.हैसियत

( Haisiyat ) 

 

शौक नही महफिलों को
सजाने का मुझे
घर की दीवारें भी खड़ी रहें
यही बहुत है मेरे लिए
देखी होगी तुमने ऊंचाई से जमीन
हमने तो जमीन से ऊंचाई को देखा है…

चम्मच से हम नही खाते
अंगुलियों मे ही हैं पंच तत्व की शक्तियां
हांथ ही उठा सकते हैं बोझ धरा का
तुम्हे तो जगाने के लिए भी
सर्वेंट चाहिए…..

मरी हुई संवेदनाओं मे
मानवता जन्म ही नही लेती
हम पीढ़ियों को उठाते हैं कंधों पर
तुम्हारी गोद मे कुत्ते खेलते हैं……

मान लो तुम कुछ भी स्वयं को
औकात कुछ भी नही नजरों मे हमारी
खामोशी को कमजोरी न समझना
उठाने वाले गिराने की भी
हैसियत रखते हैं…

समय के साथ चल लेते हैं हम
गरीबी मे सुख न सही ,संतुष्टि है
उतर आए जो दहलीज से बाहर
मुट्ठी मे हमारे सृष्टि है…

 

मोहन तिवारी

 ( मुंबई )

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