तितली लगती है | Ghazal Titli Lagti Hai
तितली लगती है
( Titli Lagti Hai )
माह धनक खुशरंग फ़जा तितली लगती है
पाक़ीज़ा फूलों सी वो लड़की लगती है।
सौदा बेच रही है वो ढॅंक कर पेशानी
बातों से ढब से सुलझी सच्ची लगती है।
देख के उसको दिल की धड़कन बढ़ जाती है
ना देखूं तो सांस मेरी रुकती लगती है।
जुल्फों के पेच-ओ-ख़म में उलझे तब जाना
उलझन भी कोई कोई अच्छी लगती है।
कैद मुहब्बत की तो मांगे कौन रिहाई
किस पागल को जन्नत यार बुरी लगती है।
नाइंसाफी पर दम साधे बैठे हैं सब
गूंगे बहरों की ये इक बस्ती लगती है।
रंजिश और हसद से मत माहौल बिगाड़ो
मुल्क बनाने में ताकत सबकी लगती है।
लोग ख़फ़ा मेरे कुछ कहने पर हो जाते
बात यही की बात सही कड़वी लगती है।
मुस्काती रहती हरदम गीली आंखों से
लेकिन वह मुस्कान नयन नकली लगती है।
सीमा पाण्डेय ‘नयन’
देवरिया ( उत्तर प्रदेश )