्बत हो गई ।।
मैं रहा बेताब जिस औलाद को ।
क्या कहूँ वो ही मशक्कत हो गई ।।
प्यार की मैं क्या सुनाऊँ दास्ताँ ।
नाम से उसके ही दहशत हो गई ।।
झूठ सच का ये हुआ है फैसला ।
दुश्मनों के घर अदालत हो गई ।।
कल तलक बेटी प्रखर के घर में थी ।
अब पराई यार दौलत हो गई ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
( बाराबंकी )