रक्षा-बन्धन | Raksha bandhan kavita
“रक्षा-बन्धन”
–>लो आ गई राखी…….||
बाजार खुल गया राखी का, चमचम चमके राखी |
कोई खरीदे खेल-खिलौने, कोई खरीदे राखी |
कहीं पे मम्मी कही पे बहना, कर रही हैं शॉपिंग |
कहीं पे मुरली लेकर बच्चे, कर रहे हैं पंपिंग |
–>लो आ गई राखी …….||
मम्मी घर पर तरह-तरह के, बना रही पकवान |
राखी के पावन मेले पर, सजने लगी दुकान |
हम भी रक्षाबंधन की, ढ़ेरों कर रहे तैयारी |
उपहार लिया बहना के लिए, उमंगें ढेर सारी |
–>लो आ गई राखी ….. ||
मामा की कलाई पर मम्मी, बांधे प्रेम का धागा |
तिलक कर बांधी राखी, मामा लड्डू लेकर भागा |
आगे पीछे भाग रहे हैं, अठखेली सी करते हैं |
खट्टे-मीठे होते झगड़े, मिलकर साथ में रहते हैं |
–>लो आ गई राखी …… ||
जिस बहना के भाई नहीं हैं, नहीं हैं जिनकी बहना |
पल में ऐसे अंखियों से उनकी, बहने लगता है झरना |
हर भाई को मिल जाये बहना, हर बहना को भाई |
कोई कलाई रहे न सूनी, रब से करते यही दुहाई |
–>लो आ गई राखी ……..||
कवि : सुदीश भारतवासी