बेहिस सफर

( Behis safar ) 

 

सफर में बीच ही कहीं ठहर के देखे चलो
खुद के करीब कितने कहीं रुक के देखे चलो

अदब के साये में कटी है जिन्दगी उनकी
बदी के साये में हम भी खिलखिलायें चलो

जो दिखे थे अपने वो अजनबी हैं सभी
वो जो दम भरते हैं उन्हें आजमायें चलो

बंद कमरों में चमक साथ देती हैं सदा
चंद चरागो को हवा में भी जलाऐं चलो

वो जिनके चेहरे थे खिले मुस्कुराये सदा
गमगीन उदासियों में भी गुनगुनाएं चलो

उन्हें ही सोचा उन्हें याद किया हर लम्हा
जरा सा धड़के हम भी जरा याद आऐं चलो

बडा बेहिस सा सफर था मुड कर देखा सबने
कभी मिला के नजर कभी नजरे बचाऐ चलो

 

लेखिका : डॉ अलका अरोडा

प्रोफेसर – देहरादून

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