गूंज उठी रणभेरी

( Gunj uthi ranbheri ) 

 

गूंज उठी रणभेरी, अंतर्मन विजय ज्योत जला

आन बान शान रक्षा,
दृढ़ प्रण दृष्टि श्रृंगार ।
शक्ति भक्ति धार धर,
हिय भर सूरता आगार।
अजेय पथ गमन कर,
सर्वत्र बैठी घात लगा बला ।
गूंज उठी रणभेरी, अंतर्मन विजय ज्योत जला ।।

स्मरण कर स्वप्न माला,
जिस निशि दिन जगा ।
उच्चावचन शांत कर,
भय शंका दूर भगा।
प्रहार कर सर्वस्व उड़ेल,
दिनकर सिर ऊपर ढला।
गूंज उठी रणभेरी, अंतर्मन विजय ज्योत जला ।।

यथार्थ रौद्र रूप दिखा,
शत्रु को अब ललकार ।
बना चंडी उर भावना,
लघु झोंको को फटकार ।
भर अदम्य हौसली उड़ान ,
दिखा रणनीतिक जलजला ।
गूंज उठी रणभेरी, अंतर्मन विजय ज्योत जला ।।

धर्म कर्म आदर्श चरित्र,
नैतिकता सदा ध्यान रख ।
शेर सदृश दहाड़ कर,
जंबुक चातुर्य ताकत परख ।
सिंहासन जीत वंदन आतुर,
लक्ष्य अमोध चाल चला ।
गूंज उठी रणभेरी, अंतर्मन विजय ज्योत जला ।।

 

महेन्द्र कुमार

नवलगढ़ (राजस्थान)

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