Ghodon ki nilami
Ghodon ki nilami

घोड़ों की नीलामी

( Ghodon ki nilami )

 

हर दिशा के घोड़ो को इकट्ठा किया गया था । उनको हिदायत दी गई थी कि नीलामी स्थल पर वे लीद न करें। घोड़ो के गरदन पर उनके भागने की गति लिखी हुई थी । ताज्जुब तो यह था कि घोडोे को मालूम था कि उनकी नीलामी होने जा रही है ।

एक सीनियर घोड़े ने कहा “ऐसा तो कभी नहीं हुआ । अरब देशों में गुलामों की नीलामी होती थी। हम जिनके साथ चाय पीते थे क्या उनके गुलाम हो जायेंगें ?”

एक तेज दौड़ने वाला घोड़ा बोला “दुर्लभ कला कृतियों की भी नीलामी होती है। वह सीनियर घोड़ा बोला “कला कृतियां निर्जीव होती है और वे जितनी पुरानी होती है उनकी कीमत  बढ़ती जाती है । हमारी तो घट रही है।”

तेज दौड़ने वाला बोला हम भी निर्जीवो की तरह बिक जायेंगें । पैसों के लिये और पुराने कपड़ों की कीमत नही होती तुम लोगो की तरह। जिन्होने उन्हें दौड़ना सिखाया था वे आदमी थे। उनमें से एक ने कहा नीलाम नहीं होते तो क्या भूखों मरते ?

उसने तर्क व तुर्क जवाब दिया कुछ मर गये है। उत्तर वालों के लिये देश खड़ा था। देश का सिर उत्तर और पैर समुद्र की तरफ थे। दक्षिण वालों का कहना था कि देश समुद्र की तरफ शीर्षासन करके सो रहा है ।

आखिर दिमाग वालों को ही नोबल इनाम मिलता है। देश के पैर उत्तर की तरफ हैं। पूरब वाले कहते है कि देश का सिर पूरब की तरफ है ।

पूरब वालों को दो दो नोबल इनाम मिले है। देश के पैर पश्चिम में और भुजाऐं उत्तर दक्षिण में है। पश्चिम वाले कहते है हम पैरो को यहां नही रहने देगें । सिर हमारा है । नीलामी लगाने वाले हालांकि हर जगह से इकट्ठे हुये थे।

ऊपर पैसा बोल रहा था । पैसा फिल्म उद्योग से आया था। उन्हें घुडदौड़ का बहुत शौक था वे अब दो पैरों के घोड़ों की बोली लगा रहे थे । पैसा उद्योगपतियों से आया था। वे घुड दौड का उद्योग लगाने चले थे पैसा कलाकारो से भी आया था । मगर सारे पैसो की खनक एक सी थी ।

कुछ सटृटे बाज भी बैठे थे। वे ही विश्व की गेंद को लुडका रहे थे । उनका मत था कि भारत के घोड़ो पर पैसा लगाना लगाना जोखिम का खेल है । वे कब खड़े होकर मैदान गन्दा कर दें कहा नहीं जा सकता । उनके जीतने पर पैसा लगाने से अच्छा है कि विदेशी घोड़ो के हारने पर पैसा लगाया जाये । वे विश्वासनीय है।

सीनियर घोड़े भारत को भारतीयों के हाथ ही बिकता हुआ देख रहे थे । उन्हें डर था कि पैसा जीत जाएगा और भारत हार जायेगा।

अब ये घोड़े भारत के लिये नही दौड़ेगे बल्कि खुद के लिये दौड़ेगे । नम्बर दो का घोड़ा खुद दौउ़ने के बजाय नम्बर एक के घोड़े की टांगे खीचेगा । यह सम्य आदमियों का खेल अब जंगली जानवरों का खेल हो जायेगा ।

ये लोग विकेट की बीच में दौड़ते दौड़ते रिंग में दौड़ने लगे । देखो इनके मंुह से फेन की जगह लार टपकने लगी है और पूंछ कुत्तो की तरह हिलने लगी है ।

एक बूढ़ा घोड़ा पैसे की थैली से मानिनी की तरह नाराज हो गया बोला “अभी तक तो तुम हमारी पीठ पर लदे रहते थे अब षोडषी को देख कर फिसल गये ।

हमें देख कर जो मंुह ख्ुाल जाता था अब हमें देख कर बन्द होने लगा और नवेलियों को देख कर खुलने लगा । अरे कुछ जो शरम करो ।

ऐसा न हो कि सिक्का पलट जाये, फिर हमारे साथ फोटो खिचवाने मत आना थैली को मालूम था कि सिक्के के दो पहलू होतें है अतः वह दोनो टीमो पर एक साथ दाव लगाती थी । दो में से तो जीतेंगी । वह हार की भरपाई कर देगा ।

अतः थैली बूढ़ी घोड़ी की लाल लगाम दिखाती हुई बोली अरे ये लाल लगाम तो हमारे तुम्हारे लिये ही रख छोड़ी है।  उस नयी घोड़ी को तो फांसने के लिए नया जाल बिछाया है । गुस्सा छोड़ो चलो अब साथ साथ चाय जो जाये।

एक साठ साल का जवान घोड़ा बोला ठीक है नये घोड़ो पर दवा लगा रहे हो पर पुराने घोड़ो को मत भूल जाना । ऐसा न हो कि वे नये घोड़ो को रिंग में दौड़ना ही न सिखाये ।

एक कद्दावर बूढ़े घोड़े ने तो खुद का ही ही रिंग खोल लिया जिसमे देशी और विदेशी नये और पुराने घोडे एडमीशन लेने लगे है। उसकी रिंग में घुडदौड़ के पहले अल्प वासनाये नृत्य करती है जिससे कि घोडे़ वार्मअप हो जाये जैसे सांडो को लाल कपड़ा दिखाया जाता है।

देश में घुड़दौड के अलावा सारे खेल धीरे धीरे बन्द होते जा रहे है। घोड़ो ने उनका चारा भी खा लिया है।

 

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लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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