महेन्द्र सिंह प्रखर की ग़ज़लें

महेन्द्र सिंह प्रखर की ग़ज़लें | Ghazals of Mahendra Singh Prakhar

इस बार होली में

निभायेंगे सभी रस्में सुनों इस बार होली में
उड़ा कर प्रीत का हम रँग मलेंगे यार होली में

खफ़ा जो है मना लेंगे उन्हें हम यार होली में
मज़ा तो यार ही तब है मिलें जन चार होली में

लगायेंगे गले सबको भुलाकर हम गिले शिकवे
मिटा कर दूरियाँ दिल की करेंगे प्यार होली में

खबर तो है मुझे लेकिन यकीं दिल को नही होता
न आयेगा कभी मिलने मेरा दिलदार होली में

भुला दूँ मैं जहाँ सारा मगर इक याद वो रहता
उसी के वास्ते छलका हृदय से प्यार होली में

कभी तुमने लगाया था मुझे भी रंग हाथों से
तभी से यार मैं अक्सर हुआ बीमार होली में

करे ऐसा प्रखर अब क्या कि तू इस बार आ जाये
सकूँ की नींद मिल जाये जो हो दीदार होली में

हर बार होली में

किया जख़्मी उसी ने है मुझे हर बार होली में
गुलो के रंग से मुझपर किया जो वार होली में

नही रूठों कभी हमसे भुला भी दो गिले सारे
तुम्हारे ही लिए लाएँ हैं हम यह हार होली में

रही अब आरजू इतनी कि तुमसे ही गले लगकर
बयां मैं दर्द सब कर दूँ सुनों इस बार होली में

वही वादा तुम्हारा अब दिलाते याद हम तुमको
कभी तुमने कहा था हम मिलेंगे यार होली में

ख़िज़ां की बात मत करना ये फ़ागुन का महीना है
गले लगकर दिखाए जो वही तो यार होली में

खुशामद कर रहा झूठा यकीं करना नही लोगो
चुभाकर पीठ में खंजर जताए प्यार होली में

दिला देगा यकीं तुमको अदा से आज वह अपनी
छुपाए घूमता जो है यहाँ हथियार होली में

भुला दी दुश्मनीं कहता जहाँ से आज वो खुलकर
रफ़ीकों ने उसे देखा लिए तलवार होली में

सुना था मैं यही अक्सर नही कोई सफ़र में है
खुशी इस बात की अब संग है हकदार होली में

कभी माँगें खुदा से आदमी तो बस यही माँगे
नहीं जो गैर से मिलता मिले अधिकार होली में

करेंगे आज सब मिलकर दुआएं उस खुदा से हम
मिलें अब प्यार से सब ही न हो तकरार होली में

गिला कितना करोगे तुम हमारी इन ज़फ़ाओ का
दिखा देंगे तुम्हें भी कर के हम दीदार होली में

चलो अच्छा हुआ ये भी प्रखर को मिल गई छुट्टी
यही तो चाहता है उसका भी परिवार होली में

बढ़ गईं हैं आजकल मजबूरियाँ

बढ़ गईं हैं आजकल मजबूरियाँ
रेत में भी तैरती है मछलियाँ

सब मनातें आज हैं नारी दिवस
पर सुरक्षित हैं कहाँ ये नारियाँ

दूर रहकर भी नहीं हम रह सके
इस तरह दिल में बढ़ी बेताबियाँ

है नहीं चाहत किसी को काम की
सब दिखाते हैं फ़क़त सरगर्मियाँ

दाग सूरत पे नहीं मेरे लगे
हर तरफ़ अब हो रही तैयारियाँ

दौड़ आयेंगे हमारे पास सब
मीठी जब तक है जुबाँ की बोलियाँ

पंक्षियों की याद में हर वृक्ष की
सूखती सब जा रही हैं डालियाँ

माँ पिता की आजकल औलाद भी
काम की लेती न जिम्मेदारियाँ

क्या करें उम्मीद वो माता पिता
है अगर औलाद में मक्कारियाँ

सुन रहा है इस नगर में अब प्रखर
उड रही आकाश में अब मछलियाँ

कोई नहीं

हैं वहीं मुजरिम सजा कोई नहीं
बख़्श दें कहकर खता कोई नहीं

अब ख़ुदा ही यह करेगा फ़ैसला
दुनिया में उस से जुदा कोई नहीं

चाहते थे जिस तरह सबको यहाँ
उस तरह हमको मिला कोई नहीं

जो हमारी ज़िन्दगी में थे अहम
अब उन्हीं का मैं रहा कोई नहीं

मैं कभी इतिहास तो पढ़ता नही
पर सुना इंसान का कोई नहीं

खुश रहे वो आज इतनी है दुआ
मिल न पाए हम तो क्या कोई नहीं

क्या बतायें आजकल वह है कहाँ
जानता उसका पता कोई नहीं

आज रिश्तें हैं यहाँ व्यापार है
इसलिए करता दुआ कोई नहीं

कह रहा हूँ मैं प्रखर सुन लो सभी
मैं बुरा हूँ तो भला कोई नहीं

दिखाओ वह घटा काली कहाँ है

दिखाओ वह घटा काली कहाँ है
यहाँ चंचल नयन वाली कहाँ है

जुबाँ उसकी सुनों काली कहाँ है
दरख्तों की झुकी डाली कहाँ है

गुजारा किस तरह हो आदमी का
जमीं पर अब जगह खाली कहाँ है

जिसे हम चाहते दिल जान से अब
हमारी वो हँसी साली कहाँ है

मिलन अब हो गया शायद सजन से
बची अब होठ पर लाली कहाँ है

वफ़ा पर कल तुम्हारी जो फ़ना थी
बताओ आज घरवाली कहाँ है

निभाने यार से वादा गई थी
गिराई कान की बाली कहाँ है

मसल कर फेक देते सब सुमन को
खबर आती बता माली कहाँ है

बहन ही मानकर उसको शरण दी
नज़र उसपे बुरी डाली कहाँ है

जुबा मेरी न खुलवाओ यहाँ पर ।
खबर सबको कि हरियाली कहाँ है

प्रखर ने तो फ़कत की बात हँसकर
बता इसमें कोई गाली कहाँ है

ख्वाब आँखों में क्या पला था तब

ख्वाब आँखों में क्या पला था तब
छोड़कर जब सनम गया था तब

खत वहीं पे जला दिया था तब
बेवफ़ा जब सनम हुआ था तब

वक्त पे मैं पहुँच नहीं पाया
प्यार नीलाम हो चुका था तब

फासला चाह के किया उसने
प्यार का सिलसिला रुका था तब

कैसे कर ले यकीं सितमगर पे
उसकी हर बात में दगा था तब

राह कोई नजर न थी आती
पास कुछ भी न तो बचा था तब

खेल हम जाते जान की बाजी
साथ कोई नही खड़ा था तब

अब तो आँखों से बस बहे पानी
जख्म़ ऐसा हमें मिला था तब

दिल का सौदा करे प्रखर कैसे
प्यार में ही ठगा गया था तब

हमसे शिक़ायत कैसी

जुर्म की जब हो हुकूमत तो वकालत कैसी
पूछते लोग हैं फिर हमसे शिक़ायत कैसी

दुनिया वाले जो करें प्रेम तो अच्छा लेकिन
जब करें हम तो कहे लोग मुहब्बत कैसी

दिल बदलते हैं यहां लोग लिबासों की तरह
हमने बदला है अगर दिल तो क़यामत कैसी

लोग यूं ही तो नहीं मरते हैं हम पर यारों
ये ख़बर सारे ज़माने को है उल्फ़त कैसी

झूठ से बच तो नहीं सकता कभी तू भी प्रखर
बोलता सच हैं अगर तू तो सियासत कैसी

मीत मन का मिला ज़िन्दगी में

मीत मन का मिला ज़िन्दगी में ।
आ रहा है मज़ा आशिक़ी में ।।

यार ऐसा मिले हर किसी को ।
कर रहा हूँ दुआ बन्दगी में ।।

है नशा अब सुहाने सफ़र का ।
क्या करूँ मैं बता मयकशी में ।।

चाँद भी देखता है गगन से ।
कौन बैठा वहाँ चाँदनी में ।।

करता इज़्ज़त हूंँ मैं हर किसी की
है खुदा यार जो आदमी में ।।

इस कदर चाहतों का असर है ।
खो न दूँ मैं उसे बेखुदी में ।।

यार जो था यहाँ बेवफ़ा था ।
प्यार मिलता नहीं हर किसी में ।।

भूल जाऊँ किया था ये वादा ।
याद फिर आ रहा बेबसी में ।।

प्यास इतनी बढ़ी है प्रखर की
लुत्फ़ आता नहीं मयकशी में ।।

आज होते खफ़ा उसे देखा

आज कितने गुलाब डाली में ,
देख किन पे शबाब आली में ।।

आज होते खफ़ा उसे देखा ।
जब न पायी शराब प्याली में ।।

पूछते अब नही दौलत वाले ।
खाना कितना खराब थाली में ।।

बैठकर अब लगा रहे कीमत
बह गई जो शराब नाली में ।।

ले गई आज वह रक़म ज्यादा ।
पड गये हम हिजाब वाली में ।।

जख़्म सब भर गये गुलाबो के ।
आया जबसे शबाब डाली में ।।

अब नही पूछना प्रखर से तुम ।
किस लिए है गुलाब थाली में ।।

ज्ञान का दीपक जलाया देर तक

ज्ञान का दीपक जलाया देर तक
पाठ गीता का पढ़ाया देर तक

कुछ समझ आया न उनको क्या करूँ
बस यूँ ही मैं बड़बड़ाया देर तक

बात मेरी मान तो लेता है वह
मन ही मन पर बुदबुदाया देर तक

हँस पड़ा हूँ आज सुनकर बात जो
ऐसी बातों ने रुलाया देर तक

याद में जिसके गुजारे रात दिन
आज मुझको वो सताया देर तक

जिसके आने से मची थी खलबली
वो गले लगकर रुलाया देर तक

जख़्म जो उनसे मिलें थे प्यार में
मैं रफ़ू उनको कराया देर तक

कह रहा था बात दिल की आज वह
कान में जो फुसफुसाया देर तक

अब प्रखर करता गिला क्या आपसे
जब मिलें तो गुदगुदाया देर तक

दर्द दिल में उठा नहीं करते

दर्द दिल में उठा नहीं करते
लोग जब तक दगा नहीं करते

जख़्म क्यों अब मिला नहीं करते
आप शायद दुआ नहीं करते

किस यकी से कहें तुम्हें दुश्मन
दुश्मनी तुम अदा नहीं करते

इश्क़ तो लोग सब करे लेकिन
आजकल बस वफ़ा नहीं करते

प्यार में जान जो भी वारे है
जख़्म उन के भरा नहीं करते

क्यों न बोले कि प्यार कम हो गया
आप हमसे लड़ा नहीं करते

हाले-दिल सब प्रखर समझता है
आजकल क्यों मिला नहीं करते

कोई समझा न मेरी मजबूरी

बस लगा दी हैं तोहमतें झूठी
कोई समझा न मेरी मजबूरी

बात उस राहबर की करते हो
जिसने दुनिया ही लूट ली मेरी

अपना कहकर गले लगा लोगे
बस यही सोचकर थी मैं दौड़ी

कुछ पलों की मुझे खुशी दे दो
रात ये आख़िरी बची मेरी

करती इज़हार तो नहीं दिल का
पर मेरी राह को तका करती

बात कोई बड़ी न की उसने
सुर्ख क्यों आँख फिर रही मेरी

वो नहीं लौटकर प्रखर आया
जीस्त जिसके लिए सदा रोई

मिला क्या जहाँ से बता आदमी को

मिला क्या जहाँ से बता आदमी को
कि लूटा सभी ने सुना आदमी को

न आई कभी फिर सहर वो सुहानी
नहीं आदमी फिर मिला आदमी को

सफर तो सभी कर रहे जिंंदगी का
मगर खा रही है दवा आदमी को

गिला हर किसी को रहा है खुदा से
बनाया क्यों तूने बता आदमी को

दया धर्म का पाठ करतें सभी हैं
मगर क्या भला भी हुआ आदमी को

चला धर्म के मार्ग जो भी तुम्हारे
मिलें खार क्यों फिर बता आदमी को

बनाएँ यहाँ क्यों भला वो हुनर तू
लगाए गले तो चुभे आदमी को

नज़र तो उठाकर प्रखर यार देखो
मिला कब सकूँ है यहाँ आदमी को

खुद को तुमसे जुदा नहीं करते

खुद को तुमसे जुदा नहीं करते
मत कहो अब वफ़ा नहीं करते

मान लो बात आज तो मेरी
यार अब हम खता नहीं करते

भूल जाओ पुरानी बातों को
पास बैठो गिला नहीं करते

बादशाही खूँ में शामिल जिनके
शीश उनके झुका नहीं करते

जख़्म जबसे मिला मुहब्बत में
दिल किसी को दिया नहीं करते

बात वाजिब लगे अगर कोई
तो कभी हम हँसा नहीं करते

दूर जबसे हुए सनम हमसे
दिन भी अपने कटा नहीं करते

होगी मजबूरियाँ वहाँ उसकी
बात से वो फिरा नहीं करते

दीवारें लाख हो प्रखर घर में
रिश्ते दिल के बटा नहीं करते

कभी तुमसे नहीं रूठा करेंगे

कभी तुमसे नहीं रूठा करेंगे
यही बस आज तो वादा करेंगे

वफ़ा की तेरी हम पूजा करेंगे
नहीं अब हम सफर दूजा करेंगे

जिसे दिल आज दे बैठे हो दिलवर
वही दिल एक दिन तोड़ा करेंगे

मिलेगी काम से फुर्सत हमें जब
गली में तेरी हम घूमा करेंगे

न बहला दिल किताबो से कभी तो
तेरी तस्वीर का बोसा करेंगे

ग़ज़ल जब भी कहेंगे हम नई तो
वफ़ा की तेरी ही चर्चा करेंगे

हमारी हस्ती ही क्या है यहाँ पर
वफ़ा का तेरी जो सौदा करेंगे

वफ़ा बिक जाये लाखों में तुम्हारी
प्रखर खुद को वहाँ झूठा करेंगे

सज रहे आज वह लुभाने को

सज रहे आज वह लुभाने को
साथ में ज़िन्दगी बिताने को

सात फेरों सें जब बना बंधन
चल पड़े साथ हम निभाने को

आप आये यही बहुत होगा
चाहिए क्या गरीब खाने को

रूठ जाओ अगर कभी दिलबर
जान हाजिर तुम्हें मनाने को

दो बदन एक रूह हम दोनों
चाहते एक अब हो जाने को

एक मासूक ही नही यारों
और भी लोग है भुलाने को

प्रेम से बात कर प्रखर सबसे
आज रिश्ते नये बनाने को

बुरे गर बने तो शिकायत मिलेगी

बुरे गर बने तो शिकायत मिलेगी
भली आदतों से ही इज्जत मिलेगी

गरीबों के घर में शराफ़त मिलेगी
यहीं तो तुम्हें हर लियाकत मिलेगी

यही सोचकर हम भले बन गये थे
खुदाया तेरे घर तो जन्नत मिलेगी

नहीं छोड़कर वो वतन जा सका फिर
सुना बेटियों को हिफ़ाज़त मिलेगी

बढ़ाओ नहीं शौख अपने यहाँ तुम
तुम्हें अब न इसकी इज़ाजत मिलेगी

नहीं जा सकूँगा इन्हें छोड़कर मैं
भले ही वहाँ मुझको दौलत मिलेगी

करो तुम सही तो चलन आज अपना
तुम्हें भी जहाँ में मुहब्बत मिलेगी

हमारी वफ़ा पे यकीं उसको होगा
तभी हुस्न की ये नज़ाकत मिलेगी

चला जा प्रखर तू गुरुदेव के दर
वहीं पर सही अब निज़ामत मिलेगी

पास यादों की अमानत ही सही

पास यादों की अमानत ही सही
यार की इतनी मुहब्बत ही सही

इक दफ़ा सूरत दिखा तो दीजिए
बाद चाहे ये कयामत ही सही

आज हँसकर मान लूँ मैं बात सब
कुछ कहे तो तू शिकायत ही सही

इक दफ़ा हसरत है उसको देखा लूँ
बाद कर ले वो तिजारत ही सही

लोग क्या कहतें हैं कहने दो उन्हें
प्यार में उसके इबादत ही सही

राब्ता कुछ तो बना रखना ही था
करता नफ़रत तो ये नफ़रत ही सही

दूर कर शिकवे गिले मिल कर कभी
कुछ हक़ीक़त हो शरारत ही सही

Mahendra Singh Prakhar

महेन्द्र सिंह प्रखर 

( बाराबंकी )

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