फूलों की मगर वो ही बौछार नहीं करता
( Phoolon ki magar wo hi bauchhar nahi karta )
फूलों की मगर वो ही बौछार नहीं करता
इक़रार मुहब्बत वो ही यार नहीं करता
वो तल्ख़ करे है बातें ख़ूब मगर मुझसे
वो यार ज़रा भी मुझसे प्यार नहीं करता
पर भेज लिए है उसको फूल बहुत मैंनें
वो प्यार सनम मेरा इक़रार नहीं करता
ख़त भेज लिए है लिखकर ख़ूब उसे मैंनें
दिल यार मगर अपना दिलदार नहीं करता
रूठा है न जाने वो क्यों आजकल मुझसे
वो बात मगर अब मुझसे यार नहीं करता
वो दोस्त दिखाता है यूं रोज़ ख़फ़ा सा दिल
वो जीस्त मुहब्बत से गुलज़ार नहीं करता
वो रोज़ निगाहें भर के देखता है आज़म
वो प्यार मगर मुझसे इज़हार नहीं करता
पटल पर सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार स्वीकारें । आशा है मेरी रचना के भाव और अर्थ समझने असुविधा नहीं हुई होगी। प्रतिसाद के लिए सुधिजनों को बहुत बहुत धन्यवाद।