सादगी | Ghazal Saadgi
सादगी
( Saadgi )
अब नुमाइश की हुकूमत और हारी सादगी
हम को तो हर तौर ले डूबी हमारी सादगी।
रंग से खुशबू धनक से फूल जुगनू चांद से
दो जहां से ख़ूबसूरत है तुम्हारी सादगी।
शख़्स था सादा बहुत वो क्या मगर उसको हुआ
जाने उसने छोड़ दी क्यों अपनी सारी सादगी।
बज़्म में आये सभी बन ठन के सर से पा तलक
पड़ गई आराइशों पे सबके भारी सादगी।
अब नहीं जंचता कोई मंज़र कोई जलवा नहीं
बस हवासों पे रहे हर वक्त तारी सादगी।
दिल बहुत उकता गया रंगीनियों से लुत्फ़ से
छोड़ कर मेला मैं मांगू अबकी बारी सादगी
वो भी मद्दा हैं उसी शम्मे फ़रोजाॅं के नयन
वो जो बनते पारसा कहते हैं प्यारी सादगी।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )