Vyang lekh
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अन्तर्राष्ट्रीय गजल गायक

 

उद्घोषक ने उद्घोषणा की अब हम आपके सामने विश्व के मशहूर गजल गायक को प्रस्तुत करने जा रहे है । वह इसके पहले श्रोताओं को उस छोटे से कस्बे में विश्व प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत गायक, वीणा वादक, तबला वादक, इत्यादि तश्तरी में रखकर परोस चुका था।

श्रोताओं ने उन्हें चटखारे ले लेकर कानों के माध्यम से खाया था और तालियों के माध्यम से प्रशंसा की थी। श्रोताओं को शास्त्रीय संगीत की समझ नहीं थी और गायको को श्रोताओं के समझ की ।

पर चूंकि महाराज अकबर के जमाने से गायको को दाद दी जा रही थी । अतः सन दो हजार सात के श्रोता भी दे रहे थे ।

उदघोषक कहता गया “उन्हें आप सब जानते ही है उनका नाम है उस्ताद सा.रे.गा । जोरदार तालियों से उनका इस्तकबाल किया जाये ।

तबले पर उनका साथ दें रहें है मशहूर तबला वादक त.थ.द. और सारंगी पर उनका साथ दे रही है सुदर्शना प.फ.ब.।”

उस अन्तर्राष्ट्रीय गजल गायक को सुनने मात्र तीस व्यक्ति बचे थे । सामने की कुर्सियों पर बैठी कुछ श्रंृगारित अधेड़ महिलाएं थी।

उनके पीछे उस कार्यक्रम में आयोजक उनके पति लोग थे और सबसे पीछे छींट की बुश्शर्ट पहने छींटा कशी करने वाले लुच्चे लोग थें।

वह अन्तर्राष्ट्रीय गजल गायक झकाझक कुर्ता और पायजामा से वस्त्रायमान था। ऊपर से लाल बंडी संगमरमर के फर्श पर बीर बहूटी का भ्रम उत्पन्न करती थी।

उसकी आखे किसी गला तर करने वाले द्रव के कारण लाल हो रही थी। वह स्टेज के पीछे तो ठीक ठाक गया था पर स्टेज के पीछे से लड़खड़ाता हुआ वापिस आया।

मन्च पर आकर उसने उन थोड़े से लोगों के हाथ जोड़े जिन्हें वह भीड़ समझ रहा था फिर मुस्कुरा कर तबले वाले को देखा जिसने प्रसन्न होकर लचक कर तबले पर थाप दी । अन्त में उसने तिरछी नजरो से सारंगी बजाने वाली को देखा तो उसने शरमानेे का अभिनय किया

कुछ देर तक वह स, स, रे, रे, ग, ग करता रहा फिर गजल गाने के अन्दाज में बोला मैं जो गजल आपको सुनाने जा रहा हॅू वह मेरी पसंदीदा गजल है।

उसकी पहली दो लाइनें जनाब बशीर बद्र की है दूसरी दो लाइने मरहूम दुष्यंत कुमार की है और आखिरी दो लाइने उस्ताद शायर मिर्जा गालिब की है।

आगे की पंक्ति वालों को इस प्रस्तुति में प्रयोग दिखा कर पीछे वालों को यह केमिस्ट्री बे तुकी लगी । उनमें से एक ने खड़े होकर पूछा क्या “किसी एक की पूरी गजल याद नही है?”

अन्तर्राष्ट्रीय गजल गायक ने उस फिरके को बदन पर गिरी हुई छिपकली की तरह झड़ा दिया और बशीर बद्र की दो लाइने गीली जमीन पर कीले  की तरह धंसा दी ।

न जी भरकर देखा ना कुछ बात की। बडी आरजू थी मुलाकात की । बशीर बद्र के मुरीद सीटियां बजा बजा कर खुशी का इजहार करने लगे ।

मगर एक पत्रकार ने संयोजक से पूछा क्या इन्होंने बशीर बद, दुष्यप्त कुमार और मिर्जा गालिब से इस खिचड़ी के लिए इजाजत ले ली थी ?

संयोजक थोड़ा परेशान दिखा फिर बोला “शायद ले ली होगी”

तभी गजल गायक ने मरहूम दुष्यन्त कुमार की दो लाइने प्याले में उढेली ।

तू किसी सा.रे.गा.सा.रें.गा ट्रेन सी गुजरती है मैं, मैं, मैं, किसी पुल सा थरथराता हॅॅू

इस गजल का मिजाज शायराना नहीं था पर दाद देने वालों ने फर्ज अदाई की।

एक साहब उठकर बोले यह मिक्सचर तो वैसा ही हुआ जैसे राज मार्ग पर शुद्ध शाकाहारी एवं मांसाहारी ढाबा हो ।

गजल गायक साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रणेता मालुम होता था। ये प्रयोग उसने जामालय के पास में बिकने वाले नमकीन मिक्सचर से सीखे थे जिससे बादाम पसन्द हो वह बादाम चुन ले और जिसे नमकीन खाना हो वह नमकीन खाले । इस साम्प्रदायिक चूड़े के ही कारण उसे पद्म विभूषण की उपाधि मिली हुई थी ।

अन्त में उसके माध्यम से मिर्जा गालिब जन्नत से महफिल में तशरीफ लाये वे गाकर बोले

सुनते आये थे आदम का निकलना खुल्द से अब तक, खुल्द से अब तक, खुल्द से अब तक । बड़े वे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।

मगर हाजरीनो खवातीन तब तक धीरे धीरे मैदान खाली कर चुके थे।

 

✍?

 

लेखक : : डॉ.कौशल किशोर श्रीवास्तव

171 नोनिया करबल, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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