हमें होश ऐसे भुलाए गए हैं
हमें होश ऐसे भुलाए गए हैं
हमें होश ऐसे भुलाए गए हैं।
निगाहों से साग़र पिलाए गए हैं।
सितम हम पे ऐसे भी ढाए गए हैं।
हंसा कर भी अक्सर रुलाए गए हैं।
जिन्हें देखकर ताब खो दे ज़माना।
वो जलवे भी हम को दिखाए गए हैं।
जो चाहो करो हम से बरताव यारो।
हम आए नहीं हैं बुलाए गए हैं।
उन्हें सब्र आए तो आए भी कैसे।
भरी बज़्म से जो उठाए गए हैं।
सलीक़े थे ऊंची उड़ानों के जिनको।
यहां पर उन्हीं के जलाए गए हैं।
दर-ए-साक़िया पर झिझक है ये कैसी।
यहां तो फ़राज़ आप आए गए हैं।
पीपलसानवी