
हमारे शहर में
( Hamare shahar mein )
( एक )
हमारे शहर में
वाद है
विवाद है
प्रतिवाद है
जातिवाद है
नस्लवाद है,
संप्रदायवाद है….
हमारे शहर में है,
राष्ट्रवाद,
नारीवाद,
देववाद,
उदारवाद.
अद्वैतवाद,
आरंभवाद,
परिणामवाद ….
हां !
अगर नहीं है
तो नहीं है
बस मानवतावाद
हमारे शहर में.
( दो )
हमारे शहर में,
चर्च रोड है,
मंदिर चौराहा है ,
मस्जिद पंच रास्ता है,
गुरुद्वारा मार्ग है,
अंबेडकर तिराहा है
बीच में
दोराहा भी है
जहां अक्सर
भ्रमित हो जाते हैं हम
कहां जाएं
किधर जाएं
इधर जाएं
या उधर जाएं
भटक रहे हैं हम
अपने ही शहर में
( तीन)
हमारे शहर में
आप भी हैं
हम भी हैं
वो भी हैं .
मगर नहीं है
तो नही है वो ,
जिसकी तलाश
आप को है
हमको है
उनको है
सबको है
हमारे शहर में.
(चार)
हमारे शहर में
हमारे बहुत सारे दोस्त हैं.
आपस में बनती है
मस्ती में कटती है
मगर
पहले वे हिंदू हैं
पहले मुसलमां हैं
पहले सिख हैं
पहले ईसाई हैं
पहले पारसी हैं वे,
हमारे शहर में.
(पांच)
हमारे शहर में
‘अतिथि देवो भव’ की रीति
वो कुछ इस तरह
निभाते हैं.
अतिथि से
पहले जाति पूछते हैं
फिर पानी पिलाते हैं.
हमारे शहर में
कभी – कभी तो
बिना जाति पूछे
न हाथ मिलाते हैं
न घर के अंदर बुलाते हैं.
‘अतिथि देवो भव ‘
इश्तिहार लगाते हैं ,
अच्छे संस्कार का डंका बजाते हैं,
लोग इतराते हैं
बस किताबों में पढ़ाते हैं
कहां अमल में लाते हैं लोग
हमारे शहर में .
(छह)
हमारे शहर में
दशरथ हैं
राम हैं
भरत हैं
लक्ष्मण हैं
शत्रुघ्न हैं
सीता हैं
उर्मिला हैं
लव -कुश हैं .
हमारे शहर में
कैकेयी नहीं हैं
मंथरा नहीं हैं
द्रौपदी नहीं है ,
दुर्योधन नहीं है
शकुनि भी नहीं है .
फिर भी
घर- घर में ‘महाभारत छिड़ा है
हमारे शहर में.
आर.पी सोनकर ‘तल्ख़ मेहनाजपुरी‘
13-ए, न्यू कॉलोनी, मुरादगंज,
जौनपुर-222001 ( उत्तर प्रदेश )