हाल-ए-मोहब्बत | Haal-e-Mohabbat
हाल-ए–मोहब्बत
( Haal-e-Mohabbat )
हाल-ए मोहब्बत का
तुम्हें हम क्या बताये।
दिलकी पीड़ा का हाल
हम किसको सुनाए।
जब दिल दे चुके है
हम किसी को तो।
ये पैगम उन तक
हम कैसे पहुँचाएँ।।
दिलकी बातें जुबान से
हर पल निकलती है।
कभी-कभी हमारी आँखे भी
दिलकी बातों को कहती है।
प्यार करने वाले तो
इनको समझ जाते है।
और दिल ही दिलमें
ये बहुत मुस्काराते है।।
हंसती खिल्ल-खिलाती मोहब्बत
आज के युग में कम मिलती है।
क्योंकि लोग मोहब्बत को
तपस्या नही प्रसाद समझते है।
इसलिए आज कल मोहब्बत
कुछ समय की होती है।
जो समय के अनुसार
अब बदलती रहती है।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन “बीना” मुंबई