हमेशा इश्क में
हमेशा इश्क में
हमेशा इश्क में ऊँची उठी दीवार होती है
नज़र मंज़िल पे रखना भी बड़ी दुश्वार होती है
सभी उम्मीद रखते हैं कटेगी ज़ीस्त ख़ुशियों से
नहीं राहत मयस्सर इश्क़ में हर बार होती है ।
बढ़े जाते हैं तूफानों में भी दरियादिली से वो
दिलों को खेने वाली प्रीत ही पतवार होती है
नहीं रख पाते हैं क़ाबू में ये दिल की उमंगो को
तभी तो नाव प्रेमी की फँसी मझधार होती है ।
समझते हैं बहुत आसान है ये इश्क़ की मंज़िल
मगर ख़्वाहिश ये अक्सर ही बड़ी दुश्वार होती है
वतन की सरहदों पर रोक ले जाने से वीरों को
किसी पाजेब में भी इतनी कहाँ झनकार होती है ।
सुधा यह तीर आँखों के ही कर जाते हैं दिल घायल
निगाह-ए-यार भी जैसे कोई तलवार होती है ।
