हे मां रजनी

मां रजनी सा ना
कोई उपकारी l
पूरा भूमंडल मां
तेरा आभारी l

पूरा जग तेरा
वंदन करता है l
नमन तुझे भगवान
भास्कर भी करता है l

मां समय की तू
बड़ी पाबंद l
नित्य अपने समय
पर आती है l

फैला तम की चादर
थके मांदे भास्कर
को ले आगोश में
विश्राम कराती है l

फ़ैला गहन
तम का आंचल
जग को मीठी
नींद सुलाती है l

थम जाता कोलाहल
निवरता छा जाती है l
कामी,,कुंभील की
चांदी चटक आती है l

काम ,आचरण
करें दुराचारी l
तू कुछ नहीं
कर पाती है l

दे सबको
ताजगी,और विश्राम l
एक नई ऊर्जा
संचित कर जाती है l

नित्य चौथे प्रहर
आनंददायी
प्रसव पीड़ा
से गुजरती है l

ज्यों ~ज्यों तेरी प्रसव
पीड़ा बढ़ती
त्यों ~त्यों जग में
रौनक छा जाती है

नित्य प्रति सौंप
नया दिनकर
स्वयं विश्राम लेने
महलों में चली जाती है l

Rajendra Rungta

राजेंद्र कुमार रुंगटा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

यह भी पढ़ें:-

पिता का सहारा | Kavita Pita ka Sahara

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here