ज़रूरत है | Ghazal Zaroorat Hai
ज़रूरत है
( Zaroorat Hai )
जो रूठे हैं फ़क़त उनको मनाने की ज़रूरत है
मिटाकर दूरियों को पास जाने की ज़रूरत है
उदासी ही उदासी है हमारे दिल की बस्ती में
कोई धुन प्यार की छेड़ो तराने की ज़रूरत है
गुज़ारी ज़िंदगी तन्हा किसी की याद में हम ने
मगर इस दौर में हमको ठिकाने की ज़रूरत है
बने मजनू न यूँ घूमो पुलिस की है बहुत सख़्ती
क़फ़स में डालने को बस बहाने की ज़रूरत है
ख़ुदा ने ज़िंदगी बख़्शी सँभालो अब इसे यारो
बिछी लाशें नगर में क्या जताने की ज़रूरत है
सताइश मत करो मेरे हुनर की है अता उसकी
यही अब दूसरों को भी सिखाने की ज़रूरत है
बुलाती मौत है बाहर ख़ुदारा घर से मत निकालो
भला क्या बात ये अब भी बताने की ज़रूरत है
सभी अशआ़र उम्दा हैं ग़ज़ल के आज मीना की
तरन्नुम से फ़क़त इसको सुनाने की ज़रूरत है
कवियत्री: मीना भट्ट सिद्धार्थ
( जबलपुर )
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