ख़ुदा और मुहब्बत | Ghazal khuda aur muhabbat
ख़ुदा और मुहब्बत
( Khuda aur muhabbat )
आ ज़रा मिलनें मुझे बस एक लम्हे के लिए!
आ निभाने आज तू अब हर उस वादे के लिए
हां करेगा वो मुराद पूरी दिल की अल्लाह सब
तू बना दे रोठी उस दरवेश भूखे के लिए
बात हो उससे मुहब्बत की सकूं आये दिल को
मैं कई दिन से बैठा हूँ एक मौक़े के लिए
दिल के ही समझे नहीं जज्बात उसनें है मेरे
साथ मेरा छोड़ा है उसनें ही पैसे के लिए
मैं पढ़ूं कलमा कर दे ऐ रब दुआ दिल की क़बूल
भेज दे रब अब उसे इस बेसहारे के लिए
नफ़रतों से ही भरे देखो अंधेरे ख़ूब है
प्यार के ही मैं तड़फता हूँ उजाले के लिए
के तरस आज़म रहा दरगाह पर ही बैठकर
आज उसकी ही झलक एक देखें के लिए