मुझे मत तौलों

( Mujhe mat toulo )

 

मुझे मत तौलों ,
ईश्वरत्व से,
मैं मनुष्य ही बने रहना चाहता हूं,
जिसके हृदय में हो ,
मां जैसी ममता ,
पिता जैसा साथी,
बहन जैसा स्नेह ,
जो हर दुखित प्राणी के,
आंसुओं को पोछ सके ,
जिसके अंतर में हो ,
पद दलितों के प्रति प्रेम,
जाति पाति , ऊंच नीच से ऊपर उठकर जो,
करता हो मनुष्य को मनुष्य होने के नाते,
प्यार ,
जो मनुष्य ही नहीं,
पशु- पक्षी, वृक्ष वनस्पतियों से भी ,
रखता हो अपनत्व ,
मेरे प्रभु,
तुम बनाना मुझे,
ऐसे ही प्रेम पूर्ण मनुष्य।

 

योगाचार्य धर्मचंद्र जी
नरई फूलपुर ( प्रयागराज )

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